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#FirstReview: अक्टूबर, वरूण धवन के करियर का बेस्ट इसे माना जाएगा
वरूण धवन स्टारर अक्टूबर खाड़ी देशों में रिलीज़ हो चुकी है और फिल्म को वहां के क्रिटिक्स ने शानदार रिस्पॉन्स दिया है और फिल्म के बारे में बेहतरीन बातें भी लिखी गई हैं। जानिए खाड़ी देशों के क्रिटिक्स ने फिल्म को दिए हैं कितने नंबर।
नेशनल
अवार्ड
विनिंग
डायरेक्टर
शूजित
सरकार
वरूण
धवन
और
बनिता
संधू
के
साथ
अक्टूबर
लेकर
आए
हैं।
फिल्म
को
देखकर
ये
तय
है
कि
वरूण
धवन
को
एक्टिंग
भी
आती
है।
हालांकि
कुछ
क्रिटिक्स
की
मानें
तो
फिल्म
ज़बर्दस्ती
की
आर्ट
फिल्म
बनाने
के
चक्कर
में
कई
जगह
फीकी
पड़
जाती
है।
फिल्म की कहानी एक शॉर्ट फिल्म के लिए अच्छी है लेकिन पूरी फिल्म के तौर पर इसे देखना बीच बीच में ऊबाऊ होता है। फिल्म के मुख्य कलाकारों का अभिनय बेजोड़ है लेकिन अक्टूबर में उत्साहिक करने वाला कुछ नहीं हैं। फिल्म की ट्रैजिक कहानी है और बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है।
ये
उस
तरह
की
फिल्म
है
जिसे
ज़्यादा
आर्टिस्टिक
होने
में
और
बेतुका
सा
गंभीर
माहौल
बनाने
में
मज़ा
आता
है
जो
कहीं
कहीं
आपके
सब्र
की
सीमा
तोड़ेगा।
आप वरूण धवन के लिए अपना दिल बिछा कर रख देना चाहेंगे वो अपने किरदार को इतनी मासूमियत के साथ जीते हैं। उन्होंने अपनी सारी माचो इमेज को त्याग कर खुशी खुशी इस दुखी रोल को करने के लिए जान लगा दी है।
बात
करें
बनिता
संधू
की
तो
उन्होंने
एक
ठीक
ठाक
हिंदी
फिल्म
डेब्यू
कर
लिया
है।
शिऊली
अईयर
का
उनका
किरदार
और
उनकी
बड़ी
आंखे
कापी
कुछ
कहने
की
कोशिश
करती
है।
वहीं
उनकी
मां
के
किरदार
में
गीतांजलि
राव
दिल
जीत
ले
जाती
हैं।
लेकिन इन सब खामियों के बावजूद अक्टूबर आपका दिल जीतेगी क्योंकि फिल्म असल है। रियल लगती है। ज़बर्दस्ती का मेलोड्रामा बहुत कम है और वरूण धवन वाकई चौंकाते हैं।
लेकिन
फिल्म
की
सबसे
बड़ी
खामी
ये
है
कि
इतना
कुछ
कहने
के
बाद
भी
फिल्म
खाली
रह
जाती
है।
आप
पर
कोई
असर
नहीं
छोड़ती
है।
कभी
कभी
आप
खुद
वो
इमोशन
महसूस
करने
की
कोशिश
करने
में
थक
जाते
हैं।
इसलिए
अगर
आपको
शिऊली
और
डैन
से
जुड़ाव
महसूस
नहीं
होता
तो
खुद
को
दोष
मत
दीजिएगा।
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