twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    बॉलीवुड के लिए बहुत ही बुरा हफ़्ता.....

    By Staff
    |
    Aashayein

    भावना सोमाया, वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए,

    जब एक ही हफ़्ते में बहुत सी फ़िल्में रिलीज़ हो जाएं तो इसके दो ही मतलब निकलते हैं. या तो सारी फ़िल्में इतनी अच्छी हैं कि उनको कंपिटीशन से कोई डर नहीं, या दूसरा यह कि बड़ी फ़िल्मों के साथ रिलीज़ होकर पिटने से बेहतर है कि छोटी फ़िल्में एक झुंड में रिलीज़ हों और अपनी किस्मत आजमा लें. इस हफ़्ते कोई आधी दर्जन छोटे बजट की फ़िल्में रिलीज़ हुईं और सच कहें तो एक भी देखने लायक नहीं हैं.

    फ़िल्म 'आशाएं' एक और बहुत बीमार मरीज़ की कहानी है जो अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में खुशियां बचाकर जीना चाहता है. डॉयरेक्टर नागेश कुकनूर कुछ नया करने की कोशिश करते हैं लेकिन कामयाब नहीं रहते. हमने इसी विषय पर पहले बेहतर फ़िल्में देखी हैं. जैसे-हृषिकेश मुखर्जी की आनंद और करण जौहर की कल हो ना हो. दुख के साथ कहना पड़ता है कि नागेश कुकनूर का जादू नहीं चल रहा है. उनकी पिछली फ़िल्मों में 'हैदराबाद ब्लूज' 'इक़बाल' की बात नहीं है.

    एक फ़िल्म है 'सोच लो'-जिसमें सोचने जैसा कुछ नहीं है. दूसरी फ़िल्म 'गुमशुदा' है जिसका प्रचार पूरे परिवार के लिए एक फ़िल्म के तौर पर किया गया. मेरा तो कहना है कि अगर आप पूरी बिरादरी के साथ भी थिएटर जाएंगे तो यक़ीनन खो जाएंगे. फ़िल्म के डायरेक्टर और लेखक दोनों ही गुमशुदा हैं. एक अन्य फ़िल्म है माधो लाल कीप वॉकिंग. ऑडिटोरियम के अंदर जाने से पहले लगता है कि शायद फ़िल्म की कहानी अच्छी होगी. लेकिन इस फ़िल्म की सबसे बड़ी समस्या यह है कि लेखक/निर्देशक ने बिना किसी योजना के फ़िल्म बनाई है.

    दर्शकों को आख़िर तक पता नहीं चल पाता कि फ़िल्म किसके बारे में है...मुंबई जैसे बड़े शहर...सांप्रदायिक दंगे या कुछ और..? फ़िल्म के प्रचार में लिखा है कि 'यह एक आम आदमी की कहानी है'-माधोलाल शायद पहला आम आदमी है जो किसी को समझ में नहीं आया. पाँचवीं फ़िल्म है हैलो डार्लिंग. इसका निर्माण किया है अशोक घाटी ने और निर्देशक हैं मनोज तिवारी. यह एक बहुत ही मशहूर फ़िल्म 9 टू 5 पर आधारित है जिसमें ऑफिस में काम करती औरतें अपने आवारा बॉस से तंग आकर उसे सबक सिखाती हैं.

    कुछ साल पहले इसी सब्जेक्ट को लेकर कमल हासन के प्रोडक्शन हॉउस राजकमल फ़िल्म ने एक फ़िल्म शुरू की थी जो स्वर्गीय गीतकार शैलेंद्र के बेटे बबलू ने निर्देशित की थी. लेकिन किसी वजह से कमल हासन ने यह फ़िल्म रिलीज़ नहीं की. हैलो डार्लिंग के निर्देशक मनोज तिवारी ने कहीं पर यह बयान दिया है कि उनकी फ़िल्म आलोचकों के लिए नहीं है. कुछ हफ़्ते पहले साजिद खान ने भी 'हाउसफुल' के रिलीज़ के पहले कुछ ऐसा ही कहा था और प्रेस शो रखने के लिए इनकार कर दिया.

    इस बार मनोज तिवारी ने प्रेस शो नहीं रखा है और प्रेस ने भी हैलो डार्लिंग में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. काफ़ी साल पहले बासु चटर्जी ने मुझसे एक इंटरव्यू में कहा था कि यह ज़रूरी है कि फ़िल्म का पोस्टर ऑडिएंस को फ़िल्म के लिए तैयार करे. सुशील राजपाल के 'अंतरद्वंद्व' का पोस्टर आपको एक अनोखी और सच्ची फ़िल्म के लिए तैयार करता है. फ़िल्म में बिहार में दहेज प्रथा से बचने का नया उपाय -दूल्हे का अपहरण एक सच्ची घटना है. नए कलाकारों को लेकर बिहार के छोटे गांवों में वहीं की भाषा में बनाए गए 'अंतरद्वंद्व' को इस साल बेस्ट रीजनल फ़िल्म की श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है.

    फ़िल्म के सारे कलाकार-विनय पाठक, अखिलेंद्र मिश्रा और युवा कलाकार बहुत अच्छी भूमिका में हैं-खास तौर पर लड़की की भाभी की भूमिका में जया भट्टाचार्य जो काफ़ी सुंदर और एक बेहतरीन कलाकार हैं. अमिताभ वर्मा की लिखी फ़िल्म 'अंतरद्वंद्व' एक अच्छी लेकिन बहुत ही सूखी और धीमी फ़िल्म है. आम तौर पर ऐसे ज्वलंत मसले हमें झुंझला देते हैं. लेकिन यह फ़िल्म हमें न तो रुलाती है और न ही गुस्सा दिलाती है. शायद इसलिए क्योंकि टेलीविज़न पर इसी सब्जेक्ट को लेकर भगवदगीता नाम का एक सीरियल कई हफ़्ते से चल रहा है. कुल मिलाकर बहुत ही बुरा हफ़्ता. छह फ़िल्में यानी बारह घंटे और आने जाने के समय को मिलाकर भेजा फ़्राई.

    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X