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    जाने कहाँ गए वो दिन...

    By Staff
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    जाने कहाँ गए वो दिन...

    रचना श्रीवास्तव

    बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, डेलेस, अमरीका से

    रामानंद सागर की कैकेयी को अब भी लोग भूले नहीं होंगे लेकिन उस पात्र के पीछे का चेहरा कई वर्षों से कुछ खोया-खोया सा है.

    जी हाँ, पदमा खन्ना जिनको नई पीढ़ी कैकेयी की तरह तो जानती है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस मोहक सूरत के साथ पदमा खन्ना एक प्रतिभाशाली नृत्यांगना और कुशल अभिनेत्री भी हैं.

    कत्थक की इस श्रेष्ठ नृत्यांगना ने जब नृत्य किया, दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए, अभिनय किया तो लोग देखते रह गए.

    समय बदला और फ़िल्मो में कैबरे का युग आया तो इन्होंने इसमें भी अपनी श्रेष्ठता बनाए रखी. इनकी एक-एक अदा लोगों को प्रभावित करती रही.

    भोजपुरी फ़िल्म हो या हिंदी, अपने नृत्य और अभिनय कौशल से इन्होंने आलोचकों को प्रशंसा करने पर मजबूर कर दिया.

    गीत गाता चल, दूर का राही, सौदागर, लाल पत्थर, दो चेहरे, जॉनी मेरा नाम और फिर रामायण की कैकेयी- हर रंग में, हर ढंग में, पदमा ने अपनी छाप छोड़ी है.

    पदमा खन्ना की माँ कहा करती थी- ये तो सोते समय भी पैरों से ताल दिया करती है.

    बहुमुखी प्रतिभा की धनी पदमा खन्ना आजकल अमरीका के न्यू जर्सी शहर में अपना नृत्य विद्यालय चलाती है. मुझे उनसे बात करने का मौक़ा मिला.

    मेरे पिता का देहांत बहुत पहले हो गया था. मेरी माँ ने घर, समाज सबसे ऊपर होकर मुझे कत्थक सिखाया. नृत्य की शिक्षा पूरी होने के बाद मै मंच पर शो करने लगी. उस समय मेरी उम्र कोई 12-13 साल की थी.

    कुछ उम्र का जुनून भी कह सकती हैं. मुझे लगा की फ़िल्मो में जाना चाहिए. मैंने अपनी इच्छा माँ को बताई तो वो बोली, मै तुमको लेकर मुंबई नहीं जा सकती और न ही लोगों से मिलवाने ले जा सकती हूँ. अगर कोई अवसर अपने आप आ जाएगा तो मैं कोशिश कर सकती हूँ.

    माँ भी क्या करती, वो 35 साल की थी जब पिता जी नहीं रहे. अकेली दुनिया से कितना लड़ती वो. तो मैंने भगवान से प्रार्थना की किसी तरह से मुझे फ़िल्मों में पहुंचा दो.

    भगवान ने मेरी सुन ली और पता चला की नए कलाकारों के लिए कलकत्ता में एक नृत्य प्रतियोगिता होने वाली है और उसमें जीतने वाले को एक बहुत बड़े शो में नृत्य करने का मौक़ा मिलेगा.

    मैने उसमें नृत्य किया और प्रथम स्थान पाया. मुझे बड़े स्टेज पर नृत्य करने का मौक़ा मिला, जहाँ कुंदन कुमार जी ने मुझे देखा और उस कार्यक्रम के संचालक से कहा कि वे एक भोजपुरी फ़िल्म बना रहे हैं और उसमें मुझे लेना चाहते हैं. बस यहीं से हुई मेरे फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत.

    बहुत से लोग यही जानते हैं कि मेरी पहली हिंदी फ़िल्म मेहरबान है पर मेरी पहली फ़िल्म थी साज़ और आवाज़. सुबोध जी जब फ़िल्म बना रहे थे, तो उन्हें नए चेहरे की तलाश थी.

    किसी ने उन्हें बताया कि भोजपुरी फ़िल्म में एक नई लड़की आई है. बस उन्होंने मुझे देखा और फ़िल्म में मौक़ा दिया.

    हां, ये सच है कि मैंने फ़िल्मी दुनिया में अभिनेत्री के रूप में आई थी, लेकिन लोगों को जब पता चला कि मै प्रशिक्षित नृत्यांगना हूँ तो मुझे उसके भी ऑफ़र आने लगे.

    चेतन आनंद ने अपनी फ़िल्म जॉनी मेरा नाम में मुझे डांसर की भूमिका दी. वो डांस बहुत हिट हुआ बस यहीं से मुझे डांस के ऑफ़र आने लगे और लोग भूलते गए कि मैं अभिनेत्री भी हूँ.

    क्या आपको इस बात का दुख है कि आप डांसर बन के रह गईं जबकि आप एक अच्छी अदाकारा भी हैं?

    नहीं, मुझे कोई गिला नहीं है क्योंकि मैंने तो नृत्य सीखा ही था. मेरा पहला प्यार तो नृत्य ही था. फिर मुझे जो जगह मिली उससे मैं बहुत ख़ुश हूँ.

    सेट पर घटी दो घटनाएँ ऐसी हैं, जो आज भी मुझे याद है. रामपुर का लक्ष्मण की शूटिंग हो रही थी. एक सीन में मुझे शत्रुघ्न सिन्हा पर चाकू फेकना था.

    शूटिंग के समय शत्रुघ्न जी बैठे थे, मुझको एक जगह बताई गई कि यहाँ पर छुरी फेंकोगी तो ऐसा लगेगा कि शत्रुघ्न को लग रही है. मुझे वहाँ से कुछ और ही दिख रहा था. लेकिन मुझे वहीं से चाकू फेंकने को कहा गया.

    जैसे ही मैंने छुरी फेंकी वो कैमरामैन के हाथ को फाड़ती हुई लकडी पर जा लगी. उसका मांस निकल गया ख़ून बहने लगा. मैं तो कांपने लगी. मैंने कहा कि अब नकली छूरी मंगवाइए तभी करुँगी शूटिंग.

    दूसरी घटना जो मुझे आज भी याद है. वो चुनौती फ़िल्म की शूटिंग के समय की है. उसमें मेरा किरदार एक डाकू का था. उसमें नीतू सिंह भी थीं.

    जहाँ शूटिंग होनी थी वहाँ एक ओर खाई थी और दूसरी ओर पहाड़ था. तीसरे दिन की शूटिंग में फ़िरोज़ जी को मुझको पकड़ना था.

    रास्ते पर एक तरफ से मैं और डैनी जी और हमारे साथी थे और दूसरी तरफ से फ़िरोज़ जी थे. शूटिंग होनी थी तो सारे रास्ते बंद कर दिए गए थे और वहाँ किसी के भी आने-जाने पर पाबंदी थी.

    शूटिंग शुरू हुई, हमारी तरफ से नीतू जी निकल गईं. हम अभी चलना शुरू ही हुए थे कि मैंने देखा एक आदमी अपने दो बैलों के साथ हमारी तरफ ही आ रहा है.

    यहाँ पता नहीं क्या परंपरा थी कि दो बैलों को आपस में बांध के रखते हैं. मेरे तो होश उड़ गए. मैं चिल्ला पड़ी डैनी जी देखिए वो हमारी ही तरफ आ रहा है. डैनी जी ने कहा रुको नहीं बस चलती जाओ, निकल जाओ. मैं पीछे जा के फ़िरोज़ को रोकता हूँ.

    मैंने उनका कहना माना और मै निकल गई. लेकिनर मेरे पीछे जो मेरे साथी कलाकार आ रहे थे वो नहीं निकल पाए तब तक बैल आ गए उनकी रस्सी में एक कलाकार फँस गया और वो खाई में गिर गया.

    बैल भी खाई में गिर गए. एक तो मर गया दूसरा बुरी तरह घायल हो गया. हमारा साथी बच तो गया पर उसकी हड्डियाँ टूट गईं थी. आज भी इनको याद करके मै सिहर उठती हूँ.

    बहुत ही अच्छा अनुभव था. ये शूटिंग बांग्लादेश और भारत की सीमा पर स्थित एक गाँव में हो रही थी. उस गाँव तक पहुँचने के लिए पहले दो घंटे तक कार से जाना पड़ता था उसके बाद एक नदी थी, जिसे पार करने में नाव से क़रीब एक घंटा लगता था.

    दोपहर बाद से उस नदी का पानी उतर जाता था. अमिताभ बहुत मस्ती करते थे. कहते थे- इस जगह इसलिए शूटिंग हो रही है कि कोई भाग न सके.

    जीवन के सफ़र में फूल है तो कांटे भी हैं. जहाँ मुझे इतना प्यार मिला वहीं बहुत सी बातें भी सुनने को मिलीं.

    मिस्त्री जी (जाने-माने कैमरा मैन) ने कहा पता नहीं कहाँ से पकड़ लाते हैं न नाक सुंदर है, न आँख, शक्ल भी अजीब सी है, क्या करूँ इसका. मैं ये सब सुन रही थी. उस दिन मैं बहुत रोई थी.

    पहली कोई बात भुलाई नहीं जा सकती. भोजपुरी फ़िल्मों का मेरे जीवन में विशेष स्थान है. मुझे उसमें काम करने में बहुत आनंद आया था और इसकी वजह से ही तो मुझे हिंदी फ़िल्म मिली थी.

    रामानंद जी के साथ मैं पहले भी काम कर चुकी थी. जब उन्होंने ये सीरियल बनाने की सोची तो मुझे फ़ोन करके बुलाया और जब मिलने पहुंची तो उन्होंने बताया की वे रामायण बनाना चाहते हैं और क्या मैं कैकेयी का किरदार करुँगी?

    मैं सोच में पड़ गई. मैंने कहा लोग नहीं पसंद करेंगे क्योंकि कैकेयी निगेटिव किरदार है लेकिन उन्होंने कहा कि रामायण का कोई भी चरित्र लोग भूल सकते हैं पर कैकेयी को सदा याद रखेंगे.

    उनकी बात मान कर मैंने ये रोल स्वीकार कर लिया. सच मानिए उसके बाद लोग हमेशा इसी रोल की चर्चा करते थे.

    भारत में एक मेहता कांड हुआ था. उस समय स्कूल से एक ग़लत बच्चे को उठा लिया गया. कुछ दिनों के बाद उसकी लाश मिली थी. उसी स्कूल में मेरा भी बेटा पढता था. हम तो बहुत डर गए थे. हमने सोचा कि चलो अमरीका चलते हैं. ग्रीन कार्ड हमारे पास था. बस आ गए अमरीका.

    मुझे जीवन साथी के रूप में जगदीश मिले, ये मेरी ख़ुशकिस्मती है. हमारी दो बेटियाँ और एक बेटा है. बेटियों की शादी हो गई है वो अपने-अपने घर में ख़ुश हैं. बेटा हमें हमारे काम में मदद करता है.

    मेरी एकेडमी का नाम है 'इंडियानिका' हमने और जगदीश जी ने मिलके इसको 1997 में खोला था. आज इसमें क़रीब 150 विद्यार्थी हैं.

    वर्ष 2008 में न्यूयॉर्क में राम लीला किया था जिसमें 76 लोगों ने भाग लिया था. ये अपने आप में अकेला ऐसा शो था जिसको देखने दूर-दूर से लोग आए थे. हम हर साल अपनी एकेडमी का वार्षिक उत्सव चमकते सितारे के नाम से करते हैं

    सारे तो नहीं पर कुछ जरूर सीखना चाहते हैं. हमने एक नियम बनाया है कि जो भी डांस सीखना चाहता है उसको पहले छह महीने कत्थक सीखना होगा. फिर मैं फ़िल्म के गानों पर भी नृत्य सिखाती हूँ.

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