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    यही तकलीफ़ भरी सफलता है: प्रदीप रावत

    By Staff
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    यही तकलीफ़ भरी सफलता है: प्रदीप रावत

    दिल्ली में जन्मे और जबलपुर में पले-बढ़े प्रदीप रावत इस बात से खुश तो हैं कि गजनी भारतीय सिनेमा के इतिहास की ऐसी फ़िल्म है जो पहली बार किसी खलनायक के नाम से बनी लेकिन इस बात की तकलीफ़ भी उन्हें है कि फ़िल्म की रिलीज़ से पहले और सफलता के नए मुकाम रचने के बाद भी फ़िल्म के प्रचार से दूर रखा गया.

    अब भी किसी अख़बार या पत्रिका में उनके बारे में नही लिखा गया. बीस साल पहले 'महाभारत' सीरियल में अश्वत्थामा की भूमिका निभाकर चर्चा में आने वाले और तमिल और तेलगू फिल्मों के सबसे अधिक मांग वाले हिंदी भाषी खलनायक से बातचीत के मुख्य अंश:

    गजनी की इतनी बड़ी सफलता के बाद भी उसमें गजनी की भूमिका करने वाले अभिनेता की चर्चा नही हो रही और न ही उसका प्रचार किया गया. ऐसा क्यों?

    मैं इसमें कुछ नही कर सकता. मैं इतना बड़ा कलाकार नहीं कि इस बात पर प्रतिक्रिया दूँ. हो सकता है यह फ़िल्म के प्रोमोशन का एक हिस्सा हो कि इसे इसी तरह प्रस्तुत किया जाना था.

    लेकिन अब तो इसे रिलीज़ हुए एक सप्ताह हो रहा है?

    बतौर एक अभिनेता यह तकलीफ़ भरी सफलता है. मेरी जगह कोई भी होता तो उसे यह ख़राब लगता लेकिन में इस हैसियत में नही कि इसका विरोध कर सकूँ. लोग आज हिंदी में गजनी को देख पा रहे हैं तो उसमें मेरी एक बहुत बड़ी भूमिका है. मैंने इसे हिंदी में लाने के लिए दो साल मेहनत की.

    आमिर भाई को तमिल और तेलगू का वर्जन दिखाकर उन्हें हिंदी में इसके रीमेक बनाने के लिए प्रेरित करना आसान काम नही था. वे एक ऐसे अभिनेता हैं जो किसी भी भूमिका लिए आसानी से तैयार नही होते.

    क्या आपके नाम से फ़िल्म बनने के बाद प्रचार न मिलने की वजह आमिर हैं, जो ख़ुद को केंद्र में रखते हैं और बाकी कलाकार पीछे चले जाते हैं?

    नहीं कह सकता. इतना बड़ा कलाकार ऐसा नही हो सकता. गजनी की यूएसपी शायद यही है कि उसे छिपा कर रखा जाए. मुझे इस बात का मलाल नही कि मेरा जिक्र नही हो रहा. इस बात की खुशी है कि गजनी को हिन्दी सिनेमा में जगह मिली और जब भी भारतीय सिनेमा की बात होगी, इसके बगैर पूरी नही होगी.

    शोले और मिस्टर इंडिया जैसी फिल्में कभी भी खलनायकों के लिए नही बनी थीं लेकिन मोगेम्बो और गब्बर सिंह अमर हो गए. वैसे ही गजनी भी है. जहाँ तक मेरी बात है तो बरसों बाद बतौर अभिनेता अब मैं तमाम चीजों के बावजूद काफ़ी सुरक्षित महसूस कर रहा हूँ.

    तमिल और तेलगू की फ़िल्म में क्या ऐसा था कि वो तैयार हो गए. ख़बर यह भी है कि यह क्रिस्टोफर नोलीन की फ़िल्म मेमेंतो और क्वान्तिनी की किल बिल से प्रेरित है?

    मैंने केवल किल बिल देखी है. लेकिन इस मामले में यह केवल खलनायक के नाम से बनी फ़िल्म की सूरत में मेल खाती है. जहाँ तक मेमेंतो की बात है तो वो मैंने देखी नही लेकिन मेरी जब निर्देशक मोर्गुदास से बात हुई तो उनका कहना था कि गजनी के पटकथा वो मेमेंतो देखने से पहले ही लिख चुके थे.

    हिंदी, तेलगू और तमिल की गजनी में आपकी भूमिका में फर्क़ क्या है?

    उन दोनों में मेरी दोहरी भूमिका है. जबकि नायक और नायिका की भूमिका सूर्या और आसीन ने ही की है. मुझे याद है दो साल पहले तमिल और तेलगू के वर्जन मुंबई में रिलीज़ हुए थे. मैं अपने दोस्तों को थिएटर में फ़िल्म दिखाने ले गया था. लेकिन उस समय वहां केवल चार आदमी बैठे थे.

    मैंने तभी फ़ैसला किया कि इसे हिंदी में बनाना चाहिए और मैंने मोर्गुदास से कहा कि इस पर काम करें. वो आमिर के साथ इस फ़िल्म को बनाना चाहते थे. मैं आमिर के साथ लगान और सरफ़रोश कर चुका था. लेकिन एक दोस्ती के नाते भी उन्हें इसके लिए तैयार करना आसन नही था.

    यह तय था कि तमिल और तेलगू के बाद भी गजनी आप ही बनेंगे?

    नही. इसके लिए हिंदी और क्षेत्रीय सिनेमा के बड़े बड़े खलनायक की भूमिका करने वाले अभिनेताओं के ऑडिशंस और स्क्रीन टेस्ट हुए थे लेकिन अंत में मोरगू ने कहा कि मैं ही यह भूमिका करुँ. हालाँकि शूटिंग के दौरान भी लोगों को नही बताया जाता था कि मैं ही गजनी हूँ. मेरी मेकअप वैन पर भी एक प्रश्न वाचक निशान लगाकर छोड़ दिया जाता था.

    गजनी के बाद आपको लगता है कि आपके करियर में लगे प्रश्न वाचक चिह्न भी कम हो जाएँगे?

    कोई भी कलाकार एक फ़िल्म की सफलता से सफल नही माना जाता. मैंने अपनी शुरुआत रंगमंच से की और मुंबई में एकजुट संस्था में सतीश कौशिक और रवि वासवानी के साथ काम करते हुए कभी मुख्य भूमिकाएँ नही की. लेकिन मेरी छोटी भूमिकाएं भी लोगों को प्रभावित करती थी.

    तभी स्मिता पाटिल जी ने मेरा नाम रवि चोपड़ा जी को महाभारत में अश्वत्थामा की भूमिका के लिए सुझाया था. उसके बाद में सलमान के साथ मुख्य खलनायक वाली सनम संग दिल, सन्नी देओल के साथ हीरो और अमित जी के साथ मेजर साब जैसी फिल्में भी की.

    लेकिन जब बात नही बनी तो साउथ में फिल्में करने चला गया. अब इसे किस्मत कहें कि मैंने भाषा ना जानते हुए भी करीब पच्चीस फिल्में की और इनमें गजनी के अलावा स्तालिन, लक्ष्मी, अंदरी वादू, साई, देश मुदुरु और चैलेंज जैसी जो फिल्में की उनके चलते मुझे वहां के बेस्ट खलनायक होने का तमगा भी मिला.

    ख़बर है कि अब आमिर आपके साथ महाभारत पर एक लम्बी फ़िल्म या टीवी शो बनाना चाहते हैं?

    आमिर का कहना है कि दुनिया में महाभारत से विशाल और विविधता भर कोई ग्रन्थ नही. उन्हें उसके पात्रों और चरित्रों की समझ है. वे इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाना चाहते हैं लेकिन अभी कोई योजना नही है.

    गजनी के बाद अब आपकी क्या योजनाएँ हैं?

    ऐसा नही है कि मेरे पास गजनी के बात निर्माताओं की लाइन लग गई है. मैं अभी भी वैसा ही छोटा सा अभिनेता हूँ और फिल्मों में प्रस्ताव का इन्तजार कर रहा हूँ. इसके बाद तेलगू की एक फ़िल्म मस्का और हिंदी में रामगोपाल वर्मा की शबरी भी है. इसके अलावा तमिल की एक और फ़िल्म है.

    आपकी पत्नी भी तो साउथ की फिल्मों कि जानी मानी अभिनेत्री हैं?

    हाँ, कल्याणी से मेरी मुलाक़ात मोर्गुदास की ही फ़िल्म स्तालिन की शूटिंग के दौरान हुई थी. उन्होंने तमिल, तेलगू और मलयालम की कई फिल्में की हैं.

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