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पंचम दा: नए तरह के संगीत का जादूगर
आरडी बर्मन आज होते तो 78 बरस के होते. उनकी जयंती पर सिनेमा और संगीत के चाहने वाले उन्हें याद कर रहे हैं.
विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' मिलने से पहले राहुल देव बर्मन के पास कोई काम नहीं था.
उससे पहले कुछ सालों में उनके पास इक्का-दुक्का फिल्में ही आईं थीं.
तीन दशकों तक अपने संगीत का जादू चलाने वाले पंचम दा को फिल्म इंडस्ट्री ने लगभग भुला दिया था.
'1942 अ लव स्टोरी' का संगीत बेहद कामयाब साबित हुआ. लेकिन अपनी आख़िरी कामयाबी देखने के लिए वे इस दुनिया में नहीं थे.
ज़िंदगी के मज़े लेते थे पंचम- गुलज़ार
करियर की शुरुआत
फ़िल्मी दुनिया में आरडी बर्मन 'पंचम दा' के नाम से विख्यात थे और उन्होंने अपने करियर के दौरान लगभग 300 फ़िल्मों में संगीत दिया.
आरडी बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 को हुआ था और 4 जनवरी, 1994 को 54 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था.
उनके पिता एसडी बर्मन भी जाने माने संगीतकार थे और आरडी बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत उनके सहायक के रूप में की थी.
आरडी बर्मन प्रयोगवादी संगीतकार के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने पश्चिमी संगीत को मिलाकर अनेक नई धुनें तैयार की थीं.
मौत से पहले क्यों अकेले रह गए थे आर डी बर्मन?
आशा और पंचम
1970 के दशक के दौरान गायिका आशा भोंसले के साथ उनके काम की बहुत सराहना हुई. आशा भोंसले ने उनके निर्देशन में फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' में 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा...', 'ओ हसीना ज़ुल्फ़ों वाली...' और 'ओ मेरे सोना रे सोना...' जैसे गीत गाए.
पंचम दा के निर्देशन में पश्चिमी संगीत की धुन पर फ़िल्म 'कारवां' में गा गए गीत 'पिया तू... अब तो आ जा...' को भी काफी पसंद किया गया.
इन गानों के हिट होने के बाद आरडी बर्मन ने अपने गीतों में आशा भोंसले को प्राथमिकता दी.
70 साल गाने के बाद भी जो हैं 30 की
संगीत परंपरा के विद्रोही संगीतकार आरडी बर्मन
कुछ अरसा पहले बीबीसी से बातचीत में आशा भोंसले ने कहा था कि सभी संगीत निर्देशक, गायक आज महसूस करते हैं कि आरडी के जैसा संगीत कोई नहीं दे सकता.
आरडी बर्मन से अपनी नज़दीकी के बारे में उन्होंने बताया था, "मुझे वेस्टर्न गाने पसंद थे. मुझे पंचम के गानों को गाने में बहुत मज़ा आता था. वैसे भी मुझे नई चीज़ें करना अच्छा लगता था. बर्मन साहब को भी अच्छा लगता था कि मैं कितनी मेहनत करती हूँ. तो कुल मिलाकर अच्छी आपसी समझदारी थी. तो मैं कहूँगी कि हमारे बीच संगीत से प्रेम बढ़ा, न कि प्रेम से हम संगीत में नज़दीक आए."
कामयाबी का राज़ कड़ी मेहनत: आशा भोंसले
वर्ल्ड म्यूज़िक डे: प्यारेलाल, पंचम दा कैसे रचते थे गाने
70 का दशक
राजेश खन्ना, किशोर कुमार और आरडी बर्मन की तिकड़ी ने 70 के दशक में धूम मचा दी थी.
इस दौरान 'सीता और गीता', 'मेरे जीवन साथी', 'बॉम्बे टू गोवा', 'परिचय' और 'जवानी दीवानी' जैसी कई फ़िल्मों आईं और उनका संगीत फ़िल्मी दुनिया में छा गया.
सुपरहिट फ़िल्म 'शोले' का गाना 'महबूबा महबूबा...' गाकर आरडी बर्मन ने अपनी अलग पहचान बनाई.
फ़िल्म संगीत से जुड़ी हस्तियों को हमेशा इस बात पर अफसोस रहा कि पंचम दा के आखिरी दिनों में फ़िल्म बिरादरी ने उन्हें लगभग भुला दिया था.
ईस्ट बंगाल की जीत और एसडी बर्मन का कोमा
मॉडर्न संगीतकार
एक बार संगीतकार ललित पंडित ने आरडी बर्मन के बारे में बीबीसी से कहा था, "पंचम दा का संगीत लाजवाब होता था. वो बहुत मॉडर्न संगीतकार थे. बड़े दुख की बात है कि उनके जैसे कद के संगीतकार को आख़िरी दिनों में जो सम्मान मिलना था वो नहीं मिला. काश पंचम दा के साथ ऐसा ना हुआ होता. उनके गुज़रने के बाद लोग उन्हें इतना याद करते हैं."
संगीतकार जोड़ी एलपी (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) आरडी बर्मन के समकालीन थे.
तीनों एसडी बर्मन के सहायक के तौर पर काम किया करते थे और वहीं से उनके बीच गहरी दोस्ती हो गई.
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संगीत से समां बांध देने वाले पंचम
इस जोड़ी के प्यारेलाल ने कभी बीबीसी से पंचम दा की यादें शेयर की थीं. उन्होंने बताया था, "मैंने और लक्ष्मी जी की जोड़ी ने मिलकर फ़िल्म दोस्ती का संगीत दिया था. उसका संगीत बहुत हिट हुआ."
"लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि फ़िल्म के सभी गानों में पंचम ने माउथ ऑर्गन बजाया है. वो खुद संगीतकार थे लेकिन उन्होंने हमें कभी ये नहीं कहा कि ऐसे संगीत बनाओ. बस वो आते और कहते कि हां भाई, बताओ कैसे बजाना है."
अपने संगीत से समां बांध देने वाले आरडी बर्मन का चार जनवरी, 1994 को निधन हो गया लेकिन उनके चाहने वाले आज भी उन्हें शिद्दत से याद करते हैं.
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