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अंजाना-अंजानी और भी कुछ
अयोध्या के फ़ैसले की वजह से पिछले हफ़्ते कोई भी फ़िल्म रिलीज़ नहीं हुई थी, इसलिए इस हफ़्ते एक साथ चार फ़िल्में रिली़ज़ हो रही हैं.
कुछ साल पहले निर्देशक सिद्धार्थ ने हमें सलाम नमस्ते दी थी जे लिव-इन रिलेशनशिप और शादी से पहले माँ बनने के विषय से संबंधित थी.
इस बार सिद्धार्थ प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला के साथ मिलकर लाएँ हैं अनजाना अनजानी.
ये कहानी है दो अजनबियों की जो आधी रात बीच सड़क पर मिलते हैं और दोस्त बन जाते हैं.
दोनों का एक ही मक़सद है-आत्महत्या. और उसपर अमल करने के पहले दोनों अपने सारे सपने पूरा करने का वादा करते हैं.
वैसे तो फ़िल्म का संदेश बहुत ही आदर्शवादी है, कि ज़िंदगी ख़ूबसूरत है और हमें इसकी क़द्र करनी चाहिए. मगर फ़िल्म में ये बताने का तरीका कुछ ऐसा है कि क़िरदारों पर विश्वास नहीं होता.
सबसे पहले प्रियंका और रणबीर तो किसी कोने से डिप्रेस्ड यानि निराश नहीं लगते. दूसरा, दोनों बिल्कुल कड़के होने के बावजूद पूरी दुनिया घूमते हैं और पार्टी-शार्टी करते हैं..
फ़िल्म की बढ़िया स्टार कास्ट है और उनकी बहुत अच्छी केमिस्ट्री भी है, मगर फ़िल्म में कोई प्लॉट नहीं है.
फ़िल्म में बहुत बढ़िया लोकेशन है, हीरो-हीरोइन बहुत महंगे कपड़े पहनते हैं मगर अनजाना अनजानी में दिल नहीं है.
ये शायद पहली प्रेम कहानी है, जिसका संगीत(विशाल शेखर का दिया हुआ) इतना बुरा है.
मैं अनजाना अनजानी को 2 1/2 स्टार दूँगी.
अब बात सबसे छोटी बजट की फ़िल्म बेनी और बबलू जिसमें बेनी बने हैं केके मेनन और बबलू बने हैं राजपाल यादव.
इसमें निर्माता और निर्देशक बात नई तरह से कहने की कोशिश करते हैं लेकिन बात पूरी तरह से बनी नहीं है.
वैसे तो यह व्यंग्यात्मक फ़िल्म है जो काफ़ी हद तक मनलगाऊ भी है लेकिन ना ही हम दिल खोलकर हँसते हैं और ना ही कुछ सोचते हैं.
मैं इसे दो स्टार दूँगी.
हैट्स ऑफ़ प्रोडक्शन्स की खिचड़ी, जैसे कि हम सब जानते हैं, टेलीविज़न के इतिहास में सबसे कामयाब सिटकॉम रही है. अब यही कहानी और इन्हीं कलाकारों को लेकर फ़ॉक्स स्टार उसे बड़े पर्दे पर प्रस्तुत कर रहे हैं.
अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि इतने रसीले किरदारों और चटपटे संवादों के बावजूद, बड़ी टपेली की खिचड़ी बिल्कुल ही स्वादिष्ट नहीं है.
पूरी फ़िल्म एक ही सुर में चलती है और पटकथा लिखने वाले की बहुत कोशिश के बावजूद कहानी सीरियल के एक एपीसोड की तरह लगती है.
माफ़ कीजिएगा जेडी मजीठिया जी. आपने छोटे पर्दे पर बहुत कामयाब शो दिए हैं मगर इस बार आपको हम हैट्स ऑफ़ नहीं कह सकते क्योंकि इस बार की खिचड़ी मसालेदार नहीं है. मैं खिचड़ी को दूँगी दो स्टार.
और आख़िर में रोबोट.
रजनीकांत बेमिसाल हैं और वो एक्शन फ़िल्म के आठवाँ अजूबा हैं.
किसी ने शायद ख़्वाब में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब भारत जैसे विकासशील देश में ऐसी हाई टेक फ़िल्म बनेगी जो वर्ल्ड सिनेमा के मुक़ाबले में होगी!
एस शंकर की रोबोट मेनस्ट्रीम मसाला सिनेमा की एक नई और अनोखी पहचान क़ायम करती है.
आम तौर पर ऐसी बिग बजट फ़िल्में तकनीकी दृष्टि से बेहतरीन होती हैं, मगर उसमें जज़्बात नहीं होते. रोबोट शायद पहली साई-फ़ाई फ़िल्म है जिसमें ख़ूबसूरती के साथ-साथ संदेश और सब्सटेंस भी है.
ये अच्छी लिखी हुई औऱ बढ़िया से बनाई हुई फ़िल्म है. इसकी कहानी शानदार है जो शुरू से आख़िर तक हमें पर्दे से नज़र नहीं हटाने देती.
और सबसे अहम बात-इसकी ख़ुशबू, इसके रंग और रस पूरी तरह से भारतीय हैं.
रोबोट अनोखी है और कहीं से भी चुराई नहीं गई है.
डायलॉग एस शंकर का है, कोरियोग्रैफ़ी प्रभु देवा की है और संगीत दिया है एआर रहमान और स्वनानद किरकिरे ने.
और सबसे बड़ी बात तो ये कि इसमें रजनीकांत हैं.
वो गाड़ियों का विनाश करते हैं, हेलिकॉप्टर को निगल जाते हैं, सेकंडों में खाना बनाते हैं, मिनटों में अनगिनत किताबें पढ़ जाते हैं, मशीन गन का हार पहनते हैं और उंगलियों से गन फ़ायर करते हैं.
सुनने में ये सारी बातें अटपटी लगें लेकिन देखने में इनपर यक़ीन इसलिए हो जाता है क्योंकि ये सब रजनीकांत कर रहे हैं जो शो- बिज़नेस के आठवें अजूबे हैं!
मैं रोबोट को पूरे के पूरे पाँच स्टार देती हूँ.