twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    असिस्टेंट के बिना काम संभव नहीं

    By सुशील झा,
    |

    असिस्टेंट डायरेक्टर का काम दिक्कतों भरा है लेकिन डायरेक्टर बनने की चाह रहती है
    फ़िल्मों को अगर एक जहाज़ माना जाए तो उसका कैप्टन होता है डायरेक्टर लेकिन इस कैप्टन के काम को बिना सहायकों के को अंजाम देना संभव नहीं होता.

    किसी भी डायरेक्टर के लिए अच्छे असिस्टेंट डायरेक्टर या सहायक निर्देशक होना ज़रुरी हैं क्योंकि वही उनकी आंख नाक कान सब कुछ होते हैं.

    ज़ाहिर है कि असिस्टेंट डायरेक्टर की भूमिका बड़ी होती है पहचान कम. लेकिन आखिर ये करते क्या हैं.

    मुंबई चकाचक नामक फ़िल्म में मुख्य असिस्टेंट डायरेक्टर नाज़नीन कपासी कहती हैं, "देखिए कम से कम चार से पांच असिस्टेंट होते हैं एक डायरेक्टर के और हमारा काम हर स्तर पर है. कॉस्ट्यूम, मेकअप, समन्वय, सेट डिजाइन सब कुछ जो ज़रुरी है शॉट के लिए वो डायरेक्टर को सही समय पर उपलब्ध करना ये हमारा काम है".

    असल में असिस्टेंट डायरेक्टर अपने डायरेक्टर को बेहतरीन निर्देशन में मदद करता है.

    कुछ असिस्टेंट आगे चलकर अच्छे डायरेक्टर बनते हैं लेकिन आगे वही बढ़ता है जो जल्दी सीखता है और मौके की ताक में रहता है
    सीन असिस्टेंट का काम देख रहे यश कुमार कहते हैं, "आप प्रैक्टिकली देखिए..किसी फ़िल्म में एक सीन आप देखते हैं कि हीरो के शर्ट की बाईं तरफ खून लगा है और दूसरे शॉट में खून दाईं तरफ़ आ जाता है तो दर्शक को समझ में आ जाता है कि ग़लती हुई है. हमारा काम है ऐसी ग़लतियां नहीं होने देना".

    ताकि कंटिन्यूटी बनी रहे

    असिस्टेंट ये ध्यान रखते हैं कि शॉट ख़त्म होते समय हीरो का हाथ कहाँ था किस एक्शन में था ताकि आगे चलकर कोई शॉट महीने बाद लेना हो तो भी कंटिन्यूटी बनी रहे.

    ऐसा ही काम कॉस्ट्यूम असिस्टेंट डायरेक्टर का होता है जो तय करता है कि कौन से कैसे कपड़े कहाँ से आएँगे कैसे पहनाए जाएँगे.

    और ये असिस्टेंट चाहते क्या है..... डायरेक्टर बनना...

    लेकिन क्या इनके सपने पूरे होते हैं.

    पिंजर फ़िल्म के निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि बिना अच्छे असिस्टेंट के डायरेक्टर का काम कष्ट भरा हो जाता है.

    वो कहते हैं, "कुछ असिस्टेंट आगे चलकर अच्छे डायरेक्टर बनते हैं लेकिन आगे वही बढ़ता है जो जल्दी सीखता है और मौके की ताक में रहता है".

    नाजनीन के डायरेक्टर संजय झा है. वो कहते हैं, "आपने शूटिंग में देखा होगा मैं कितना चिल्लाता हूँ. हर शॉट से पहले मुझे सब कुछ चाहिए होता है. कुछ भी नहीं होता तो मैं असिस्टेंट से कहता हूँ. अगर मैं कम टेंशन में हूँ तो मेरे असिस्टेंट बहुत अच्छे हैं".

    यश फिलहाल असिस्टेंट का काम कर रहे हैं लेकिन डायरेक्टर के तौर पर उन्हें एक फ़िल्म मिल गई है.

    सपने देखने का हौसला

    वो बताते हैं कि रास्ता इतना आसान भी नहीं रहा है. यश कहते हैं, "मैं चार साल से इंडस्ट्री में हूँ. डायरेक्टर बनने आया था. पहले भोजपुरी फ़िल्मों में एक्टिंग की फिर असिस्टेंट बना और अब जाकर फ़िल्म मिली है. काम मिलता है सपने देखने की हिम्मत हो तो ही".

    यश को बहुत कम बजट की फ़िल्म मिली है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि उन्हें जल्दी ही बड़े बजट की फ़िल्म मिलेगी अगर उनकी पहली फ़िल्म हिट हो जाती है तो.

    संजय मानते हैं कि अच्छे असिस्टेंट से डायरेक्टर को आसानी हो जाती है

    किसी भी फ़िल्म में कम से कम पांच असिस्टेंट होते हैं और इन्हीं पर किसी डायरेक्टर का निर्देशन निर्भर होता है.

    नाजनीन कहती हैं कि पहचान जल्दी नहीं मिलती क्योंकि बॉलीवुड में अभी हॉलीवुड की परंपरा नहीं आई है.

    वो कहती हैं, "कहने को हर असिस्टेंट का काम बंटा हुआ है लेकिन हमें सबकुछ करना पड़ता है. कई बार तो डायरेक्टर खुद ही ढेर सारा काम करते हैं. हमें फुर्ती में जल्दी में तेज़ी से काम करना पड़ता है तभी डायरेक्टर को मदद मिलेगी वर्ना वो चिल्लाएगा, गुस्सा करेगा".

    फ़िल्म के सेट पर अगर किसी पर सबसे अधिक दबाव होता है तो वो होते हैं ये असिस्टेंट क्योंकि डायरेक्टर अपना गुस्सा इन्हीं पर निकालते हैं.

    बॉलीवुड में असिस्टेंट से डायरेक्टर बनने की कहानियां प्रचलित है और इस कड़ी में निखिल आडवाणी, कुणाल कोहली और मधुर भंडारकर के नाम लिए जाते रहे हैं और ये नाम ही बाकी असिस्टेंट डायरेक्टरों को आगे भी काम करने की प्रेरणा देते रहते हैं.

    असिस्टेंट डायरेक्टरों की ये कहानी आपको कैसी लगी हमें लिखिए [email protected] पर.

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X