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मेकअप मैन बन गया प्रोड्यूसर
दीपक कहते हैं, ' मुझे फ़िल्म लाईन पसंद नहीं था क्योंकि यहां काम में अनिश्चितता है. एक फ़िल्म मिलेगी फिर दूसरी फ़िल्म मिले न मिले कोई भरोसा नहीं है. मैं कोई और काम कर रहा था लेकिन वो ठीक से नहीं हो पाया तो पिताजी ने कहा कि तुम भी क्यों न मेकअप का काम करो तब मैं इस लाईन में आया. '
हमारी मुंबई ड्रीम्स शृंखला के तहत कृपाशंकर सिंह के बाद मेकअप मैन से प्रोड्यूसर बने दीपक सावंत के संघर्ष की कहानी पेश है. आने वाले दिनों में और भी लोगों की कहानी से आप वाकिफ़ होंगे जो जीवन में संघर्ष के रास्ते से आगे बढ़े.
एक
बार
दिलीप
कुमार
जी
की
शूटिंग
के
दौरान
मुझे
समझ
में
आया
कि
उन्हें
सफाई
पसंद
है
तो
मैं
उनका
ड्रेसिंग
टेबल
बहुत
साफ
रखता.
दिलीप
साहब
को
यह
अच्छा
लगा |
वो कहते हैं, ' पिताजी के चलते छोटा मोटा काम मिला. एक फ़िल्म थी राजेश खन्ना की दुश्मन. राजेश खन्ना साहब गुस्सैल माने जाते थे. '
दीपक ने महाराष्ट्र के छोटे से गांव से आकर काम शुरु किया था. इसी शूटिंग के दौरान दीपक ने कुछ ऐसा किया कि वो सबकी नज़रों में आ गए.
क्या किया उन्होंने, वो कहते हैं, 'मैंने नोटिस किया था कि शूटिंग के दौरान जब कोई व्यक्ति किसी को आवाज देता है तो सब लोग चिल्लाते हैं मसलन अगर राजेश खन्ना ने कहा मेकअप तो प्रोड्यूसर, डाइरेक्टर, कैमरामैन सब आवाज़ देंगे मेकअप मेकअप मेकअप लेकिन कोई वापस जवाब नहीं देता था. मैंने जवाब दिया पूरे आदर से यस सर... मैंने जैसे ही जवाब दिया पूरा यूनिट हिल गया और सब कहने लगे कौन है कौन है.. लेकिन राजेश खन्ना जी को यह पसंद आ गया.'
फिर धीरे धीरे दीपक को काम मिलने लगा और वो दो तीन प्रोडक्शन कंपनियों में काम करने लगे.
वो कहते हैं, 'मैं कई जगह दो तीन शिफ्टों में काम करता था. धर्मेंद्र- आशा पारेख के साथ काम किया. एक बार दिलीप कुमार जी की शूटिंग के दौरान मुझे समझ में आया कि उन्हें सफाई पसंद है तो मैं उनका ड्रेसिंग टेबल बहुत साफ रखता. दिलीप साहब को यह अच्छा लगा और वो मुझे पर्सनली काम देने लगे. '
अमिताभ के साथ कैसे काम मिला, दीपक बताते हैं कि वो अमिताभ के साथ वो रास्ते का पत्थर फ़िल्म कर रहे थे. वो कहते हैं, ' अमित जी को मेरा ड्रैंसिंग टेबल सजाना बहुत पसंद था. वो बोलते नहीं थे लेकिन मुझे समझ में आ गया था. बाद में अमित जी ने खुद ही मुझे बुलाया और अपने पास रखा जिसके बाद अब तक मैं उन्हीं के साथ काम कर रहा हूं. '
रामगोपाल वर्मा की आग में अमिताभ बच्चन का मेकअप काफी सराहा गया जिस पर दीपक कहते हैं कि इस मेकअप के लिए उन्होंने अमिताभ और रामगोपाल वर्मा के साथ कई बार बैठक की थी.
फ़िल्म नहीं चली लेकिन मेकअप पसंद किया गया. इसके अलाव अग्निपथ में भी अमिताभ का काजल भरी आंखों का लुक दीपक सावंत ने ही तय किया था. दीपक का काम जम चुका था और अब उनके लिए काम की कमी नहीं थी लेकिन फिर प्रोड्यूसर जैसा रिस्की काम क्यों शुरु किया दीपक ने.
दीपक कहते हैं, ' मैं हमेशा से बड़ा काम करना चाहता था. मेकअप आर्टिस्ट से कुछ आगे, कुछ बड़ा. मैं यश जी को अवार्ड लेते देखता तो मेरा भी मन करता कि काश मुझे भी अवार्ड मिले. यही सोचकर मैंने प्रोड्यूसर बनने की सोची. '
दीपक ने पहली फ़िल्म मराठी में बनाई जिसमें अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने भूमिकाएं की. यह फ़िल्म बहुत नहीं चली लेकिन दीपक को विश्वास हो गया कि वो ये काम कर सकते हैं.
आगे चलकर यूपी और बिहार में अमिताभ की लोकप्रियता को देखते हुए उन्होंने भोजपुरी फ़िल्म बनाने की सोची. दीपक की पहली भोजपुरी फ़िल्म गंगा ब्लॉकबस्टर साबित हुई और पूरे भारत में लोगों ने इसे पसंद किया. दीपक ने इसके बाद गंगोत्री बनाई और यह फ़िल्म भी हिट साबित हुई.
मराठी होने के बावजूद वो भोजपुरी फ़िल्में क्यों बनाते हैं, इस पर वो शर्मा जाते हैं और कोई राजनीतिक टिप्पणी करने से बचते हैं, वो बस इतना कहते हैं कि पूरा भारत एक है और भोजपुरी फ़िल्में मराठी फ़िल्मों की तुलना में अधिक चलती हैं इसलिए उन्होंने भोजपुरी फ़िल्में बनाई हैं.
दीपक अपनी सफलता का श्रेय मेहनत और भगवान को देते हैं. वो कहते हैं, ' मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे अमित जी के साथ काम करने का मौका मिला है. ये भगवान का आशीर्वाद है. फिर मैंने मेहनत की. बड़ा काम करने की कोशिश की. मेहनत करने पर भगवान भी मदद करते हैं. '
अब दीपक भोजपुरी के बाद हिंदी फ़िल्में प्रोड्यूस करना चाहते हैं.
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