Just In
- 11 min ago Bollywood News Live- ईडी ने जब्त की राज कुंद्रा की संपत्ति, सलीम खान ने फायरिंग पर खुलकर की बात
- 10 hrs ago VIDEO: भगवान कृष्ण के सामने सीमा ने की अश्लीलता, वीडियो देख भड़के लोग बोले- कौन से कोठे पर...
- 10 hrs ago इस एक्टर ने उधार के कपड़े मांगकर की थी शूटिंग, 35 लाख में बनी फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर..
- 11 hrs ago बधाई हो! 64 की उम्र ने नीना गुप्ता ने रियल लाइफ में शेयर की प्रेग्नेंसी की गुड न्यूज़, बोलीं- हमारे बच्चों का
Don't Miss!
- Lifestyle Strawberry Lassi : गर्मियों में कोल्ड ड्रिंक पीने की जगह झटपट बनाएं स्ट्रॉबेरी लस्सी, यह रही रेसिपी
- News West Bengal Lok Sabha Chunav Live: पश्चिम बंगाल की तीन सीटों पर हो रहा है मतदान
- Education Jharkhand Board 10th Result 2024: कल आयेगा झारखंड बोर्ड 10वीं का परिणाम, कैसे चेक करें JAC Matric Result
- Finance Quarter 4 Result: Bajaj और Infosys ने जारी किया चौथे क्वार्टर का रिजल्ट, दोनों को मिला है बंपर मुनाफा
- Technology डॉक्सिंग क्या होती है, क्या इसके लिए जेल जाना पड़ सकता है?
- Travel बोरिंग जिंदगी से चाहिए ब्रेक तो घूम आएं ये 6 बटरफ्लाई पार्क, जहां फूलों में रंग भरती हैं तितलियां
- Automobiles टोल प्लाजा पर अब नहीं होंगे ये बोर्ड! केंद्र सरकार ने लिया अहम फैसला, जानें डिटेल्स
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
'मैंने अपना फोकस कभी नहीं छोड़ा'
उन्होंने तकलीफ़ें सही, जिल्लत बर्दाश्त की लेकिन हार नहीं मानी और न ही कभी कुछ और करने की सोची.
अंधेरी के अपने फ्लैट में बातचीत के दौरान वो खुद ही अपने संघर्ष की परतें खोलते रहे.
मधुर को बचपन से ही फ़िल्में देखने का जूनून था और शायद इसीलिए उन्होंने डीवीडी किराए पर देने का काम शुरु किया.
वो बताते हैं, ‘ मैं तो निम्न मध्यवर्गीय परिवार से हूं. उन दिनों लोग सीडी, कैसेट और डीवीडी पर फ़िल्में देखते थे और मुझे लगा ये धंधा ठीक है. मैं बांद्रा से अंधेरी साइकिल पर डीवीडी देने आता था. गणपति और अन्य उत्सवों में सड़कों पर फ़िल्में देखता था.
मुंबई ड्रीम्स शृंखला के तहत आज डीवीडी किराए पर देने से लेकर नेशनल अवार्ड जीतने तक का सफ़र तय करने वाले निर्देशक मधुर भंडारकर के संघर्ष की कहानी पेश है.
धीरे धीरे धंधा जम गया और मधुर के पास क़रीब 1700 फ़िल्में आ गईं. मधुर कहते हैं कि उन्होंने दो तीन साल में ही ये सारी फ़िल्में देखी, मराठी, अंग्रेज़ी, हिंदी, बांग्ला सारी फ़िल्में वो देखते थे.
ग्रैजुएट नहीं हूं मैं
मधुर की तीन फ़िल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है
गुरु दत्त और विजय आनंद से ख़ासे प्रभावित मधुर का धंधा जब बंद हो गया तो उन्होंने फ़िल्मों में जाने की सोची. वो कहते हैं, ‘ मैंने लाइफ में फ़िल्में ही देखी थीं तो मुझे लगता था कि इसी में कुछ कर सकूंगा. मैंने फ़िल्म इंस्टीट्यूट पूना में अप्लाई किया तो मेरा एडमीशन नहीं हुआ क्योंकि मैं ग्रैजुएट नहीं था.
मधुर ने हार नहीं मानी और कुछ निर्देशकों के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर का काम शुरु किया. आगे चलकर उन्हें रामगोपाल वर्मा को असिस्ट करने का मौका मिला. ये काम कैसे मिला, वो कहते हैं, ‘ मैं रामू जी से काम मांगने गया तो उन्होंने पूछा कि पहले क्या किया, मैंने कहा कि मेरा डीवीडी का धंधा था तो उन्होंने मुझे रख लिया. असल में पहले रामू भी यही काम किया करते थे.
मधुर ने रामगोपाल वर्मा के साथ शिवा, द्रोही और रँगीला में काम किया लेकिन इसके बाद वो अपने बलबूते फ़िल्म बनाने की कोशिश में लग गए.
वो बताते हैं, ‘ नब्बे के दशक में फॉर्मूला फ़िल्में बनती थीं. मैं रियलिस्टिक सिनेमा बनाना चाहता था. फाइनेंसर नहीं मिले. बाद में मैने तय किया एक फॉर्मूला फ़िल्म बनाने का.
निर्देशक के तौर पर मधुर की पहली फ़िल्म त्रिशक्ति थी जो बुरी तरह फ़्लाफ रही. मधुर हंसते हुए बताते हैं, ‘ यह पूरी फॉर्मूला फ़िल्म थी लेकिन इस बी ग्रेड फ़िल्म को किसी ने पूछा तक नहीं. रिलीज़ देर से हुई तब तक इसके हीरो मिलिंग गुनाजी और शरद कपूर का मार्केट डाउन हो चुका था. बहुत बुरी तरह फ़्लाप हुई.
मैं
फ्लॉप
डाईरेक्टर
था
तो
मुझे
पार्टी
में
लोग
नहीं
बुलाते
थे.
मैं
किसी
के
साथ
जाता
तो
हीरो
हीरोईन
मुझसे
कतरा
जाते
थे |
इतना ही नहीं मधुर को पार्टियों में नहीं बुलाया जाता. वो बताते हैं, ‘ मैं फ्लॉप डाईरेक्टर था तो मुझे पार्टी में लोग नहीं बुलाते थे. मैं किसी के साथ जाता तो हीरो हीरोईन मुझसे कतरा जाते थे लेकिन मैं फिर भी काम की तलाश करता रहा.
हालांकि त्रिशक्ति के तकनीकी पक्ष को फ़िल्म इंडस्ट्री में सराहा गया और कई लोगों ने मधुर को टेक्नीकल क्षेत्र में काम करने की सलाह दी. मधुर ने मना कर दिया क्योंकि उन्हें तो निर्देशक ही बनना था.
मिल गया मौका
आगे चलकर मधुर ने कम बजट में चादंनी बार बनाई जो सुपर हिट रही. फिर आई पेज 3 और फिर ट्रैफ़िक सिग्नल. चाँदनी बार और पेज 3 सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म बनी तो मधुर को ट्रैफ़िक सिग्नल के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय अवार्ड मिला.
अब उनको काम की दिक्कत नहीं है और वो सफल निर्देशक हैं.
वो संघर्ष कर रहे लोगों को एक ही सलाह देते हैं, ‘ चाहे आप फ़िल्म लाइन में हैं या किसी और क्षेत्र में. अपना फ़ोकस मत छोड़िए. जो करना है उसी पर ध्यान केंद्रित रखिए.
मधुर कहते हैं, ‘ लोग रास्ता भटकते हैं. कोई डायरेक्टर बनने आता है. बाद में टेलीविज़न में हीरो बन जाता है. कोई कुछ करने आता है कुछ और करने लगता है. ऐसे में सफलता नहीं मिलती. फोकस रखें तो तकलीफ के बाद भी सफलता मिल जाती है.
तकलीफ़ों में पले बढ़े मधुर अपने दोस्तों को आज भी नहीं भूले हैं. लोग उन्हें पहचानते हैं और रास्तों में भीड़ लग जाती है लेकिन वो अभी भी अपने पुराने दोस्तों से मिलने जाते हैं, सड़क पर बड़ा पाव खाते हैं क्योंकि उनके शब्दों में इन्हीं से उन्हें अपनी फ़िल्मों के लिए प्रेरणा मिलती है.
मधुर भंडारकर के संघर्ष भरे जीवन पर अपनी राय hindi.letters @bbc.co.uk पर भेजें
-
बुशरा अंसारी ने 66 साल की उम्र में किया दूसरा निकाह, जानिए कौन हैं एक्ट्रेस के शौहर
-
Haryanvi Dance Video: स्टेज पर कूद-कूदकर डांस करती दिखी सपना चौधरी, पतले से सूट को पहन मचाया धमाल
-
Death News: 27 साल की उम्र में यूट्यूबर एंग्री रैंटमैन ने दुनिया को कहा अलविदा, 3 दिन पहले ही कही थी ये बात