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    एक हिट फ़िल्म की ज़रूरत है: दीया मिर्ज़ा

    By Staff
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    पीएम तिवारी

    कोलकाता से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

    औसत दर्जे की कुछ फ़िल्मों के बाद कामयाबी की तलाश कर रही हिंदी फ़िल्मों की ख़ूबसूरत अभिनेत्री दीया मिर्ज़ा को अब अपनी नई फ़िल्म एसिड फ़ैक्टरी से काफ़ी उम्मीदें हैं.

    दीया ख़ुद मानती हैं कि यह फ़िल्म उनके करियर का टर्निंग प्वायंट साबित हो सकती है.

    वे कहती हैं कि इस फ़िल्म में एक बुरी युवती का किरदार निभाना बहुत चुनौतीपूर्ण था. फ़िलहाल उनके पास पांच फ़िल्में हैं. पेश है उनसे हुई लंबी बातचीत के अंशः

    एसिड फ़ैक्टरी में आपकी भूमिका कैसी है?

    इसमें मैं एक बुरी युवती का किरदार निभा रही हूं. यह भूमिका काफ़ी चुनौतीपूर्ण है और इसके लिए मुझे काफ़ी मेहनत करनी पड़ी.

    इसमें मुझे कुछ स्टंट भी करने पड़े हैं. इसमें सात हीरो हैं और मैं अकेली अभिनेत्री. मुझे यह भूमिका बेहद चुनौतीपूर्ण लगी थी. इसलिए पटकथा सुनते ही मैंने हामी भर दी.

    इस फ़िल्म से आपको कितनी उम्मीदें है?

    यह फ़िल्म मेरे करियर के लिए टर्निग प्वायंट साबित हो सकती है. हालांकि मेरे लिए सभी फ़िल्म महत्वपूर्ण है.

    मेरी कुछ अच्छी फ़िल्में बन रही हैं. लेकिन फ़िलहाल मुझे एक हिट फ़िल्म की ज़रूरत है. इसके अलावा सोहेल ख़ान की फ़िल्म किसान से भी मुझे काफ़ी उम्मीदें हैं.

    तो आपने अपनी भूमिका पर काफ़ी मेहनत की होगी?

    अपनी भूमिका के बारे में कुछ बताइए. फ़िल्म में बुरे किरदार में अपने अभिनय को जीवंत बनाने के लिए मैंने अपनी बुराईयों को परदे पर उतार दिया है.

    एसिड फ़ैक्टरी सात गैंगस्टर्स की कहानी है. यह एक्शन थ्रिलर है. इसमें मेरे किरदार का नाम मैक्स है. वह ख़ूबसूरत, सेक्सी और ख़तरनाक लड़की है.

    मैंने अब तक ऐसी भूमिका नहीं की है. मैंने इसमें कई एक्शन और स्टंट सीन भी किए हैं. मैक्स की भूमिका के लिए मैंने चालीस दिनों तक कड़ा प्रशिक्षण लिया था.

    लेकिन संजय गुप्ता की फ़िल्मों में हीरोइनों के पास करने को कुछ ख़ास नहीं होता. एसिड फ़ैक्टरी में आधा दर्जन अभिनेताओँ की भीड़ में आपको पहचान मिलेगी?

    ज़रूर, मुझे अपनी मेहनत और इस भूमिका पर पूरा भरोसा है. मैंने पटकथा पढ़ी है. मैं काफ़ी अहम भूमिका निभा रही हूं. संजय ने हर कलाकार को फ़िल्म में ख़ास तवज्जो दी है. फ़िल्म का हर किरदार दर्शकों को पसंद आएगा.

    क्या एसिड फ़ैक्टरी वर्ष 2002 में बनी संजय गुप्ता की फ़िल्म कांटे का सीक्वल है?

    यह सही नहीं है. इस फ़िल्म का लुक कांटे से मिलता ज़रूर है. इसकी कहानी वहां से शुरू होती है जहां कांटे की कहानी हुई थी. लेकिन इसे उस फ़िल्म का सीक्वल कहना ठीक नहीं होगा.

    शुरूआती नाकामियों के बाद आपने बालीवुड से नाता तोड़ने का भी मन बना लिया था?

    हां, यह सही है. बॉलीवुड में आपकी प्रतिभा की कोई कीमत नहीं है. यहां फ़िल्मों की कामयाबी ही आपकी सफलता और प्रतिभा का पैमाना है.

    फ़िल्मों की लगातार असफलता की वजह से ही मेरे प्रति फ़िल्म उद्योग से जुड़े लोगों का रवैया बदल गया था.

    मैंने अच्छे बैनर, निर्माताओं और अभिनेताओं के साथ काम करना शुरू किया था. लेकिन दुर्भाग्य से मेरी फ़िल्में चली नहीं.

    बीच में लगातार फ़्लॉप फ़िल्मों की वजह से मैं टूट गई थी. एक समय ऐसा ज़रूर आया था, जब मैंने हैदराबाद लौटने का मन बना लिया था. लेकिन मेरे कुछ शुभचिंतकों ने मुझे हताशा से उबर कर संघर्ष करने की प्रेरणा दी.

    आपकी भावी योजनाएं क्या हैं?

    एसिड फ़ैक्टरी के अलावा इस वर्ष मेरी कुछ और फ़िल्में प्रदर्शित होंगी. उनमें संजय गुप्ता की अलीबाग, सुजीत सरकार की जानी मस्ताना, पुनीत सिरा की किसान और कुणाल विजयकर की फ्रूट एंड नट शामिल हैं. इनके अलावा मैंने हाल में कुछ और फ़िल्में साइन की हैं. लेकिन उनके बारे में बात बाद में करूंगी.

    कोलकाता में हैं तो बांग्ला फ़िल्मों में अभिनय के बारे में सवाल उठना तो लाज़िमी ही है?

    मेरी मां बांग्लाभाषी हैं. इसलिए बांग्ला मुझे आती है.

    मैं सत्यजित राय और मृणाल सेन की फ़िल्मों को देखते हुए बड़ी हुई हूं इसलिए एक बांग्ला फ़िल्म में काम करने की इच्छा है.

    लेकिन मैं बांग्ला की मसाला फ़िल्मों में नहीं, बल्कि लीक से हटकर बनने वाली फ़िल्मों में काम करना चाहती हूं. मैं अपर्णा सेन के निर्देशन में किसी बांग्ला फ़िल्म में काम करने की इच्छुक हूं.

    अपर्णा सेन ने अब तक जितनी भी फ़िल्मों का निर्देशन किया है, वे सब अलग क़िस्म की हैं.

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