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बँटवारे की आँधी में इंसानियत के चिराग़
दिल्ली के एक पत्रकार त्रिदेवेश सिंह मैनी तथा लाहौर के दो पत्रकारों ताहिर मलिक और अली फ़ारूक़ मलिक ने भारत के बँटवारे के दौरान मुसलमानों, हिंदुओं और सिखों की एक दूसरे के लिए दी गई क़ुर्बानियों की सच्ची कहानियों को इकट्ठा किया है.
ये कहानियाँ एक किताब की शक्ल में प्रकाशित हुई हैं जिसका नाम है 'हुमैनिटी एमिडस्ट इनसेनिटी' यानी वहशीपन के बीच मानवता. ये किताब उन लोगों से बातचीत पर आधारित है जिन्हें दंगों के दौरान दूसरे संप्रदाय के लोगों ने अपनी जान पर खेलकर बचाया था.
वहशत के बीच मोहब्बत
इस किताब में नफ़रत के उन्माद के दौर में जिन लोगों ने मानवता की मिसाल पेश की थी उनकी कहानी विस्तार से सुनाई गई है.
जिन
लोगों
ने
बँटवारे
को
अपनी
आंखों
से
देखा
उनकी
संख्या
समय
के
साथ
कम
होती
जा
रही
है
और
अगर
ये
कहानियां
इकट्ठा
न
की
जातीं
तो
हमेशा
के
लिए
खो
जातीं |
ताहिर मलिक का कहना है कि इस किताब में जिन लोगों की मुहब्बत की कहानियों को उन्होंने जगह दी है उनसे बात कर के दो धारणाएं सामने आईं.
वे कहते हैं, "एक तो घाव भर गए हैं जो बँटवारे के वक़्त लगे थे और दूसरा लोगों की समझ में आया है कि सबसे बड़ी चीज़ इंसानियत है. पाकिस्तानी होना या मुसलमान होना या सिख होना बाद की बात है".
ब्रितानी संसद से संबंधित ऑल पार्टी समूह के 'पंजाबीज़ इन ब्रिटेन' के तत्वावधान में सोमवार को लंदन में आयोजित एक समारोह में इस किताब का विमोचन किया गया है.
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