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    मैं फिल्मों के बिना नहीं रह सकती : फराह खान

    By रामकिशोर पारचा
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    एक टीवी प्रोग्राम में भाग लेतीं कामयाब फ़िल्म निर्देशिका फ़रहा ख़ान
    कोरियोग्राफ़र और निर्देशक फ़राह ख़ान ने फ़िल्मी जगत में अपनी मेहनत के दम पर कामयाबी हासिल की है. हाल ही में माँ बनी फ़राह कहती हैं कि वे जल्द ही फिर से निर्देशन में उतरेंगी क्योंकि वे फ़िल्मों के बग़ैर नहीं रह सकती.

    उनकी माँ मेनका इरानी मशहूर बाल कलाकार रहीं डेज़ी और हनी इरानी की बहन थीं और पिता कामरान खान भी फ़िल्मों में काम करते थे. वे अपने भाई साजिद खान के साथ फ़िल्मों को देखते और जीते हुए बड़ी हुई.

    दरअसल वे कोरियोग्राफ़र सरोज ख़ान से भी आगे की अकेली ऐसी कोरियोग्राफ़र हैं जिन्हें पाँच बार बेस्ट कोरियोग्राफर का अवार्ड मिला और एक बार नेशनल अवार्ड.

    उन्होंने जब फ़िल्म निर्देशन का मन बनाया तो उनकी शाहरूख ख़ान स्टारर पहली ही फ़िल्म 'मैं हूँ ना' ने सफलता का नया मक़ाम रच दिया और जब वे शाहरूख के ही साथ अपनी दूसरी फ़िल्म ओम शान्ति ओम लेकर मैदान में आईं तो वो हिन्दी सिनेमा की सबसे अधिक कमाई वाली फ़िल्म साबित हुई.

    इसे भी उनका जीवट ही कहा जाएगा कि एक साथ तीन तीन बच्चों को जन्म देने के बाद केवल एक महीने बाद ही मुंबई में जब वे पहली बार लोगों के सामने आईं तो उनके चेहरे पर मातृत्व और सफ़लता की चमक तो थी लेकिन गुमान का नामों निशान नहीं था.

    उन्होंने अपनी वापसी स्टार टीवी के एक शो कौन बनेगा सुपरस्टार में जज बनने से की और तीन महीने बाद ही एक बार फिर उसी चैनल पर नए शो नच बलिए में अर्जुन रामपाल और अभिनेत्री करिश्मा कपूर के साथ फिर हाज़िर हैं.

    मुंबई में उनसे जब मुलाक़ात हुई तो वे अपने शो को लेकर ही नहीं बल्कि अपनी और अपने संपादक-निर्देशक पति की आने वाली फ़िल्म को लेकर भी उत्साहित दिखाई दीं.

    लोग आपसे टीवी पर नहीं फिल्मों में कुछ नया करने की उम्मीद कर रहे थे?

    मैं केवल तीन बार ही टीवी पर जज बनकर आई हूँ. दो बार इंडियन आइडल और एक बार दूसरे शो में. नच बलिए मैंने इसलिए स्वीकार किया क्योंकि मैं ख़ुद कोरियोग्राफर हूँ और यही मेरी ज़िंदगी है. फ़िल्म मैं जल्दी ही करूंगी, अभी मैं अपना समय अपने घर और बच्चों को देना चाहती हूँ.

    ऐसे शो में जो लोग चुने गए क्या उन्हें आपने मौके दिए?

    हम सबको बराबर मौके नहीं दे सकते लेकिन कुछ को मैंने अपनी फिल्मों में काम दिया है. मेरा सपना है कि मैं इंडस्ट्री में ऐसे लोगों के संघर्ष को एक नया मक़ाम दूँ.

    आपने जिस मकाम की कल्पना की थी वो पूरी हो गई. अब आप पत्नी, माँ और निर्देशक भी हैं ?

    यह सबको नहीं मिलता. माँ बनना हर स्त्री का सपना होता है और मैं तो एक साथ तीन बच्चों की माँ बन गई हूँ. मैं खुश हूँ कि मैंने अपनी पहली शुरुआत 'जो जीता वही सिकंदर' नाम जैसी फ़िल्म से की और सचमुच उस सपने को पूरा भी किया.

    आपके लिए यह आसान था?-

    नहीं. मैंने जब शुरुआत की तब हिन्दी सिनेमा बदलने के दौर में था. शास्त्रीय संगीत और गायन कहीं पीछे छूट रहा था. मैंने दोनों में तालमेल बिठाकर काम किया. मेरे लिए यह अच्छी बात रही कि मैंने हिंदी सिनेमा के ऐसे लोगों के साथ काम किया जो नई पीढ़ी के अगुआ कलाकार और निर्देशक थे.

    इसीलिए शाहरूख और करण जौहर के साथ आपकी कैमिस्ट्री बन गई है ?-

    शाहरूख़ से मेरी पहली मुलाक़ात कभी हाँ कभी ना के सेट पर हुई थी. तब वो ज़्यादा बात नही करते थे. बस उनकी और मेरी दोस्ती हो गई . करण एक बेहतर इंसान हैं मैं ऐसे लोगों को पसंद करती हूँ .

    और आपके पति शिरीष कुंदर, उनके और उनकी फ़िल्म जानेमन की असफलता के बारे में क्या कहती हैं ?

    सफलता, असफलता, प्रेम और विवाह किसी के हाथ में नहीं. वो मेरी फिल्मों के एडिटर थे. बस ऊपर वाले ने चाहा और हम एक सूत्र में बंध गए. जानेमन एक बेहतरीन फ़िल्म थी. अब नई फ़िल्म जोकर से फिर लोगों के सामने आएँगे.

    आपकी फिल्में और टीवी शो हिट रहे हैं पर ऐसे टीवी शो अब बाज़ार मात्र हैं?

    ऐसे शो लोगों के लिए मंच का काम करते हैं . बाकी उनकी प्रतिभा के ऊपर है. कई बार मुझे दुख होता है जब हम किसी प्रतियोगी को पूरा सुने या परफोर्मेंस देखे बगैर ही बाहर कर देते हैं.

    लेकिन पहले इंडियन आइडल अभिजीत सावंत को आप हमेशा अपने साथ रखती हैं ?

    यह संयोग है कि मैंने जब पहला इंडियन आइडल किया तो वे विजेता थे और दो शो में प्रतियोगी. यह मेरा नही चैनल का चुनाव होता है. मैं इसका फ़ैसला नही करती.

    अगले निर्देशन का फ़ैसला कब करेंगी. आपकी हैप्पी न्यू इयर नाम की फ़िल्म भी अटकी पड़ी है?

    टीवी मैं इसलिए कर रही हूँ कि इसमे मुझे ज़्यादा समय नहीं देना पड़ता जबकि फ़िल्म फुल टाइम जॉब है और थकाने वाला भी. जब बच्चे बड़े हो जाएँगे तो सोचूंगी. मैं फिल्मों के बगैर नही रह सकती.

    आपकी बेहतरीन फिल्में कौन सी हैं ?

    यह सवाल अक्सर मुझसे पूछा जाता है. मैंने करीब सौ फिल्में कीं लेकिन लोगों का मानना है कि दिल तो पागल है मेरी अब तक की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म है. जबकि मैंने मॉनसून वेडिंग, बॉम्बे ड्रीम्स और वेनेटी फेयर जैसे प्रोजेक्ट्स पर भी काम किया.

    और चीनी फ़िल्म के साथ शकीरा और अमेरिकी टीवी वाले प्रोजेक्ट्स ?

    यह ऐसे अनुभव हैं जिन्हें भूलना मुश्किल है. शकीरा को मैंने एमटीवी के लिए उनके हिट गीत हिप्स डोंट लाइ के लिए बॉलीवुड शैली में निर्देशित किया था और चीनी निर्देशक पीटर चंग की फ़िल्म परहैप्स लव ऑस्कर में गई. उस साल पहेली सहित मेरी दो फिल्में ऑस्कर में थी. अमरिकी टीवी के लिए मैंने कुछ नहीं किया था बस उसके एक टीवी शो में एक प्रतियोगी मेरी फिल्मों की प्रशंसा कर रहा था.

    आप एक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कोरियोग्राफर हैं पर अब टीवी पर जज बनना प्रशंसा का काम नही रहा ?

    यह कुछ लोगों के बारे में हो सकता है. मैंने जब भी टीवी पर काम किया तो उसमें जावेद साहब, अन्नू मलिक और विशाल शेखर जैसे लोग मेरे सहयोगी रहे.

    ख़बर तो यह भी है कि करिश्मा आपके साथ जज बनकर नहीं आना चाहती थी और इसलिए उन्होंने चैनल से पचास लाख की मांग की ?

    मालूम नही, मैंने उनके साथ दिल तो पागल है जैसी फ़िल्म की थी . अब इस बारे में मैं क्या कह सकती हूँ. मैं किसी विवाद मैं नही पड़ती.

    फिर ओम शांति ओम के समय मनोज कुमार के साथ क्या हुआ ?

    वह हमने जान बूझकर नही किया था. हमने उनसे माफ़ी मांग ली है.

    अपने भाई साजिद खान के बारे में क्या कहती हैं ?

    उनके बारे में मैं क्या कोई भी कुछ नही कह सकता. वो अपनी तरह के अलग किस्म का आदमी है. उसका मुकाबला नही.

    अपने बच्चों के नामों को लेकर भी आप काफ़ी समय तक पशोपेश में रहीं ?

    हाँ मैं अपनी एक बेटी को लेकर पशोपेश में थी लेकिन अब उनके नाम रख दिए हैं. ज़ार, दिवा और आन्या . मेरा बस चले तो मैं उन्हें एक नाम से पुकारूं.

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