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'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' से प्राब्लम क्या है?
फ़िल्म को सर्टिफ़िकेट देने से सेंसर बोर्ड इनकार कर चुका है. निर्माता प्रकाश झा से बातचीत।
'मृतुदंड', 'दामुल' और 'राजनीति' जैसी फ़िल्मों में महिलाओं के सशक्त क़िरदार दिखाने वाले निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा का कहना है की भारत में महिलाओं को अपने पति के सामने यौन इच्छाएं प्रकट करने की आज़ादी नहीं है.
हाल ही में उनके प्रोडक्शन हाउस से आई 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' फ़िल्म को केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफ़सी) ने सर्टिफ़िकेट देने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि फ़िल्म 'महिला प्रधान है और उसमें महिलाओं की सैक्सशुयलटी को दर्शाया गया है.'
'दर्शक जानते है कि उन्हें क्या देखना है,क्या नहीं'
क्स की सेल्फ़ी वाली फ़िल्म पर निहलानी के तर्क
बीबीसी से ख़ास बातचीत में निर्माता प्रकाश झा ने कहा, "ये फ़िल्म पुरुष प्रधान समाज को नहीं ललकार रही है, पर महिलाओं के नज़रिए से कहानी बता रही है."
उनके मुताबिक, "समाज पुरुष प्रधान है इसलिए औरत के नज़रिये से औरतों की बात सुनना नहीं चाहता."
वहीं, कहीं ना कहीं बॉलीवुड को भी ज़िम्मेदार ठहराते हुए प्रकाश झा का मनना है कि फ़िल्में महिलाओं को हमेशा से ही पुरुषों की मानसिकता के नज़रिए से ही दर्शाया जाता है और जहाँ महिला अपनी लैंगिकता की बात करती है उसे बदचलन करार दे दिया जाता है.
प्रकाश झा आगे कहते हैं, "महिलाओं की लैंगिकता पर हमें बात करने की भी आज़ादी नहीं है."
उनके मुताबिक, "आम तौर पर हमारे देश में महिलाओं को अपने पति और शौहर से अपनी लैंगिकता की बात करने की आज़ादी ही नहीं है. तो कम से कम उसकी शुरुआत तो हो."
प्रकाश झा को सीबीएफ़सी से भी कोई शिकायत नहीं है क्योंकि वो 'दिशा निर्देश का पालन कर रही है.'
हालांकि उन्हें उम्मीद है कि मौजूदा सरकार द्वारा श्याम बेनेगल कमेटी की रिपोर्ट पर ज़ल्द ही फैसला होगा.
फ़िल्म इंडस्ट्री में तीन सफल दशक गुज़ार चुके प्रकाश झा ने ये भी माना कि सरकार द्वारा फ़िल्म इंडस्ट्री उपेक्षित ही है.
वो कहते हैं, "फ़िल्म इंडस्ट्री का देश में कई मायनों में योगदान है. हिंदी भाषा को फ़ैलाने में, देश को जोड़ने में, देश के प्रति भक्ति, आस्था और जोश जगाने में योगदान है."
उनका कहना है, "लेकिन जब फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले लोगों की बात आ जाती है तो सरकार चूक जाती है जो नहीं होना चाहिए."
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