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नहीं चढ़ा स्टारडम का रंग: दीपिका
युवा, प्रतिभावान, ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरपूर...आज की भारतीय युवा पीढ़ी की इस परिभाषा में फ़िट बैठती हैं अभिनेत्री दीपिका पादुकोण.
दीपिका अपने छोटे से करियर में ही दो डबल रोल चुकी हैं. चांदनी चौक टू चाइना में तो उन्होंने एक्शन सीन भी किए थे.
लंदन में दीपिका से बीबीसी संवाददाता वंदना ने उनकी फ़िल्में, पंसदीदा एक्टर, स्टारडम पर उनका नज़रिया...इन सब मुद्दों पर बातचीत की. पेश है बातचीत के मुख्य अंश:
आपने छोटे से करियर में ही दो डबल किए हैं.ओम शांति ओम और चांदनी चौक टू चाइना.हिंदी फ़िल्मों में कम ही अभिनेत्रियों को इसका मौका मिलता है- जैसे सीता और गीता में हेमा मालिनी या चालबाज़ में श्रीदेवी.
मुझे अच्छा महसूस होता है ये सोचकर कि मेरे निर्देशक मुझे इस काबिल समझते हैं कि मैं डबल रोल कर सकती हूँ, अलग-अलग किस्म के लुक अपना सकती हूँ. मेहनत तो ज़्यादा ज़रूर करनी पड़ती है लेकिन मज़ा भी आता है जब नए-नए रुप में काम करने का मौका मिलता है.
अक्षय कुमार को तो लोग एक्शन स्टार के तौर पर जानते हैं. चांदनी चौक टू चाइना में आपको भी एक्शन करना पड़ा. कितना मुश्किल रहा?
मेरे काफ़ी सारे एक्शन सीन हैं इस फ़िल्म में और एक सीन अक्षय के साथ भी है. मुझे बहुत ट्रेनिंग लेनी पड़ी- करीब छह महीने के लिए. लेकिन बहुत मज़ा आया क्योंकि मैं एक्शन फ़िल्म करना चाहती थी. पर मैने ये नहीं सोचा था कि ये सब इतना मुश्किल होगा. इतना दर्द होता था कि ट्रेनिंग के वक़्त कि मैं रोने लगती थी. उम्मीद यही है कि मेरे किए स्टंट दर्शकों को पसंद आएँ.
ज़ाहिर है इसके लिए फ़िट रहना बेहद ज़रूरी है.कुछ ख़ास तरीका अपनाती हैं?
मैं एक दिन में छह से आठ घंटे तक ट्रेन करती थी. पहले मैने जीजीत्सु सीखा, फिर केबल वर्क और तलवार चलाना सीखा. इसलिए मैं खाने-पीने पर ज़्यादा ध्यान देती थी.
किसी भी किरदार के लिए ख़ुद को कैसे तैयार करती हैं जैसे चांदनी चौक टू चाइन में आपका किरदार अलग है. एक्शन है, चीनी भाषा बोलनी पड़ी आपको, ऐसे रोल के लिए क्या कुछ ख़ास और ज़्यादा तैयारी करनी पड़ती है.
जब स्क्रिप्ट पढ़ती हूँ तो उस किरदार की बारीकियाँ मैं लिख लेती हूँ कि वो उसका व्यक्तिव कैसा है. अगर अपनी ओर से कुछ जोड़ सकती हूँ तो जोड़ती भी हूँ. चांदनी चौक में मेरे दोनों किरदार बहुत ही अलग हैं- बात करने का तरीका, कपड़े..सब कुछ अलग है. इसलिए मुझे इसे निभाने में काफ़ी आसानी रही.
ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना पर भी शूटिंग करने का मौका मिला आपको.
ग्रेट वॉल ऑफ़ चाइना पर शूटिंग करना शायद मेरे लिए सबसे यादगार लम्हा रहेगा. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वहाँ शूटिंग करने का मौका मिलेगा. हमने वहाँ बुहत सारी अजीबो-गरीब शूटिंग की.
यूनिट के लिए मुश्किल काम था क्योंकि उस समय चीन में बहुत ज़्यादा ठंड थी, शीत लहर चल रही थी. वहाँ उपकरण उठाकर चलना, शूटिंग करना आसान नहीं है. मैं यूनिट को पूरा क्रेडिट देना चाहूँगी.
पिछले एक-डेढ़ साल में काफ़ी कुछ बदल गया आपकी ज़िंदगी में. आप स्टार बन गईं, बहुत सारे फ़ैन्स हैं. क्या आज भी आप वही दीपिका हैं जो पहले थीं या स्टारडम ने आपको बदल दिया है.
मैं तो यही मानकर चलती हूँ कि मैं वही दीपिका हूँ. शोहरत, स्टारडम.. ये सब तो बस मेरे कलाकार होने का हिस्सा है. मैं काम का पूरा मज़ा लेती हूँ. कैमरे के सामने एक्टिंग करना मुझे बहुत पसंद है. शोहरत और पैसा ..इन सब की जगह बाद में आती है.
इस तरह की शोहरत का दूसरा पहलू भी है, कोई फ़िल्म रिलीज़ होती है तो उम्मीदों का दबाव होता है, मीडिया और लोगों की नज़रें टिकी रहती हैं. इस दबाव को कैसे झेलती हैं?
अगर आपको अपने काम में मज़ा आता है तो आपको ये दवाब नहीं लगेगा बल्कि आप उसे अपने काम का हिस्सा मानकर चलते हैं. शुक्रवार को फ़िल्म रिलीज़ के वक़्त जो घबराहट होती है वो तो हमेशा रहेगी- आज हो या फिर दस साल बाद हो. आपने कितने भी साल इस इंडस्ट्री में काम किया हो, फ़्राइडे फ़ीवर सबके लिए एक जैसा होता है. इसलिए बस अपने काम का मज़ा लेना बहुत ज़रूरी है.
अक्षय कुमार, शाहरुख, रणबीर कपूर.. तीनों के साथ काम कर चुकी हैं.पसंदीदा को-स्टार किसे कहेंगी.
(कुछ देर सोचकर) मैं चुन नहीं सकती क्योंकि तीनों का यूएसपी अलग है, काम करने का तरीका अलग है. मैने तीनों से काफ़ी कुछ सीखा है. मैं चाहती हूँ कि मैं तीनों के साथ आगे भी और फ़िल्में करूँ.
नए साल की शुरुआत चांदनी चौक टू चाइना की सैर करके कर रही हैं, 2009 में और कौन सी फ़िल्में आएँगी.
मेरी चौथी फ़िल्म सैफ़ अली खान के साथ है जिसे इम्तियाज़ अली निर्देशित कर रहे हैं, उसका नाम अभी नहीं रखा है. फिर अक्षय कुमार के साथ एक और फ़िल्म करूँगी जिसका नाम हाउज़फ़ुल है और इसे साजिद खान बना रहे हैं.
नए साल में आपका कुछ रेज़ोलुशन.....
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है, बस चाहती हूँ कि मेरी फ़िल्म सुपरहिट हो.
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