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    फ़रहान अख़्तर के साथ एक मुलाक़ात

    By संजीव श्रीवास्तव
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    फ़रहान अख़्तर का मानना है कि खुद को डायरेक्ट करना बहुत मुश्किल काम है
    बीबीसी एक मुलाक़ात में इस हफ्ते के मेहमान हैं बॉलीवुड में फ़िल्म निर्देशन में अपना लोहा मनवा चुके और अब अभिनय की पारी शुरू करने वाले फ़रहान अख़्तर.

    इस हफ्ते हमारे मेहमान हैं, फ़िल्म निर्देशन में अपना लोहा मनवा चुके और अब अभिनय की नई पारी शुरू करने वाले फ़रहान अख़्तर.

    आपने लक्ष्य, डॉन, दिल चाहता है जैसी कई खूबसूरत फ़िल्में दी हैं. लेकिन पहले बात रॉक ऑन की. रॉक ऑन में जय श्रीकृष्ण वाली लाइन मुझे बहुत पसंद आई. वो लाइन कहाँ से उठाई?

    दरअसल, फ़िल्म में क़िरदार 10 साल पहले अपनी ही भाषा बोलता था. इससे फर्क नहीं पड़ता कि लोग उसके बारे में क्या बोलते या सोचते हैं, लेकिन 10 साल बाद वो इंवेस्टमेंट बैंकर है और वो उसी भाषा में बात करता है.

    जैसा कि फ़िल्म में आपने देखा होगा कि मैं जिग्नेश भाई और मीरा भाभी को नमस्ते या जय श्रीकृष्णा कहता हूँ. यानी जो व्यक्ति कभी खुद तक ही सीमित था, वो अब अलग-अलग लोगों की भाषा बोलता है.

    रॉक ऑन के बाद लड़कियों की आपके बारे में राय है कि फ़रहान इतना कूल या हॉट है. कैसा लगता है ये सब सुनकर?

    ये सब तो पिछले आठ-नौ साल से चल रहा है. जब मैं छोटा था तो अपनी मां और बहन के साथ रहता था. फिर मेरी शादी हुई. उससे पहले मेरी महिला मित्र थीं. अब मेरी दो बेटियां हैं. तो इस तरह मैं हमेशा महिलाओं से घिरा रहा.

    मैं सोचता हूँ कि लड़कियों को ये लगता होगा मैं सुरक्षित व्यक्ति हूँ. मेरे मन में महिलाओं की बड़ी इज्जत है. मुझे लगता है इसीलिए लड़कियां मेरी ओर आकर्षित होती हैं.

    लेकिन क्या आप भी इन महिला प्रशंसकों के साथ उतना ही सुरक्षित महसूस करते हैं?

    लड़कियों को ये लगता होगा मैं सुरक्षित व्यक्ति हूँ. मेरे मन में महिलाओं की बड़ी इज्जत है
    आप अपने व्यक्तिगत जीवन में जितनी दूरी रखना चाहते हैं, आप उसका जितना ख़्याल रखेंगे, दूसरे भी इसका उतना ही सम्मान करेंगे. जब तक मैं नहीं चाहूँगा कि लोग मुझ पर कूदें तब तक ऐसा नहीं होगा. वो मुझसे हाथ मिलाना चाहते हैं या बात करना चाहते हैं तो उसमें क्या दिक्कत है.

    'दिल चाहता है' बेहतरीन फ़िल्म थी. अब रॉक ऑन. इस फ़िल्म का विचार कैसे आया?

    दरअसल, डायरेक्टर अभिषेक कपूर मेरे ऑफिस में आए. उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने एक कहानी लिखी है और मैं चाहता हूँ कि आप इसे सुनें और इसमें अभिनय करें और गाने गाएँ. मैंने हँसकर कहा कि आप डॉक्टर से मिले. फिर उन्होंने मुझे कहानी सुनाई और मुझे ये बहुत पसंद आई.

    पहले वे इस फ़िल्म के लिए किसी और प्रोड्यूसर की बात कर रहे थे, लेकिन जब मैंने कहानी सुनी तो मैंने कहा कि हो सकता है कि मैं फ़िल्म के लिए गाने न गा पाऊँ या बहुत अच्छा अभिनय न कर सकूँ. और क्योंकि स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है, इसलिए मैं इस फ़िल्म को प्रोड्यूस करना चाहूँगा.मेरे हिसाब से लोग ख़ासकर फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों को एक ‘लेबल में बाँधने लगते हैं. वो डायरेक्टर हो या अभिनेता. इससे कुछ नया करने की प्रेरणा भी मिलती है.

    बीबीसी एक मुलाक़ात में सफर आगे बढ़ाएँ. आप अपनी पसंद के गाने बताएँ?

    मुझे हम दोनों फ़िल्म का गाना 'अभी न जाओ छोड़कर' बहुत पसंद है. दिल चाहता है में मैंने जब 'जाने क्यों...' रिकॉर्ड किया तो मैं उसमें कुछ वैसा ही भाव लाना चाहता था. यानी ये सिर्फ़ गाना नहीं, बल्कि वैसा था जैसे दो लोग बात कर रहे हों. इसके अलावा मुझे आर डी बर्मन, किशोर कुमार और आनंद बख्शी के गाने बहुत पसंद हैं. अमर प्रेम के सभी गाने मुझे बहुत पसंद हैं. 'चिंगारी कोई भड़के', 'रैना बीती जाए', 'ये क्या हुआ' और 'कुछ तो लोग कहेंगे' बहुत पसंद है.

    अब कोई राजेश खन्ना को ख़ास याद नहीं करता. आप उन्हें पसंद करते थे क्या?

    फ़रहान ने 'ब्राइड एंड प्रीज्यूडिएस' फ़िल्म के लिए गाने भी लिखे हैं

    ईमानदारी से कहूँ तो वे मेरे ज़माने से पहले के हीरो थे. जब मैं बड़ा हो रहा था तो वो अमिताभ का दौर था. अमिताभ सबसे बड़े हीरो थे. मेरे लिए वही सबसे अच्छे अभिनेता हैं.

    हाल ही में एक इंटरव्यू में आपने कहा था कि अगर मुझे सिर्फ़ एक पहचान दी जाए तो मैं चाहूँगा कि मुझे फ़िल्म मेकर या डायरेक्टर के रूप में पहचान मिले. लेकिन अभिनेता बनने की कैसे सूझी और गायकी के बारे में क्या कहेंगे?

    दरअसल, अभिषेक कपूर चाहते थे कि इस फ़िल्म का नायक गाने भी खुद गाए. आप लोगों को बताना और समझाना चाहते हैं कि ये बैंड है. जिसमें अर्जुन गिटार बजा रहा है, पूरब ड्रम बजा रहा है, लूक की-बोर्ड बजा रहा है, ये सब सही है.

    लेकिन उन्हें ये पता लगे कि जो गाना गा रहा है, ये आवाज़ उसकी नहीं है तो उन्हें अजीब लगता. इसलिए क़िरदार को हक़ीकत के करीब रखने के लिए अभिषेक चाहते थे कि नायक ही गाना गाए.

    और जो आदित्य का क़िरदार है, फ़रहान अख़्तर उसके कितने क़रीब हैं?

    रॉक स्टार का क़िरदार मेरे काफ़ी करीब है. 10-15 साल पहले मैंने गंस एण्ड रोज़ेज की एलबम 'एपेटाइट फ़ोर डिस्ट्रक्शन' सुनी थी. इसे सुनने के बाद मेरी ज़िंदगी एकदम बदल गई. मैंने तय कर लिया था कि मैं भी रॉक स्टार बनूँगा.

    रॉक स्टार का क़िरदार मेरे काफ़ी करीब है. 10-15 साल पहले मैंने गंज़ एण्ड रोज़ेज की एलबम 'एपेटाइट फ़ोर डिस्ट्रक्शन' सुनी थी
    और फिर जब मुझे ये मौका मिला तो मुझे सब कुछ याद आ गया. मैंने अपनी भावनाओं का सूटकेस खोला. सारे आइडिया वहाँ से निकाले. तो कुल मिलाकर ये बहुत अच्छा रहा.

    और आपने गाने भी लिखे हैं?

    हां, मैंने गाने भी लिखे हैं. गुरिंदर चड्ढा की फ़िल्म 'ब्राइड एण्ड प्रेज्यूडिस' के अंग्रेजी वर्ज़न के लिए मैंने और ज़ोया ने गाने लिखे थे.

    'दिल चाहता है' रोमांच और जोश से भरपूर है. इसका विचार कैसा आया. कुछ इसके बारे में बताएँ?

    'दिल चाहता है', दरअसल ऐसी घटनाओं, यादों का मिश्रण था जो मेरे और मेरे दोस्तों के साथ घटी थी. हम कई बार गोवा गए हैं और कई और जगह भी. वहाँ कई यादगार वाकये हुए हैं.

    मैंने इन सभी को डायरी में लिख दिया था. मैं सोचता था कि मैं डायरी की फ़ोटोकॉपी करूँगा और अपने दोस्तों को दूँगा. ताकि सालों बाद भी यादें ताज़ा रहें. ये डायरी जब मेरे एक दोस्त ने पढ़ी तो उसने मुझे बताया कि वो एक कहानी लिख रहा है और मुझे इस कहानी में उसकी मदद करनी चाहिए. कहानी की मुख्य भूमिका आमिर ख़ान का पात्र था.

    यानी एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जो प्यार में यकीन नहीं करता, जब वो कहीं जाते हैं और लड़की से मिलते हैं तो कैसे उसके विचार बदल जाते हैं और फिर आखिर में शादी हो जाती है. मुझे ये कहानी कुछ बोर सी लगी. फिर मैंने सोचा कि क्यों न मुख्य क़िरदार के दो दोस्तों को कुछ रोचक बनाया जाए. ये फ़िल्म कुछ इस तरह बनीं.

    दिल पर हाथ रखकर बताना कि फ़िल्म बनाते हुए ऐसा लग रहा था कि फ़िल्म लोगों को इतनी पसंद आएगी और इसे लोग इतना पसंद करेंगे?

    हर डायरेक्टर को उम्मीद रहती है कि लोग उसकी फ़िल्म को पसंद करेंगे. मेरे मन में भी था कि हर कोई इस फ़िल्म को पसंद करेगा. लेकिन जब असलियत में ऐसा हो जाता है तो आपको हैरानी तो होती है.

    फ़रहान का कहना है कि संगीत के प्रति उनका लगाव बचपन से ही रहा है

    ये वैसा ही है कि जब आप किसी रेस में हिस्सा लेते हैं और चाहते हैं कि स्वर्ण पदक आपको ही मिले. आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं, लेकिन जब पहले स्थान पर आते हैं तब भी कुछ हैरानी तो होती ही है.

    तमाम अभिनेता और डायरेक्टर फ़िल्म रिलीज़ के दौरान नर्वस हो जाते हैं, आपको कभी नर्वस नहीं देखा. आपका क्या हाल होता है?

    मैं नर्वस इसलिए नहीं दिखता क्योंकि मैं दो दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलता. लेकिन हकीक़त ये है कि मैं भी फ़िल्म रिलीज़ के दौरान नर्वस होता हूँ.

    एक ही परिवार में एक से एक बड़े नाम. जावेद अख़्तर साहब, हनी ईरानी और शबाना आज़मी. क्या इससे कभी टकराव होता है या फिर इनसे प्रेरणा मिलती है?

    बिल्कुल, प्रेरणा तो मिलती ही है, जब आप ऐसे क्रिएटिव माहौल में रहते हैं. जो उनके दोस्त लेखक, कवि और शायर घर पर आते हैं, उससे ज़बर्दस्त प्रेरणा मिलती है. आपको अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होता है कि ये वो लोग हैं जो आपकी फ़िल्म देखेंगे और आपका काम देखेंगे और उन्हें मेरे काम पर गर्व होना चाहिए.

    मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि मैं जानबूझकर ऐसा काम करूँ जिससे मेरे क़रीबियों और मेरे बच्चों को तकलीफ हो
    मैं इस ज़िम्मेदारी को बहुत गंभीरता से लेता हूँ. मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि मैं जानबूझकर ऐसा काम करूँ जिससे मेरे क़रीबियों और मेरे बच्चों को तकलीफ हो. ऐसा नहीं है कि मैं हमेशा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूँगा. लेकिन जहाँ तक हो सके मेरी कोशिश रहती है कि मैं जानबूझकर ऐसा कुछ न करूँ, जिससे उन्हें तकलीफ हो.

    लेकिन क्या ऐसा है कि ये सिर्फ़ माहौल का असर है या फिर जींस या खून की बात है?

    बेशक जींस की बात तो है ही. क्रिएटिविटी तो रगों में है ही. मेरे पिताजी, दादा और उनके पूर्वज, तमाम रिश्तेदार एक से बढ़कर एक लेखक, कहानीकार हैं. तो लेखन के प्रति आपकी दिलचस्पी और आकर्षण तो होगा ही.

    फ़िल्मों के अलावा और क्या पसंद है?

    फ़िल्मों के अलावा परिवार के साथ घूमना मुझे पसंद है. इसके अलावा नया संगीत सुनना और पढ़ना भी मुझे पसंद है. मुझे लोगों की आत्मकथाएँ बहुत पसंद हैं. मसलन ग्राउचो मार्क्स, नेलसन मंडेला की आत्मकथाएँ. क्योंकि मुझे असली जीवन की कहानियां बहुत प्रेरित करती हैं.

    आपको सबसे अधिक प्रेरित करने वाली शख्सियत कौन सी है?

    बतौर अभिनेता रॉबर्ट डि नीरो मुझे बहुत प्रेरित करते हैं. वो उन लोगों में शामिल थे जिनकी बचपन में मैं नकल करने की कोशिश करता था. अनटचबल्स, टैक्सी ड्राइवर, रेजिंग बुल उनकी कई अच्छी फ़िल्में हैं. मेरा सपना है कि मैं कभी न कभी किसी न किसी रूप में उनके साथ काम करूँ.

    और घूमने की पसंदीदा जगह?

    गोवा. परिवार और दोस्तों के साथ जाने के लिए ये सुविधाजनक जगह भी है. वहाँ जाते ही आराम का अहसास होता है. ज़्यादातर मैं खुद ड्राइव कर गोवा जाना पसंद करता हूँ, हालाँकि बच्चों के साथ ऐसा करना संभव नहीं हो पाता.

    फ़रहान डॉन फ़िल्म का सीक्वल बनाने का इरादा रखते हैं

    आप थोड़ी देर पहले कह रहे थे कि आपकी बहुत सारी गर्लफ्रेंड्स थी?

    हाँ, वो तो यूँ ही रौब जमाने के लिए कह रहा था. मैं मान रहा था कि गर्लफ्रेंड तो सबकी ही होती होंगी.

    आपका पहला क्रश?

    वो स्कूल की टीचर थी. वो मिस कश्यप थी. दिल चाहता है की स्क्रिप्ट में भी मिस कश्यप थीं. बात तो कुछ आगे नहीं बढ़ी, बस उन्हें देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान सी आ जाती थी.

    आपकी अपनी पत्नी से मुलाक़ात कैसे हुई?

    मेरी पत्नी बंगाली हैं. मैं अपनी एक कॉमन दोस्त के ज़रिये औधुना से मुंबई के एक क्लब में मिला था. जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो बस यूँ कहें कि अपने होश खो बैठा. मुझे याद है ये अक्टूबर 1998 की बात है.

    आपकी पत्नी औधुना को आपकी महिला प्रशंसकों से कुछ दिक्कत तो नहीं है. कोई जलन तो नहीं?

    मुझे नहीं लगता कि वो इससे जलती होंगी. वो इससे खुश हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मेरा काम मेरे लिए क्या है. उन्हें पता है कि मैं क्या कर रहा हूँ और किसलिए कर रहा हूँ.

    उन्हें अच्छा लगता है कि लोग मेरे काम से खुश हो रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें ये बात सबसे अच्छी लगती है कि किसी को आपका काम पसंद आ रहा है और वो आपके बारे में बात कर रहा है या आपसे मिल रहा है.

    प्रशंसकों से घिरे रहने में कभी तो आपको मजा आया होगा. लोग आपसे मिलना चाहते हैं, ऑटोग्राफ़ चाहते हैं, आपको छूना चाहते हैं. इसमें भी बोरियत आ जाती है क्या?

    नहीं, बोरियत जैसी कोई बात नहीं है. जिन लोगों ने आपकी फ़िल्म देखने के लिए टिकट खरीदी है, एलबम खरीदी है उनके साथ बात करने, हाथ मिलाने, फोटो खिंचवाने और उनसे मिलने में मुझे बहुत खुशी होती है. कभी बोरियत नहीं होती.

    बतौर निर्देशक फ़रहान की फ़िल्म दिल चाहता है की जमकर तारीफ़ हुई थी

    कभी कोई खूबसूरत प्रशंसक आ जाती है तो मन फिसलता नहीं है?

    नहीं, कभी नहीं.

    अभी तक जिंदगी में सबसे क्रेजी चीज क्या की है?

    दूसरों के नजरिये से कहूँ तो मैंने 26 साल की उम्र में ही शादी कर ली थी. लोगों का कहना था कि मैं क्रेजी हो गया हूँ, हालाँकि मैं ऐसा नहीं सोचता. दूसरा ये कि मैंने स्काई डाइव की है. 15,000 फीट की ऊँचाई से कूदा हूँ. मैंने 18-20 बार स्काई डाइविंग की है.

    खुद के नजरिये की बात करूँ तो बहुत साल पहले की बात है. मैं 16 साल का था. तब एक पार्टी में मैंने खूब शराब पी ली थी. पार्टी एक दोस्त के घर में थी. मुझे लगता है पार्टी में हर किसी ने ज़्यादा शराब पी थी.बाथरूम में लंबी लाइन लगी थी. मैंने अपने दोस्त से कहा कि लाइन बहुत लंबी है हमें कुछ करना चाहिए. पार्टी सातवीं मंजिल पर थी, हम खिड़की पर खड़े होकर लघुशंका की. जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो ये बहुत सनकीपन और गलत लगता है.

    कोई ऐसी बात जिसे ज़िदगी से हटाना चाहते हैं?

    मैं जीवन के इस सनकीपन वाले एपीसोड को जीवन से हटाना चाहूँगा.

    कोई ऐसी हसरत, जिसे पूरा करना चाहते हों?

    मेरी इच्छा दुनिया में चार-पाँच जगह घूमने की है. मैं दक्षिण अमरीका में ब्राज़ील और पेरू घूमना चाहता हूँ. वहाँ के लोगों से मिलना चाहता हूँ, वहाँ की संस्कृति जानना चाहता हूँ.

    आपको किसी एक फ़िल्म अभिनेत्री को डेट पर ले जाने की छूट मिले तो किसे ले जाना चाहेंगे?

    मधुबाला को. लेकिन अगर मौजूदा अभिनेत्रियों की बात करें तो मैं प्रीति ज़िन्टा को ले जाना चाहूँगा. हम दोनों में अच्छी दोस्ती है और हम दोनों में कई बात एक जैसी हैं.

    एक मुलाक़ात के सेट पर फ़रहान से मिलने उनकी प्रशंसक भी पहुँचीं

    आपको फ़िल्म इंडस्ट्री की सबसे अच्छी बात क्या लगती है?

    इस वक्त मुझे सबसे अच्छी बात ये लगती है कि आप किसी भी तरह की फ़िल्म बना सकते हैं. जिसके लिए आपके पास प्रोड्यूसर भी होंगे और दर्शक भी.

    आप खुद को कैसे डिस्क्राइब करेंगे?

    मैं कहूँगा कि मैं लकी एक्सप्लोरर हूँ. मैं इस मामले में भाग्यशाली हूँ कि सही लोगों से सही वक्त पर मिल सका.

    फ़रहान से मुलाक़ात के दौरान कुछ दर्शकों ने भी उनसे सवाल किए.

    फरहान मैं आपका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ. आपने 'रॉक ऑन' का गाना 'तुम मिले तो मिली ज़िदगी' कैसे गाया?

    कड़े अभ्यास से.

    अगर आप फ़िल्मों में नहीं होते तो क्या होते. क्या आप वाकई फ़िल्मों में आना चाहते थे?

    मैंने पहले भी कहा कि मैं भी दूसरे बच्चों की तरह कभी रॉक स्टार, कभी पायलट, कभी अंतरिक्ष यात्री बनना चाहता था. ये कहना तो मुश्किल है कि अगर मैं यहाँ नहीं होता तो क्या होता.

    मैं बचपन में बहुत कहानियां, गप्पे मारा करता था. तो संभव है कि अगर मैं फ़िल्मों में नहीं होता तो शायद तिहाड़ जेल में होता.

    रॉक ऑन शानदार फ़िल्म है. आपने क्या लाइव शो भी किए हैं. क्या मुंबई में भी शो करेंगे?

    हमने दो शो किए हैं. एक पुणे में और एक दिल्ली में. हमें लोगों का ज़ोरदार समर्थन मिला, करीब 12 हज़ार लोग थे. मुंबई में भी ज़रूर करेंगे.

    क्या आप आने वाले समय में गायक बनने की सोच रहे हैं?

    नहीं. मैं अपनी फ़िल्म में भी गायक बनने के बारे में नहीं सोच रहा हूँ. क्योंकि इस फ़िल्म में क़िरदार की मांग थी, इसलिए मैंने गाने गए. मेरी फ़िल्मों में गाने की कोई इच्छा नहीं है. लेकिन मैं गिटार बजाता रहूँगा. हो सकता है कि भविष्य में मैं अपनी एलबम निकालूँ.

    और अगर आपको किसी अभिनेता को आवाज़ देनी पड़े तो किसके लिए गाना चाहेंगे?

    मैंने पहले ही कहा कि क्योंकि मैं फ़िल्मों में नहीं गाने वाला. इसलिए ऐसी स्थिति ही पैदा नहीं होगी.

    कोई अगर आपसे पूछे कि मैं आपका सहायक बनना चाहता हूँ और मैं आपसे कुछ सीखना चाहता हूँ?

    फ़रहान अख़्तर: मेरे पास इसका एक सीधा जवाब होगा. 26041011.

    हम आपको खुद को डॉयरेक्ट करते हुए कब देखेंगे?

    जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ काम करते हैं, जिसे अपने काम के बारे में पक्का यकीन होता है तो आपको उसके काम में दखलंदाजी करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती
    मुझे नहीं लगता कि इस वक़्त मैं ऐसा कर सकूँगा. निर्देशन बहुत मुश्किल काम है. हालाँकि कई लोग ऐसा सफलतापूर्वक करते हैं और मैं उनका बहुत सम्मान करता हूँ. लेकिन मैं शायद अभी एक ही फ़िल्म में डायरेक्टिंग और एक्टिंग के लिए तैयार नहीं हूँ.

    एक्टिंग, प्रोड्यूसिंग, डायरेक्टिंग, गीतकार और गायक. अब आगे क्या?

    शायद टूरिस्ट

    क्या डॉन-थ्री भी प्रोसेस में है?

    शायद ये 2009 के आखिरी में बनना शुरू हो जाएगी.

    रॉक-ऑन के लिए क्या आप किसी ख़ास बैंड से प्रेरित थे?

    नहीं, ऐसा तो नहीं था. हाँ कुछ धुनों को जानते थे, मसलन 'कोल्ड प्ले' और 'यू टू'. कुछ पॉप धुनें थी, कुछ रॉक. मेरा पसंदीदा बैंड बीटल्स है.

    अभिषेक कपूर आपके डायरेक्टर थे, आपसे कम अनुभवी. उनके साथ काम करना कैसा लगा?

    जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ काम करते हैं, जिसे अपने काम के बारे में पक्का यकीन होता है तो आपको उसके काम में दखलंदाजी करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं होती. जब वो कहानी लेकर मेरे पास आए थे तो उन्हें डायरेक्शन के बारे में चीजें स्पष्ट थी.

    क्या अभिनेता आपके काम में दखल देते हैं?

    फ़िल्म मेकिंग को लेकर लोगों के मन में कुछ बाते हैं. लोगों को लगता है कि डायरेक्टर चाबुक लेकर लोगों से काम कराता है. हर कोई आपस में बात करता है. तर्क होते हैं, स्वस्थ चर्चा होती है और कोई किसी को ऑर्डर नहीं देता.

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