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    नज़रिया: गर्भवती दुल्हन की शादी से ऐतराज़ क्यों?

    'लाली की शादी में लड्डू दीवाना....' से गर्भवती दुल्हन का सीन हटाने की माँग कितनी जायज़?

    By वंदना - बीबीसी संवाददाता
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    कहने को ये एक हिंदी फ़िल्म का सीन भर है- 'द बिग फ़ैट इंडियन वैडिंग' की तर्ज पर एक लड़की की शादी का सीन.

    लेकिन कुछ संगठनों को फ़िल्म 'लाली की शादी में लड्डू दीवाना' के ट्रेलर में ये सीन नागवार गुज़रा है .

    क्योंकि दुल्हन गर्भवती है और उसकी शादी बच्चे के असल पिता से नहीं हो रही.

    शुक्रवार को रिलीज़ हो रही फ़िल्म 'लाली की शादी में लड्डू दीवाना' के इस सीन ने कई लोगों की नींद उड़ा रखी है- कि आख़िर कैसे एक हिंदू गर्भवती लड़की सात फेरे ले सकती है. ये लोग सीन हटवाना चाहते थे.

    बावजूद इसके कि फ़िल्म को सेंसर बोर्ड से सर्टिफ़िकेट मिल चुका है.

    बिन ब्याही माँ

    पर 'नैतिक आधार' पर किसी फ़िल्म से सीन हटवाना कहाँ तक सही है ? और नैतिकता का पैमाना या मापदंड क्या है ?

    अगर कुछ दशक पीछे लौटें तो ऐसी ढेरों हिंदी फ़िल्में हैं जहाँ शादी से पहले हीरोइन माँ बन जाती है.

    तब अकसर इज़्जत ढकने के नाम पर उसकी शादी किसी से कर दी जाती थी, और जो मर्द ये जानते हुए भी शादी के लिए मान जाता था, महानता का लबादा पहने उसे देवता की तरह पेश किया था.

    1969 में आई फ़िल्म एक फूल दो माली ज़बरदस्त हिट थी. लाखों दिलों की धड़कन रहीं साधना को संजय खान से इश्क़ हो जाता है. लेकिन एक हादसे में संजय खान की मौत हो जाती है.

    गर्भवती हो चुकी साधना को 'स्वीकार' करते हैं बलराज साहनी और वहाँ से कहानी अलग मोड़ लेती है.

    तो क्या उस फ़िल्म में एक गर्भवती औरत से शादी करना अनैतिक था ?

    तो नहीं बन पाती कई फ़िल्में

    अगर इसे आधार बनाया जाए तो पता नहीं कितनी ही हिंदी फ़िल्में अनैतिक करार दे दी जाएँगी.

    1969 में आई थी फ़िल्म आराधना जिसने राजेश खन्ना जैसा सुपरस्टार दुनिया के सामने रखा. फ़िल्म में भी शर्मिला टैगोर माँ बन चुकी होती हैं जबकि दुनिया की नज़रों में उनकी और राजेश खन्ना की शादी नहीं हुई है.

    ज़ाहिर है फ़िल्में समाज का आईना होती हैं और भारत में शादी से पहले माँ बनना आज भी स्वीकार नहीं किया जाता.

    पहली दफ़ा तो नहीं है

    कई फ़िल्मों में तो यहाँ तक दिखाया जाता है कि कैसे बिन ब्याही लड़की माँ बनने के बाद मौत को गले लगा लेती है जब मर्द शादी से इंकार कर देता है. सुपरहिट फ़िल्म क़यामत से क़यामत तक का तो आधार ही यही था.

    लेकिन अगर कोई औरत मौत को गले लगाने के बजाए, हालात का सामना करते हुए आगे की ज़िंदगी जीना चाहे तो ? और अगर कोई औरत किसी दूसरे मर्द से खुले आम शादी करना चाहे तो ?

    इसी की झलक फ़िल्म लाली की शादी में लड्डू दीवाना के ट्रेलर में दिखी है. और वैसे भी ये कोई पहली दफ़ा तो नहीं है.

    साल 2000 में आई फ़िल्म क्या कहना में प्रीति ज़िंटा ऐसा कर चुकी हैं. हाँ शायद शादी के जोड़े में सात फेरे का सीन न फ़िल्माया गया हो.

    गाइड में लिव-इन रिश्ता

    फ़िल्म गाइड
    BBC
    फ़िल्म गाइड

    नैतिकता के यही पैमाने होते तो कभी कभी मुझे लगता है कि गाइड जैसी फ़िल्म बन ही नहीं पाती जहाँ शादी-शुदा रोज़ी (वहीदा रहमान) अपने पति को छोड़ राजू गाइड के साथ लिव-इन में रहना बेहतर विकल्प समझती है और बाद में उसे भी छोड़ देती है.

    या विधवा की दोबारा शादी दिखलाती राज कपूर की फ़िल्म प्रेम रोग पर विरोध प्रदर्शन होता.

    फ़िल्म देखने से पहले ही फ़िल्म पदमावती के सेट पर तोड़ फ़ोड़ भी कुछ वैसा ही है कि बिना सुनवाई के फ़ैसला सुना दिया गया हो.

    बेग़ानी शादी में....

    दरअसल बात नैतिकता की नहीं है. और अगर है भी तो जनता जनार्दन को तय करने दीजिए. अगर उन्हें ग़लत लगेगा तो पब्लिक फ़ैसला देगी.

    ऐसी कई फ़िल्में हैं जिन्हें अब क्लासिक का दर्जा हासिल है लेकिन रिलीज़ के वक़्त वो नकार दी गईं- शायद इसलिए कि वो अपने समय से आगे की फ़िल्में थे.

    कहा गया कि उनमें जो मुद्दे उठाए गए थे अभी समाज ने उन्हें स्वीकारा नहीं था- फिर चाहे वो यश चोपड़ा की लम्हे हो, सिलसिला हो या राज कपूर की मेरा नाम जोकर.

    तो लाली की शादी में लड्डू दीवाना में अगर गर्भवती औरत की शादी का सीन है तो उसके अच्छे-बुरे का फ़ैसला सिनेमा देखने वाली जनता को करने दीजिए.

    आप क्यों बेग़ानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह 'बावरे' हुए जाते हैं?

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    BBC Hindi
    English summary
    Why Pregnant woman marriage scene is not accepted in Laali ki shaadi me laaddoo deewana।
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