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    शोभा डे के साथ एक मुलाक़ात

    By संजीव श्रीवास्तव
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     शोभा डे बचपन में राज्य स्तर की एथलीट थी उन्होंने लंबी कूद और दौड़ में रिकॉर्ड बनाया था
    बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में इस हफ़्ते की मेहमान हैं देश की जानी-मानी शख़्सियत, आकर्षक और खूबसूरत महिला और लेखिका शोभा डे.

    इस हफ़्ते की मेहमान हैं देश की जानी-मानी शख़्सियत, आकर्षक और खूबसूरत महिला और लेखिका शोभा डे.

    आज शोभा डे को सब जानते हैं, लेकिन जब आप छोटी थीं, स्कूल-कॉलेज जाती थीं क्या तब भी आभास था कि बड़े होकर इतनी कामयाब, बहुमुखी प्रतिभा की धनी और कुछ हद तक विवादास्पद होंगी?

    ये तो नहीं पता, लेकिन यह कह सकती हूँ कि मैं छोटी उम्र से ही जीतना चाहती थी. मैं उस वक्त राज्य स्तर की चैंपियन एथलीट थी. लंबी कूद और दौड़ में तो मेरा रिकॉर्ड कई साल तक अटूट रहा. हॉकी, बास्केटबॉल भी खेलती थी. मेरी तस्वीरें भी तभी से अख़बारों में छपती रही हैं. इसलिए मुझे बाद में अब ये कोई नई बात नहीं लगती हैं.

    साहित्य और बॉलीवुड आपकी ज़िदगी और करियर में एक तरह से घुले-मिले रहे हैं. कभी सोचा था कि लिखना और ग्लैमर आपकी ज़िंदगी में एक साथ रहेंगे?

    सच कहूँ तो मैं कभी ग्लैमर के बारे में उतना नहीं सोचती, जितना लोग सोचते हैं. भगवान ने मुझे जैसा बनाया है, वैसी ही हूँ. जो लोग मुझे ग्लैमरस मानते हैं, उनका शुक्रिया. मेरे लिए ये बात बहुत मायने नहीं रखती. जहाँ तक बॉलीवुड की बात है तो जब मैं एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटर थी, तब मुझे स्टारडस्ट शुरू करने का मौका मिला था. लोगों के नज़रिए से देखें तो बॉलीवुड वाकई ग्लैमरस है. लेकिन मेरे जीवन में बहुत थोड़ा ग्लैमर है और बहुत ज़्यादा मेहनत.

    मॉडलिंग में कैसे आईं?

    17 साल की उम्र में मुझे मॉडलिंग का प्रस्ताव मिला. हालाँकि मुझे इसमें ख़ास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मैं मानती थी कि किसी भी महिला के लिए आर्थिक आज़ादी बहुत ज़रूरी है. इसलिए मैंने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. मॉडलिंग की दुनिया मुझे बहुत चुनौतीपूर्ण लगी और मेरा आत्मविश्वास भी कई गुना बढ़ा.

    मैं छोटी उम्र से ही जीतना चाहती थी. मैं उस वक्त राज्य स्तर की चैंपियन एथलीट थी. लंबी कूद और दौड़ में तो मेरा रिकॉर्ड कई साल तक अटूट रहा. हॉकी, बास्केटबॉल भी खेलती थी. मेरी तस्वीरें भी तभी से अख़बारों में छपती रही हैं
    एक मुलाक़ात का सफ़र आगे बढ़ाएँ, आप अपनी पंसद के गानें बता दें?

    'जाने तू या जाने ना' के गाने मुझे बहुत पसंद हैं. 'जब वी मेट' के गाने भी मुझे बहुत पसंद हैं. 'भूल-भुलैया' का टाइटल गाना भी पसंद है.

    आपके मॉडलिंग के दिनों की ओर लौटते हैं. तो क्या माता-पिता ने भी आपके करियर में मदद की?

    मदद का सवाल ही नहीं है. मॉडलिंग का फ़ैसला मेरा ख़ुद का था. मेरे पिता तो इस फ़ैसले से काफ़ी दुखी हुए थे, लेकिन माँ मुझे ज़्यादा बेहतर जानती थी और उन्हें मुझ पर यकीन था. मैंने भी उन्हें विश्वास दिलाया कि मॉडलिंग में कुछ ऐसा नहीं करुंगी जिससे कि उन्हें शर्मिंदगी या दुख हो. फिर माँ ने शायद पिता को मनाया. मैंने अपना वादा भी निभाया. मैंने कई अच्छी कंपनियों के लिए मॉडलिंग की. मैं करीब पाँच साल तक पॉन्ड्स गर्ल थी. एयर इंडिया, बॉम्बे डाइंग के लिए मैंने मॉडलिंग की.

    उन दिनों का कोई मज़ेदार किस्सा?

    किस्से तो बहुत हैं. एक बार मैं कश्मीर में एयर इंडिया के लिए शूटिंग कर रही थी तो मेरी सहयोगी मॉडल थी मॉरीन वाडिया. उस वक़्त उनकी नुस्ली वाडिया से शादी नहीं हुई थी और रोमांस चरम पर था. नुस्ली वहाँ आ गए और मॉरीन को वहाँ से भगा कर ले गए. अब भी जब मैं मॉरीन से मिलती हूँ तो उन्हें ये किस्सा याद दिलाना नहीं भूलती.

    आप अब भी इतनी सुंदर और खूबसूरत लगती हैं. मॉडलिंग का प्रस्ताव मिले तो क्या स्वीकार करेंगी?

    मुझे बहुत सारे प्रस्ताव मिलते हैं और मैं करती भी हूँ. कई फैशन मैग़जीन के स्टाइल सेक्शन में मैं दिख जाऊँगी. हालाँकि मेरे बच्चों को इससे बहुत हंसी आती है, लेकिन मॉडलिंग से मेरा जो नाता है उसका मैं खूब लुत्फ़ उठाती हूँ.

    मॉडलिंग से पत्रकारिता का रुख़ कैसे हुआ?

    ये काफ़ी रोचक है. मैं मॉडलिंग के लिए क्रिएटिव यूनिट गई थी. उनकी क्रिएटिव डायरेक्टर शिल्पा शाह थीं. शिल्पा गर्भवती थीं और उन्होंने मुझसे कहा कि क्या मैं तीन महीने के लिए कॉपी विभाग में काम संभाल सकती हूँ. मैंने हाँ कहा. फिर मेरा टेस्ट हुआ और उन्होंने मुझे 350 रुपये महीने की नौकरी का प्रस्ताव दिया. जबकि मॉडलिंग से मैं 15 से 20 हज़ार रुपए महीना कमाती थी. उन्होंने शर्त भी रखी कि मॉडलिंग छोड़कर मुझे सिर्फ़ कॉपी राइटिंग करनी होगी. और मैंने भी हामी भर दी.

    ऐसा क्यों किया आपने?

    दरअसल, मॉडलिंग से भी मैं बोर हो रही थी. वैसे भी मॉडलिंग की उम्र 5-6 साल ही होती है. मैंने सोचा कि कुछ अलग करना चाहिए. जहाँ तक सैलरी की बात है तो ये मेरे लिए पॉकेट मनी की तरह थी क्योंकि मैं अपने माता-पिता के साथ रहती थी.

    आप स्टारडस्ट की एडीटर बनीं. फिर सोसायटी, सेलेब्रेटी. कैसा रहा ये सफ़र?

    मैगज़ीन की दुनिया मुझे आज भी आकर्षक लगती है. मेरी बेटी भी मैगजीन की दुनिया में आ गई है. हम दोनों कहानी, हेडलाइन, तस्वीर और तमाम चीज़ों पर खूब चर्चा करते हैं. मुझे लगता है कि मैंने कभी ये दुनिया छोड़ी ही नहीं है.

    आप स्टारडस्ट की एडीटर थीं. उसमें इतने सारे किस्से, गॉसिप और चटपटी कहानियाँ होती हैं. इन कहानियों में कितनी सच्चाई होती है?

    मैं आपको सच बता रही हूँ कि ये कहानियाँ कतई भी बढ़ा चढ़ाकर नहीं लिखी जातीं. नब्बे फ़ीसदी मामलों में तो ये कहानियाँ स्टार खुद मैगज़ीन को देते हैं. ऐसा नहीं है कि कोई जासूस उनके बेडरूम में होते हैं जो ये क़िस्से मैगज़ीन तक पहुँचाते हैं.

    कोई ऐसा किस्सा जिसे लेकर बहुत हंगामा हुआ हो. जिसे लेकर आपको लगा हो कि क्यों मैंने ये कहानी मैगज़ीन में छपने दी?

    जो किस्सा मुझे याद आ रहा है वो राजकपूर की फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' से जुड़ा है. ये फ़िल्म राजकपूर के लिए बहुत अहम थी. ये फ़िल्म मुझे कतई पसंद नहीं आई थी. मैंने इसकी समीक्षा की थी और हेडलाइन दी थी 'सत्यम शिवम बोरडम'. राजकपूर इससे बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने अदालत में मुझ पर मानहानि का मुक़दमा दायर कर दिया. ये मामला कई साल तक अदालत में चला.

    फिर आप लेखिका बनीं. पहली किताब के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली?

    दरअसल, मैं तब कई अख़बारों और पत्रिकाओं में कॉलम लिखा करती थी. पेंग्विन इंटरनेशनल ने भारत में युवा एडीटर डेविड डेविदार को नियुक्त किया. एक दिन डेविड ने मुझसे कहा कि आपके कॉलम मुझे बहुत पसंद हैं. मैं चाहता हूँ कि आप बॉम्बे पर पेंग्विन के लिए एक किताब लिखें. फिर जो हुआ वो अब इतिहास है.

    क्या आपकी दूसरी किताब 'स्टारी नाइट्स' किसी बॉलीवुड के फ़िल्म स्टार की ज़िदगी पर आधारित थी?

    क्योंकि ब्रांड बॉलीवुड इतना बड़ा हो गया है. इसलिए इसका टाइटल बदलकर बॉलीवुड नाइट्स रखा गया है. ये इतनी चर्चित हुई कि इसका पुर्तगाल, फ्रेंच, जर्मन, रूसी, स्पेनिश और दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है. आपको ताज्जुब होगा कि ये किताब आज भी सबसे अधिक बिकने वाली किताबों में शुमार है.

    ये किताब ज़रूर थोड़ी बहुत रेखा की ज़िंदगी पर आधारित थी. लेकिन मैं जब रेखा की ज़िदगी कहती हूँ तो ये हेमा मालिनी और वैयजंती माला की ज़िदगी भी हो सकती है. क्योंकि इस उपन्यास की थीम ये है कि जितनी भी दक्षिण भारतीय अभिनेत्रियाँ यहाँ आती हैं, उनका विवाहित पंजाबी पुरुषों से इश्क चलता है. ये प्यार कभी-कभी विवाह तक पहुँच जाता है और कभी-कभी दिल टूट जाते हैं. तो ये उपन्यास हेमा, रेखा, जयाप्रदा, वैयजंती माला, श्रीदेवी सभी की कहानी है.

    आपने ये काफ़ी रोचक बात बताई. इसकी कोई ख़ास वजह?

    मेरा मानना है कि उनकी परवरिश पारंपरिक तमिल ब्राह्मण परिवार में होती है. जब वो बॉलीवुड में सेट्स और आउटडोर शूटिंग में हट्टे-कट्टे पंजाबी अभिनेताओं के संपर्क में आती हैं तो उनके प्रति आकर्षित हो जाती हैं.

    आपकी ख़ास लेखन शैली की वजह से आपको भारत की जैकी कॉलिन्स माना जाता है. आपको इस तरह की तुलना पसंद है?

    मैं आपको बताना चाहूँगी कि जब अमरीकी पत्रिका टाइम ने मेरा प्रोफ़ाइल लिखने का फ़ैसला किया तो कोई दूसरी महिला मेरी तरह की किताबें नहीं लिख रही थी. टाइम को समझ नहीं आ रहा था कि अपने पाठकों को मेरे बारे में कैसे बताएं तो इसके लेखक एंटनी स्पेत ने कॉलिन्स से मेरी तुलना की.

    एंटनी फिलहाल हाँगकाँग की एक बिज़नेस पत्रिका पावर के संपादक हैं. पिछले हफ़्ते उन्होंने मुझे ई-मेल भेजकर कहा कि वे मेरा इंटरव्यू चाहते हैं. मैंने शर्त रखी कि कॉलिन्स से मेरी तुलना के शब्द वापस लेने पर ही इंटरव्यू दूंगी.

    जब आलोचक आपको कुछ नॉन सीरियस लेखिका बताते हैं. ये तो स्टाइल और आपका पैकेज है जिस वजह से आप चर्चा में रहती हैं. ये सुनकर गुस्सा आता है?

    नहीं. मुझे ये सब सुनकर गुस्सा नहीं आता. क्योंकि मुझे पैकेज पसंद है. ये सब चर्चाएँ चलती रहती हैं. ये बहस चलती रहती है कि क्या गंभीर आर्ट है और क्या नहीं. मायने ये रखता है कि इतिहास आपको किस तरह याद करता है.

    आपकी नई किताब 'सुपर स्टार इंडिया' आज़ाद भारत के 60 साल के सफ़र पर है. संयोग की बात है कि आपकी उम्र भी इतनी है.

    मैंने भी इसीलिए ये किताब लिखी है. मेरी निजी यात्रा और आज़ाद भारत के सफ़र पर ये किताब है. मैं औरत के नज़रिए से किताब लिखना चाहती थीं. इतिहास भी अधिकतर पुरुषों द्वारा लिखा जाता है. महिला देश की संस्कृति और इसके विकास को अलग तरह से महसूस करती है. इसलिए मैंने ये किताब लिखने का फ़ैसला किया.

    महिला के नज़रिए से आप देश की संस्कृति और इसके विकास को देख रही हैं. आपको कैसा लग रहा है?

    मैंने कई जगह लिखा भी है कि अगर मैं ऐसी 10 किताबें भी लिखूं और सात जन्म तक भी भारत में जन्म लूँ तो इसके साथ न्याय नहीं कर पाऊँगी. ये ऐसा देश है जिसके बारे में सब कुछ समझना आसान नहीं है. हम भारतीय बहुत भावुक हैं और ये बहुत शानदार है. भारतीय होने की अनुभूति ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है. यही ताक़त इस देश को अखंड बनाए हुए है.

    आपकी पसंदीदा पुस्तक?

    महाभारत. इसमें जो कहानी है, योजना और रणनीति है, वैसा कहीं और मिलना मुश्किल है. इसमें रिश्तों को जिस खूबसूरती से दिखाया गया है, वह तो लाजवाब है.

    भारत में अंग्रेजी लिखने वालों की मौजूदा दुनिया के बारे में आपकी टिप्पणी?

    आबादी और साक्षरता के लिहाज से पाठक जिस तादाद में होने चाहिए वो तो नहीं हैं. पाठक लाखों में होने चाहिए, लेकिन हम हज़ारों से ही खुश हैं. ऐसे देश में जिसकी आबादी 100 करोड़ से अधिक है वहाँ हम उस किताब को बेस्टसेलर घोषित करते हैं जिसकी पाँच हज़ार प्रतियाँ बिक जाती हैं. हाँ क्षेत्रीय स्तर पर तस्वीर कुछ अच्छी है.

    मुझे बहुत दुख होता है कि पाठकों की तादाद क्यों नहीं बढ़ रही है. लेकिन हालात कुछ बदले हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लेखकों को कुछ मौके मिल रहे हैं.

    आपकी किताब 'स्टारी नाइट्स' बहुत सारी भाषाओं में हैं तो इतना सारा पैसा पाकर ख़ुश हैं?

    नहीं मुझे कोई शिकायत नहीं है. मुझे जब भी रीडिंग के लिए विदेश जाने का मौका मिलता है तो मैं लोगों से बहुत बातें करती हूँ. विदेशियों में भारतीयों के बारे में कई भ्रांतियां हैं, मैं उन्हें दूर करने की कोशिश करती हूँ. मैं सोचती हूँ कि मैं वहाँ अपनी किताब बेचने नहीं, बल्कि इन संशयों को दूर करने जाऊँ.

    अब जबकि ये कहा जाता है कि ये सदी भारत और चीन की है. तब भी क्या लोगों में भारत को लेकर कुछ संशय हैं?

    बिल्कुल. कई घटनाएँ तो चौंकानें वाली हैं. मैं आपको दो महीने पहले की बात बताती हूँ. लंदन में पब्लिशर्स मीट के दौरान हम आपस में बात कर रहे थे कि भारत में इन दिनों खूब गर्मी है. तभी एक प्रकाशक ने मुझसे पूछा कि वहाँ एयर कंडीशनर्स तो होगा न? मुझे ये सुनकर बहुत हैरानी हुई.

    मुझसे जर्मनी में पूछा जाता है कि भारत में अब भी ग़ुलामी है क्या? आपका बाल विवाह हुआ था क्या? महिला होने के नाते आपको बहुत संघर्ष करना पड़ा होगा? ऐसे कई सवाल आते हैं और वो भी वरिष्ठ पत्रकारों से.

    यही वजह है कि जब मैं विदेश में न्यूज़ चैनलों में जाती हूँ तो मैं किताब पर चर्चा की बजाय भारत के बारे में उनकी गलतफ़हमियाँ दूर करनी की कोशिश करती हूँ.

    चलिए आपके विवाह की बात करते हैं. क्या दिलीप डे साहब से आपका पहली नज़र का प्यार था?

    हाँ. वो बहुत रोमांटिक किस्म के इंसान हैं. बहुत जल्द फ़ैसले लेते हैं. उनका आत्मविश्वास का स्तर भी बहुत ऊँचा है. मुलाक़ात के तीन मिनट में ही उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं आपके माता-पिता से कब मिल सकता हूँ. फिर मैंने उनसे कहा कि पहले मुझसे तो पूछ लीजिए कि मैं आपके बारे में क्या सोचती हूँ.

    आपके व्यक्तित्व में एक ख़ास बात है. आप आधुनिक महिला के खांचे पर तो फिट होती हैं, लेकिन थोड़ा बहुत पारंपरिक भारतीय महिला के रूप में भी काफ़ी हद तक फिट हो जाती हैं?

    मैं समझती हूँ कि जहाँ तक परिवार की बात है, वहाँ पारंपरिक या आधुनिक महिला की बात बेमानी है. मैं कोई सामाजिक कार्यकर्ता तो नहीं हूँ और जो कुछ करती हूँ दिल से करती हूँ. मैं दूसरी महिलाओं को कोई उपदेश तो नहीं देना चाहूँगी, लेकिन जहाँ तक संभव हो मैं उनकी मदद करती हूँ.

    शोभा डे को किसी आदमी में सबसे ज़्यादा क्या पसंद है?

    सेल्फ मेड मैन. मुझे 'अमीर बाप के बच्चे' कहलाना पसंद नहीं है. ऐसा व्यक्ति जो स्वाभिमानी हो. वो फ़िल्म, कला, संगीत, व्यापार या जो भी पंसद करे उसे जी-जान से करे.

    आपने फ़िल्म उद्योग को अलग-अलग दौर में क़रीब से देखा है. आपका पसंदीदा दौर कौन सा रहा है?

    मुझे साठ-सत्तर का दशक शम्मी कपूर, राजेश खन्ना, दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद का दौर बहुत पसंद है. अमिताभ बच्चन का 35 साल का शानदार फ़िल्मी करियर बहुत बड़ी उपलब्धि है. लेकिन आज के स्टार ऐसे नहीं हैं जो लंबे समय तक चल सकें.

    मौजूदा अभिनेताओं में आपको कौन पसंद है?

    गोविंदा और शाहिद कपूर. गोविंदा प्रतिभा के धनी हैं, लेकिन उनमें अनुशासन की कमी है. उन्हें वापसी का मौका मिला है और मैं उम्मीद करती हूँ कि वे इसे नहीं गंवाएंगे. जहाँ तक शाहिद कपूर की बात है वे बहुत प्रतिभावान हैं, वे दूसरे शाहरुख़ ख़ान हो सकते हैं.

    अभिनेत्रियों की बात करें तो करीना कपूर बेहतरीन हैं. कपूर ख़ानदान की चौथी पीढ़ी की इस कलाकार का हमने अभी तक का जो अभिनय देखा है वो उनकी काबिलियत का 20 फ़ीसदी भी नहीं है.

    अगर शोभा डे की ज़िदगी पर फ़िल्म बनाई जाए तो किस अभिनेत्री को शोभा डे की भूमिका करनी चाहिए?

    अगर आप किसी और से पूछेंगे तो शायद वो विद्या बालान का नाम लेगा. क्योंकि 'परिणिता' में मेरे और उनकी भूमिका में कुछ समानता दिखी है. लेकिन अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं करीना कपूर का नाम लूँगी.

    एथलीट, उपन्यासकार, लेखिका, मॉडल, पत्रकार, छह बच्चों की मां, अच्छी बीवी. कौन सी भूमिका आपके दिल के नजदीक है?

    मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं किसी एक भूमिका में फिट हूँ. मैंने जो कुछ किया है दिल लगाकर किया है. कभी ये नहीं सोचा कि सिर्फ यही करना है. लेकिन फिर भी कहना चाहूँगी कि मेरे लिए सबसे ऊपर मेरा परिवार है.

    देश की सभी महिलाएँ जानना चाहेंगी कि आपकी खूबसूरती का राज क्या है?

    स्पष्ट कहूँ तो मैंने इसके लिए कुछ ख़ास नहीं किया. खूबसूरत दिखने के लिए मेरे पास वक्त नहीं है और न ही मैं ऐसा करना चाहती हूँ. मेरा मानना है कि जैसा आप महसूस करते हैं, वैसा दिखते हैं.

    आपको सबसे अच्छी सराहना क्या मिली है?

    मुझे ये बताते हुए थोड़ी शर्म तो महसूस हो रही है, लेकिन फिर भी मैं बताना चाहूँगी. पत्रकार ओल्गा टेलिस ने मेरी किताब 'सुपर स्टार इंडिया' पढ़ने के बाद मुझे फ़ोन कर कहा 'इट्स 21st सेंचुरी नॉयपाल'. ये सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा.

    अपने बारे में क्या कहेंगी?

    अनजान लेकिन रोचक पैकेज.

    अपने बारे में कुछ बदलने का मौका मिले तो क्या बदलेंगी?

    कभी-कभी उल-जुलूल सवालों पर मैं अपना धैर्य खो देती हूँ.

    आने वाले वर्षों में शोभा डे से क्या उम्मीद करें?

    किताबें, किताबें और बहुत सी किताबें. तीन किताबों के लिए मैंने अनुबंध किया है और मैं इन्हें ज़ल्द से ज़ल्द ख़त्म करूँगी.

    ('एक मुलाक़ात' बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के अलावा, बीबीसी हिंदी -- मीडियम वेव 212 मीटर बैंड पर और शॉर्टवेव 19, 25, 41 और 49 मीटर बैंड पर - भारतीय समयानुसार हर रविवार रात आठ बजे प्रसारित होता है. दिल्ली और मुंबई में श्रोता इसे रेडियो वन एफ़एम 94.3 पर भारतीय समयानुसार रविवार दोपहर 12 बजे भी सुन सकते हैं.)

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