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    अपर्णा और कोंकणा फिर नज़र आएगीं एक साथ

    By Staff
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    अपर्णा और कोंकणा फिर नज़र आएगीं एक साथ
    पीएम तिवारी

    बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, कोलकाता से

    फिर एक साथ नज़र आएंगी मां-बेटी की जोड़ी. एक ही किरदार में होंगी अपर्णा सेन और कोंकणा सेन.लंबे अरसे बाद मां-बेटी की यह जोड़ी एक साथ परदे पर नज़र आएगी. वैसे तो फ़िल्मों में ऐसी जोड़ियां आम है. लेकिन बात जब अपर्णा सेन और उनकी पुत्री कोंकणा सेन शर्मा की हो तो यह ख़ास हो ही जाती है.इन दोनों ने पहली बार बांग्ला फ़िल्म तितली में एक साथ काम किया था.

    अब यह जोड़ी बांग्ला और हिंदी में बनी इति मृणालिनी में एक बार फिर परदे पर नज़र आएगीं. ख़ास बात यह है कि इसमें दोनों ने फ़िल्म की हीरोइन मृणालिनी की ही भूमिका निभाई है. कोंकणा ने मृणालिनी की युवावस्था का किरदार निभाया है तो अपर्णा ने उसके बुढा़पे का.अपर्णा सेन ने ही इस फ़िल्म का निर्देशन किया है. यह फ़िल्म बन कर तैयार है. इसके संपादन का काम लगभग अंतिम दौर में है.

    अपर्णा कहती हैं, ''मैं आमतौर पर अपने निर्देशन वाली फ़िल्मों में अभिनय नहीं करती. लेकिन इस फ़िल्म के किरदार के लिहाज़ से ऐसा करना ज़रूरी था. कोंकणा और मेरी बॉडी लैंग्वेज और बातचीत का तरीक़ा काफ़ी मिलता-जुलता है. इस फ़िल्म की हीरोइन मृणालिनी की युवावस्था और बुढ़ापे के किरदारों में समानता नज़र आनी चाहिए थी. इसलिए मैंने इसमें बुज़ुर्ग किरदार को निभाने का फ़ैसला किया.''

    कोंकणा कहती हैं, ''मैं इस फ़िल्म में अपने किरदार को लेकर काफ़ी रोमांचित हूं.इसमें मैंने वैसा ही किरदार निभाया है जैसा मेरी मां 70 और 80 के दशक में निभाती थीं. इसके अलावा मृणालिनी की युवावस्था का किरदार निभाना बेहद मज़ेदार और चुनौती भरा था.'' इति मृणालिनी की कहानी एक अभिनेत्री के जीवन के ईर्द-गिर्द बुनी गई है.

    कभी जानी मानी अभिनेत्री रही मृणालिनी बुढ़ापे में अपने उन सुनहरे दिनों को याद करती हुई अक्सर अतीत में डूब जाती हैं. अतीत की यादें उन्हें इतना उदास कर देती हैं कि वह आत्महत्या का फ़ैसला कर लेती हैं. नींद की गोलियां खाने से पहले वह सुसाइड नोट लिख कर क़रीने से रखती हैं. उसके बाद आत्महत्या करने से पहले वह तमाम पुराने फ़ोटो और पत्र नष्ट करने का फ़ैसला करती हैं.

    वह नहीं चाहती कि उनका गुज़रा कल मीडिया की सुर्खियां बनें. यादों का पिटारा खोलने के दौरान अतीत की हर अच्छी-बुरी बातें सिनेमा के रील की तरह उनकी आंखों के सामने घूमने लगती है. उन यादों से गुज़रते हुए वह मौत का ख़्याल दिल से निकाल देती हैं.फिर जीवन की चुनौती से नए सिरे से जूझने का फ़ैसला करती हैं.

    अपर्णा कहती हैं, ''यह फ़िल्म आत्मकथात्मक है. लेकिन मैं यह साफ़ कर देना चाहती हूं कि इति मृणालिनी एक अभिनेत्री, महिला या निर्देशक के तौर पर मेरी कहानी नहीं है.'' कोंकणा को बेहतर अभिनेत्री क़रार देते हुए वे कहती हैं कि मुझे उसके साथ काम करने का इंतज़ार था. कोंकणा कहती हैं कि इस फ़िल्म में 70 और 80 के दशक में फ़िल्म उद्योग की हालत का चित्रण किया गया है. इसलिए इसे पीरियड फ़िल्म भी कह सकते हैं.

    फिल्म के निर्माता श्री वेंकटेश फिल्म्स के श्रीकांत मोहता कहते हैं, "हमने दो वजहों से इस फ़िल्म के निर्माण का फ़ैसला किया. पहली यह कि अपर्णा जी एक महान फ़िल्मकार हैं और दूसरी कि हमें इसकी पटकथा बेहद पसंद आई."

    वे कहते हैं कि लीक से हट कर फ़िल्में बनाने वाले निर्देशकों की पटकथाएं अक्सर कमज़ोर लगती रही हैं लेकिन अपर्णा जी की बात ही कुछ और है. वे अच्छी तरह जानती हैं कि अपने किरदारों, तकनीकी टीम और फ़िल्म से उनको क्या चाहिए.

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