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हिंदी सीख रहे हैं मैक्समूलर के वंशज
उनकी दीवानगी इस हद तक है कि उन्होंने हिंदी सीखने का ही फैसला कर लिया. शुरूआत उन्होंने प्राइवेट ट्यूशन के साथ की लेकिन अब वो बाकायदा हिंदी की पढ़ाई कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "जब से मैंने हिंदी पढ़ना शुरू किया मेरे लिए हिंदी फ़िल्मों का और बड़ा संसार खुल गया.”
बॉन विश्वविद्यालय से हिंदी और एशियाई अध्ययन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे जर्मन छात्र रिची की पसंदीदा फिल्में हैं 'ओम शांति ओम' और 'गजनी'. वो आमिर खान और शाहरूख खान दोनों के ही फैन हैं.
हिंदी फिल्मों के गाने उनकी ज़बान पर रहते हैं. उनका उच्चारण और लहज़ा बहुत साफ़ है. वे कहते हैं, “हिंदी बहुत खूबसूरत भाषा है और मैं भारत जाना चाहता हूं.” जर्मनी में हिंदी को लेकर ये एक नया ट्रेंड है.
हिंदी सीखने की चाह
खुले बाज़ार और उदारवादी आर्थिक नीतियों के इस दौर में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में अपना विस्तार कर रही हैं और ग्लोबल रोज़गार बाज़ार (जॉब मार्केट) में हिंदी की पूछ बढ़ गई है. हाइन्ज़ वेसलर
खुले
बाज़ार
और
उदारवादी
आर्थिक
नीतियों
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इस
दौर
में
कई
बहुराष्ट्रीय
कंपनियां
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अंतरराष्ट्रीय
संस्थाएं
भारत
में
अपना
विस्तार
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हैं
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ग्लोबल
रोज़गार
बाज़ार
(जॉब
मार्केट)
में
हिंदी
की
पूछ
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गई
है. |
बॉन विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ हाइन्ज़ वेसलर कहते हैं, “जब हम हिंदी पढ़ते थे तो हमारे मन में प्राचीन भारतीय दर्शन और मेधा को जानने की ललक होती थी लेकिन अब बड़े पैमाने पर ऐसे छात्र आ रहे हैं जिनमें से अधिकांश मुंबई की फिल्मों से प्रभावित हैं या फिर उन्हें लगता है कि भारत तेज़ी से विकास कर रहा है और हिंदी सीखने से नौकरी में आसानी होगी.”
दरअसल बॉलीवुड की फ़िल्मों में प्रेम और भावुकता, विवाह के भव्य प्रदर्शन, मंगलसूत्र ,सिंदूर लगाने और पांव छूने के दृश्य यहां लोगों को बहुत सम्मोहित करते है.
इसके साथ ही कई ऐसे युवक-युवती हैं जिनका मानना है कि हिंदी सीखने से नौकरी के लिए उनकी योग्यता और दायरा बढेगा.
उनका मानना है कि खुले बाज़ार और उदारवादी आर्थिक नीतियों के इस दौर में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में अपना विस्तार कर रही हैं और ग्लोबल रोज़गार बाज़ार (जॉब मार्केट) में हिंदी की पूछ बढ़ गई है.
हिट है भारत
20 साल की तान्या पर्यावरणवादी संगठन ग्रीनपीस में स्वयंसेवी हैं और हिंदी सीखने के पीछे उनका यही मकसद है.
हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय में हिंदी की पूर्व अध्यापिका और वर्तमान में बॉन विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ा रहीं अनुराधा भल्ला कहती हैं, “हम छात्रों को व्याकरण और साहित्य पढ़ाते हैं लेकिन सिनेमा में दृश्य और भावों के बिंब उनके लिए भाषा को आसान कर देते हैं.”
हिंदी से ये जुड़ाव लोगों को हिंदुस्तान तक ले जाता है. जर्मन लहजे में हिंदी बोलनेवाली छात्रा लेनामाई दो बार भारत में मुंबई और मसूरी जा चुकी हैं.
वे कहती हैं, "जब मैं वहां लोगों से हिंदी में बात करती हूं तो वो हैरान रह जाते हैं.”
हिंदी और हिंदी सिनेमा के प्रति बढ़े रूझान को देखते हुए अमरीका और ब्रिटेन की तरह जर्मनी के फ्रैंकफर्ट, कोलोन और डजलडर्फ जैसे शहरों के सिनेमाघरों में भी अब नियमित तौर पर हिंदी फिल्में प्रदर्शित की जाती हैं.
इसी तरह बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी बॉलीवुड की फिल्में और फिल्मकार प्रमुखता से शामिल किए जाने लगे हैं.
एक स्थानीय पत्रकार की टिप्पणी है,"भारत आज बिकता है.कोई भी चीज़ जो भारत से जुड़ी हो वो हिट है."