twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    लंदन में प्राचीन वाद्यों की झनकार

    By ममता गुप्ता
    |

    म्यूज़िम में कई भारतीय वाद्य रखे गए हैं
    ऐसा ही एक संग्रहालय है हॉर्निमैन म्यूज़ियम जहां इन दिनों भारत के लोक वाद्यों की एक प्रदर्शनी लगी हुई है.

    ढोल, ढफ़, एकतारा, खड़ताल, पुंगी, रबाब, सरिंदा जैसे लोक वाद्य अगर आपको लंदन में देखने को मिलें तो अचानक आप सशरीर भारत के किसी ग्रामीण अंचल में पहुंच जाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.

    संग्रहालय के उपाध्यक्ष रॉल्फ़ किलियस ने केरल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, असम और अरुणाचल प्रदेश में छह महीने बिताए और बहुत से लोक वाद्यों का संग्रह किया.

    इस प्रदर्शनी की सह आयोजक मार्गरेट बर्ली बताती हैं कि इसका उद्देश्य क्या है, " इस प्रदर्शनी का उद्देश्य हॉर्निमैन म्यूज़ियम में मौजूद भारतीय संगीत वाद्यों के ऐतिहासिक संग्रह को दिखाना तो था ही, साथ ही हम उन लोक वाद्यों को भी दिखाना चाहते थे जो सन 2000 से हमने ब्रिटिश लायब्रेरी के साउंड आरकाइव के साथ मिलकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों से इकट्ठा किए."

    भारत की लोक संगीत परंपरा बड़ी समृद्ध है और हर क्षेत्र की अपनी अलग विशेषता है.

    इनमें जनजातियों की संस्कृति की झलक मिलती है जो प्राचीन होने के साथ साथ एकदम अलग है. उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के सोरा समुदाय के लोग ढेरों उत्सव मनाते हैं.

    हॉर्निमैन म्यूज़ियम

    लंदन के फ़ॉरेस्ट हिल इलाक़े में स्थित इस हॉर्निमैन म्यूज़ियम को लंदन के चाय विक्रेता फ़्रैडरिक जॉन हॉर्निमैन ने 1901 में बनवाया था.

    उन्होने 1860 से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कलाकृतियों का संग्रह करना शुरु किया. उनका सपना था कि पूरी दुनिया को फ़ॉरेस्ट हिल ले आएं. और ये पूरा भी हुआ.

    उत्सवम प्रदर्शनी देखने आए पॉल कहते हैं,"प्रदर्शनी बहुत ही रोचक है. मैं कोई दो साल पहले भारत गया था. मैं गिटार बजाता हूं इसलिए मैं यह जानना चाहता था कि भारत में गिटार जैसे वाद्य कितने रूपों में मिलते हैं और मैं अन्य वाद्यों की विविधता भी देखना चाहता था."

    लोकगीत-संगीत ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग है और बच्पन से ही घुट्टी में मिलता है. चाहे जन्म हो, शादी ब्याह हो, फ़सल की कटाई या पूजा उत्सव सभी अवसरों पर नाच गाना होता है.

    हॉर्निमैन म्यूज़ियम लंदन के केन्द्र से काफ़ी दूर पड़ता है लेकिन इस प्रदर्शनी को देखने बहुत लोग आ रहे हैं.

    प्रदर्शनी बहुत ही रोचक है. मैं कोई दो साल पहले भारत गया था. मैं गिटार बजाता हूं इसलिए मैं यह जानना चाहता था कि भारत में गिटार जैसे वाद्य कितने रूपों में मिलते हैं और मैं अन्य वाद्यों की विविधता भी देखना चाहता था
    प्रदर्शनी की सह आयोजक मार्गरेट बर्ली बताते हैं, "हमें आम लोगों की तरफ़ से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. हमने इस प्रदर्शनी के साथ कई कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं जिससे बहुत लोग आकर्षित हुए हैं. हमने संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जिनमें भारतीय कलाकारों और यहां रह रहे कलाकारों ने हिस्सा लिया."

    इस प्रदर्शनी में वाद्यों के साथ-साथ विडियो भी दिखाए जा रहे हैं. इससे लाभ ये होता है कि दर्शक, स्थानीय कलाकारों को अपने परिवेश और पारंपरिक वेश भूषा में ये वाद्य बजाते देख पाते हैं.

    क्षेत्रीय संगीत परंपरा

    यह अनुभव बच्चों को भी आकर्षित करता है. एड्रियन अपनी बच्ची को साथ लाए थे. वो कहते हैं, "मेरे ख़याल से इन्होने इस प्रदर्शनी का ख़ूब आनंद उठाया है. इसमें बच्चों के लिए झलकियां हैं, कुछ ट्रेल हैं, रंग भरने की व्यवस्था है. अच्छी प्रदर्शनी है."

    मैंने एड्रियन की बिटिया से बात करने की बड़ी कोशिश की लेकिन वो सिर झुकाए अपने सामने रखे पर्चे पर बनी शंख की आकृति में रंग भरती रही.

    हां नन्हें काइल बात करने को ज़रूर तैयार हो गए. उनका भारत से नाता जो है, उनके दादा भारत से त्रिनिदाद जा बसे थे.

    काइल बताते हैं, "मैं कभी भारत नहीं गया, लेकिन मैं उस संस्कृति के बारे में जानना चाहता हूं जहां से मेरे दादा जी आए थे. और इन्होने सब कुछ बहुत ही अच्छी तरह से प्रदर्शित किया है जिससे सब कुछ समझना बहुतआसान है."

    मैं कभी भारत नहीं गया, लेकिन मैं उस संस्कृति के बारे में जानना चाहता हूं जहां से मेरे दादा जी आए थे. और इन्होने सब कुछ बहुत ही अच्छी तरह से प्रदर्शित किया है जिससे सब कुछ समझना बहुत
    लोक वाद्य शास्त्रीय वाद्यों की तरह परिष्कृत नहीं होते. आमतौर पर इन्हे स्थानीय कलाकार ही बनाते हैं. इसलिए इनमें स्थानीय सामग्री का ही प्रयोग किया जाता है जैसे अरुणाचल प्रदेश के मोन्पा समुदाय के लोग याक के सींघ से बना बिगुल बजाते हैं.

    और दाह नाम का बड़ा सा ढोल बजाकर याक पर प्रतिष्ठित बुद्ध की प्रतिमा के आस पास नाचते हैं

    उधर भारत के दक्षिणी राज्य केरल में भी बहुत से लोक वाद्य हैं. केरल के मंदिरों में विशेष अवसरों पर मंदिर के कलाकार तकिल नामक ताल वाद्य को कमर से बाँध कर बाएँ हाथ की उंगलियों और दाएं हाथ में लकड़ी की घुमावदार छड़ी से उसे बजाते हैं.

    आमतौर पर तकिल को नादस्वरम के साथ बजाया जाता है जो शहनाई जैसा वाद्य है.

    भारतीय लोक वाद्यों की यह प्रदर्शनी अभी और शहरों का भ्रमण भी करेगी और जो लोग भारतीय संगीत को केवल सितार और रविशंकर से जोड़ते हैं उन्हें यह देखने का अवसर मिलेगा कि भारत की क्षेत्रीय संगीत परंपरा कितनी समृद्ध है.

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X