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मां बनने के बाद बदल रही है हीरोइनों की ज़िंदगी
फ़िल्मों में भी मां के क़िरदार से वापसी करने वाली अभिनेत्रियां कामयाबी हासिल कर रही हैं।
असली ज़िंदगी मे मां बन चुकी बालीवुड की हीरोइनों के लिए मां बनकर ही फ़िल्मी पर्दे पर वापसी करना एक चलन बन रहा है.
नब्बे के दशक की कई अभिनेत्रियां जिन्होंने शादी कर मां बनने के बाद सुनहरे पर्दे को अलविदा कहा था, आज वापसी के लिए मां के क़िरदार का सहारा ले रही हैं.
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रवीना टंडन की रिलीज हुई 'मातृ' भी उसी फेहरिस्त की एक कड़ी है. इस कड़ी में माधुरी दीक्षित से लेकर ऐश्वर्या राय जैसी कई हीरोइनें शामिल हैं.
2007 में आई यशराज फ़िल्म्स की 'आजा नच लै' से पाँच साल बाद वापसी करने वाली माधुरी भी उस फ़िल्म में एक बच्चे की मां बनी थीं. साल 2006 में काजोल ने भी कमबैक करने के लिये फिल्म 'फ़ना' को चुना.
'जो दिल चाहेगा वो करूंगी'
इस फ़िल्म में उनका क़िरदार कहानी में आगे चलकर प्रेमिका से मां में तब्दील हो जाता है.
साल 2012 में आई श्रीदेवी की फ़िल्म 'इंगलिश विंग्लिश' हो या फ़िर उनकी आने वाली फिल्म 'मॉम' या साल 2015 की ऐश्वर्या स्टारर 'जज़्बा' और अब रवीना की 'मातृ', इन सभी फ़िल्मों से ये ज़ाहिर है कि असली ज़िंदगी में मां बन चुकी इन हीरोइनों ने कमबैक के लिए ऐसी कहानी को चुना जो इनकी निज़ी ज़िंदगी की मां की छवि से मिलती हो.
लगभग 5 साल बाद मुख्य भूमिका मे वापसी करने वाली रवीना का कहना है, "मैं मां हूं इसलिए ऐसा क़िरदार करूं ऐसा नहीं है. मैंने अपने करियर की शुरुआत से इस तरह की फ़िल्में की हैं जो किसी न किसी मुद्दे से जुड़ी हों. जब मैं असली ज़िंदगी में माँ नहीं थी तब भी मैंने 'दमन' में मां की भूमिका निभाई. मेरे दिल के जो करीब है मैं वो करती हूं."
'अब ज़्यादा आसान है'
गोरी शिंदे की फिल्म 'इंगलिश विंग्लिश' से 15 साल के अंतराल के बाद बॉलीवुड में वापसी करने वाली श्रीदेवी हो या बेटी आराध्या के जन्म के पांच साल बाद ज़ज़्बा से वापसी करने वाली ऐश्वर्या.
फ़िल्म के प्रमोशन के दौरान दोनों ही कलाकारों ने इस बात को माना कि मां बनने के बाद ऐसे क़िरदार को निभाना उनके लिये ज़्यादा आसान होता है.
ऐश्वर्या राय की मानें तो, "फर्क सिर्फ इतना है कि 5 साल पहले करती तो मैं मां के क़िरदार को इमेजिन करके करती, लेकिन अब मां बनने के बाद मैं उस इमोशन को समझ सकती हूं. हालाकि जज़्बा ऐसी फ़िल्म है जो मुझे मेरे करियर मे कभी भी ऑफ़र हुई होती तो भी मैं करती."
'अभिनेत्रियां खुद चाहती हैं'
फ़िल्म आलोचक कोमल नाहटा कहते हैं, "अक्सर मां बनने के बाद अभिनेत्रियों के पास ऑप्शन बहुत नहीं होते. आज बहुत सा नया टैलेंट हमारे पास है. दर्शक भी मां बनने के बाद हीरोइनों को कॉमर्शियल फ़िल्मों मे ऐक्सेप्ट नहीं करते. सिनेमा बदल रहा है तो शायद बहुत जल्द ये भी बदल जाए. ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिए की दर्शकों को भी पता है कि कब कौन सी अभिनेत्री शादीशुदा है और मां बन चुकी हैं. ऐसे में इस बात को ध्यान मे रख कर ही उन्हें रोल भी ऑफ़र किए जाते हैं."
हालांकि रियलिस्टिक सिनेमा बनाने वाले मधुर भंडारकर कुछ और ही मानते हैं, "आज कई मुद्दों पर फ़िल्म बन रही हैं, ऐसे में अभिनेत्रियों के पास बहुत विकल्प हैं. मैं मां की फ़िल्म में मां को लूं ऐसा नहीं है, लेकिन एक बात सच है कि शादी और मां बनने के बाद अभिनेत्रियां खुद ऐसी ही फिल्में भी करना चाहती हैं, जिसमें वो बच्चे और घर को सम्भालते हुए काम कर सकें."
सम्मान भी एक कारण
दरअसल ऐश्वर्या भी 'जज़्बा' से पहले मणिरत्नम की फ़िल्म से बतौर हिरोइन वापसी करने वाली थीं, लेकिन ऐश्वर्या ने स्वीकार किया, "मणि सर की फ़िल्म के लिए मुझे बाहर शूट के लिए जाना पड़ता और आराध्या को अकेले छोड़ना पड़ता. लेकिन संजय गुप्ता की फ़िल्म मुम्बई में ही शूट होने की वजह से मैं आराध्या को भी सम्भाल सकी."
'इंगलिश विंग्लिश' से कमबैक करने वाली श्रीदेवी हो या अब 'मातृ' से वापसी करने वाली रवीना टंडन, दोनों के मुताबिक़ सम्मान और ग्रेस से जो काम कर सके वही करना उन्हें पसंद है.
'इंगलिश विंग्लिश' के दौरान ही श्रीदेवी ने कहा था, "कोई भी ऐसा क़िरदार और फ़िल्म जो मैं अपने परिवार के साथ बैठ कर देख सकूं ज़रूर करना चाहूंगी. जिस क़िरदार को करते हुए मुझे शर्म महसूस हो मैं वो नहीं करूंगी."
ताकि खुद को हास्यास्पद न लगे
रवीना भी कहती हैं, "मैं क्या डिग्निटी और ग्रेस के साथ कर सकती हूं मेरे लिये वो भी मायने रखता है. मैं ओनीर के साथ अगली फ़िल्म एक लव ट्राएंगल कर रही हूं. इस फ़िल्म में मैं अपनी ही उम्र की एक औरत का क़िरदार निभा रही हूं. मैं अपने से छोटी उम्र का क़िरदार निभाऊं तो दर्शक की बात तो छोड़ो, मुझे खुद को ये बात हास्यास्पद लगती है."
आश्चर्य की बात ये है कि आज से लगभग 40 दशक पहले हिंदी सिनेमा की कई हीरोइनों ने शादी और मां बनने के बाद भी बतौर हीरोइन ही वापसी की.
ये बात और है कि ऐसी अधिकतर फ़िल्मों में हीरोइन की भूमिका मात्र एक ग्लैमरस हीरोइन की न होकर काफ़ी दमदार थी.
सफलता मिली
मां बनने के बाद लगभग 7 साल का ब्रेक लेकर वापस लौटी नरगिस दत्त की 1967 में आयी फिल्म 'रात और दिन' के लिए नेशनल अवॉर्ड दिया गया.
शर्मिला टैगौर उस दौर की उन हीरोइनों में से थीं जिन्होनें फ़िल्मों में लगातार काम किया. मां बनने के बाद अमर प्रेम की पुष्पा हो, 'चुपके चुपके' हो या फ़िर फ़िल्म 'मौसम' की चंदा.
उनके हर क़िरदार को प्रशंसा मिली. उनको भी अपने अभिनय के लिये बेस्ट ऐक्ट्रेस का अवॉर्ड फिल्म 'मौसम' के लिए मिला जो उनके मां बनने के 5 साल बाद रिलीज हुई थी.
वहीं मां बन चार साल का ब्रेक ले 1979 में फ़िल्म 'नौकर' से वापसी करने वाली जया बच्चन को इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर का बेस्ट ऐक्ट्रेस का खिताब मिला.
1981 में आयी फ़िल्म 'सिलसिला' भी उनके मां बनने के ही बाद रिलीज़ हुई और उन्हें खूंब प्रशंसा मिली.
इस फ़ेहरिस्त में हेमा मालिनी और डिम्पल कपाड़िया जैसी अभिनेत्रियां भी शामिल हैं.
हेमा मालिनी ने मां बनने के बाद 'सत्ते पर सता' जैसी फ़िल्म से वापसी की तो अपनी पहली ही फिल्म 'बॉबी' के बाद शादी कर फ़िल्मों से सन्यास ले चुकीं डिम्पल कपाड़िया की 'सागर', 'जांबाज़' जैसी फ़िल्में उनके मां बनने के बाद ही रिलीज़ हुईं.
फ़िल्मकार को भी सुविधा होती है
फ़िल्म आलोचक भावना सौमेया का मानना है, "पहले सोशल मीडिया नहीं था. हिरोइन मां बनने के बाद वापसी करती थीं तो भी किसी को पता नहीं चलता था. आज करीना मां बन गई हैं तो हर जगह इस बात की इतनी चर्चा है कि हर दर्शक के दिमाग में बैठ चुका है कि वो मां हैं. ऐसा ही दूसरी हीरोइनों के साथ होता है और फ़िल्मकार उनको मां के रूप में पेश करते हैं."
लेकिन वो इस बदलाव को बेहतर मानती हैं, "पहले मां मतलब साड़ी और जूड़े वाली मां थी लेकिन आज मां भी बहुत मॉडर्न है और आज तो कई मुद्दों पर फ़िल्म बन रही है. ऐसे में आज की हीरोइनों को अपने लुक्स के साथ बदलाव किए बिना ही ऐसे क़िरदार करने को मिल रहे हैं तो इसमें बुराई कुछ नहीं. ये सिनेमा और हीरोइन दोनों के लिए अच्छा है."
ये बदलाव सिनेमा का हो या दर्शकों की सोच का, लेकिन इससे एक बात तो ज़ाहिर है कि जहां पहले हीरोइन सिर्फ हीरोइन ही थी वही आज सोशल मीडिया के दौर में हीरोइन का निजी ज़िन्दगी में प्रेमिका, पत्नी और मां बनने के सफ़र का असर कहीं न कहीं शायद उसके फ़िल्मी करियर पर भी पड़ता ही है.
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