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भारत में भी प्रदर्शित हों पाकिस्तानी फिल्में: पाकिस्तान
भारतीय अभिनेता नसीरुद्दीन शाह अभिनीत 'जिंदा भाग' का नामांकन 86वें अकादमी पुरस्कारों के लिए हुआ है। यह पिछले 50 सालों में पाकिस्तान की ओर से अकादमी पुरस्कारों में जाने वाली पहली फिल्म है।
भारत में पहले भी पाकिस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन होता रहा है। 2008 में प्रदर्शित शोएब मंसूर की 'खुदा के लिए' पहली ऐसी फिल्म थी जो 43 सालों में पहली बार पाकिस्तान की सीमा से परे भारत में प्रदर्शित हुई थी। इसके बाद महरीन जब्बार की 'रामचंद पाकिस्तानी' भारत में प्रदर्शित हुई थी। 2011 में आई मंसूर की पाकिस्तानी फिल्म 'बोल' को भी भारत में बड़ी प्रशंसा मिली थी।
अब 'जिंदा भाग' के निर्माता-निर्देशक अवैध तरीके से सीमा पार करने जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बनी फिल्म को भी भारतीय दर्शकों की प्रशंसा और सराहना मिलने की उम्मीद कर रहे हैं।
अबु धाबी फिल्म महोत्सव (एडीएफएफ) मे नबी के साथ आई गौर ने आइएएनएस को बताया, "मुझे वास्तव में लगता है कि पाकिस्तानी फिल्मों को भारत में प्रदर्शित करने की जरूरत है।"
गौर ने आईएएनएस से कहा, "दूरी के हिसाब से देखें, तो दिल्ली, अमृतसर और लाहौर आस पास ही हैं, फिर भी लोग सीमापार के लोगों की रोजाना की आम जिंदगी के तौर तरीकों से अनजान हैं। इसलिए मेरा मानना है कि हमारी फिल्म और इस तरह की अन्य फिल्में लोगों को आपस में जोड़ेंगी और इससे लोगों को खुशी मिलेगी। हमारी फिल्में भारत में प्रदर्शित होनी चाहिए।"
गौर अपने साथी नबी के साथ एडीएफएफ में 'जिंदा भाग' के प्रदर्शन पर मौजूद थीं। 500,000 डॉलर के बजट में बनी इस फिल्म को अपने लाहौरी रंग-ढंग और अंदाज, असरदार संवादों और स्वाभाविक अभिनय के लिए काफी सराहना मिली।
नबी भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन के लिए काफी उत्साहित हैं। उन्होंने कहा, "पाकिस्तान में फिल्म के प्रदर्शन का पांचवां सप्ताह और अमेरिका में दूसरा हफ्ता है। हमने लगभग 10 शहरों में फिल्म का प्रदर्शन किया है। जल्द ही यह कनाडा में और फिर भारत में भी प्रदर्शित होगी।"
गौर ने कहा, "पाकिस्तानी फिल्मोद्योग के लिए यह साल अच्छा है। यह बड़ी बात है कि लोग इस देश की फिल्मों के बारे में चर्चा कर रहे हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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