Just In
- 1 hr ago VIDEO: कांग्रेस के लिए वोट मांगने निकले 'शाहरुख खान'! भड़क उठी बीजेपी बोली- बहुत सस्ता...
- 1 hr ago चुनावी माहौल के बीच मां हेमा मालिनी के साथ मथुरा दर्शन करने गईं ईशा देओल, कड़ी धूप में की पैदल यात्रा
- 2 hrs ago Bhojpuri Video: आम्रपाली दुबे ने रेड ड्रेस में खेसारी लाल यादव के उड़ाए होश, बोलीं- मरद अभी बच्चा बा...
- 2 hrs ago सीमा हैदर ने सचिन के घर में छुपा रखी है ऐसी-ऐसी चीजे, कैमरा लेकर गुस्साए लोगों ने खंगाल दिए सारे सबूत
Don't Miss!
- News मथुरा में हेमामालिनी के लिए प्रचार करने पहुंचे अमित शाह, बोले- 2014 से पहले पाकिस्तानी आकर बम धमाके करते थे
- Finance फर्नीचर खरीदने के लिए ले रहे हैं लोन तो नहीं कर सकते हैं, इनकम टेक्स डिडक्शन का दावा
- Travel जल्द खुलने वाले हैं लखनऊ-कानपुर, अहमदाबाद-धोलेरा समेत 10 से ज्यादा एक्सप्रेसवे, List
- Lifestyle पाकिस्तान में महिला ने दिया Sextuplets को जन्म, 4.7 बिलियन में एक के साथ होता है ये करिश्मा
- Education Assam 10th Result 2024 declared: असम बोर्ड कक्षा 10वीं रिजल्ट जारी, 593 अंकों के साथ अनुराग बने टॉपर
- Automobiles New Gen Swift ने Japan NCAP क्रैश में हासिल की 4-स्टार सेफ्टी रेटिंग, भारत में जल्द होगी लॉन्च, जानें खासियत?
- Technology Google Pixel 8a की कीमत डिटेल आई सामने, यहां जानें सबकुछ
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
कभी ऑस्कर का हिस्सा रहे, आज दर दर भटक रहे हैं
स्लमडॉग मिलेनियर में काम कर चुके रूबीना और अज़हर की मुश्किलों की कहानी।
"पेट भरने के लिए मैं कोई भी काम कर लूंगी जिससे मुझे सात से आठ हज़ार मिल जाए. मैं किसी काम को छोटा बड़ा नहीं समझती."
ये शब्द उस कलाकार के हैं जो ऑस्कर जीत चुकी फ़िल्म का हिस्सा रही हैं.
रूबीना ने नौ साल की उम्र में साल 2008 की आठ ऑस्कर जीतने वाली फ़िल्म स्लमडॉग में काम किया था.
मुंबई के बांद्रा इलाके के स्लम में रहती रूबीना की ज़िंदगी उस फ़िल्म ने बदल दी. नाम, शोहरत और सर पर छत सब कुछ मिला.
झोपड़पट्टी से हॉलीवुड तक सनी का सफ़र
ऑस्कर के लिए कितना ख़र्चा करना पड़ता है?
"मुझे लगता था कि मेरी ज़िंदगी एकदम पलट गई है. मै सेलिब्रेटी हूं ऐसा महसूस करती थी. लोग मुझे पहचानते थे तो मुझे बहुत अच्छा लगता था. 2011 में बांद्रा इलाके में लगी भीषण आग में रूबीना ने अपना मकान और ऑस्कर की सारी यादें गवां दी."
रूबीना की ज़िंदगी का आलम आज ये है कि वो किसी को ये तक बताना नहीं चाहती कि वो कहाँ रहती है. आज बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा 18 साल की हो चुकी रूबीना की ज़िंदगी की हक़ीक़त सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
अकेले संघर्ष करने को मजबूर
रूबीना अली की ज़िंदगी पिछले नौ सालों में इतनी बदल गई कि माथे की शिकन को मुस्कुराहट से कैसे छुपाया जाए वो उन्होंने बख़ूबी सीख लिया है.
सब कुछ आग में गंवाने के बाद फ़िल्म के निर्देशक डैनी बॉयल के जय हो ट्रस्ट ने उन्हें घर दिया. लेकिन आज वहाँ उसके डैडी और सौतेली माँ रहते हैं. घर खाली कराए जाने पर पिता ख़ुद को फाँसी लगा लेने की धमकी देते हैं. वहीं बाप से अलग हो दूसरी शादी कर चुकी मां तो रूबीना को पूछती ही नहीं.
पिछले डेढ़ सालों से अकेली रहने वाली रूबीना आज पेट भरने के लिए पार्ट टाइम जॉब की तलाश कर रही है.
बिना अंग्रेज़ी जाने ऑस्कर तक पहुंचे सनी पवार
"कोई सगा पिता ऐसा कैसे कर सकता है वो घर के साथ साथ फिक्सड डिपोजिट में 50% का हिस्सा चाहे? पिछले एक साल चार महीने से मेरे पास मेरी माँ का फ़ोन तक नहीं आया कि तू कैसी है, कहाँ रह रही है? मैं अकेली हूं. मेरी ज़िंदगी में कुछ नहीं बचा है. वो लोग अपनी ज़िंदगी में ख़ुश हैं तो मुझे लगा कि मैं भी अपनी ज़िंदगी में ख़ुश रहूं."
पेट भरने की चुनौती
स्लमडॉग का हिस्सा रहे अज़हर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
अज़हर फिलहाल इस असमंजस में हैं कि सपने के पीछे दौड़ें या पेट भरने के पीछे. वो भी रुबिना की ही तरह बांद्रा इलाके की स्लम में रहते थे, लेकिन स्लमडॉग मिलिनेयर के बाद उन्हें भी सर पर छत मिली जहाँ वो अपनी माँ के साथ रहते हैं, लेकिन सपने तो आज भी अधूरे हैं.
वे कहते हैं, "मैं एक्टिंग क्लास करना चाहता हूं, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं. आठवीं कक्षा तक स्कूल में मैंने अमोल गुप्ते की एक्टिंग क्लास की लेकिन नौंवी कक्षा में स्कूल छूटने के साथ ही वो भी छूट गई. पिछले साल पैसों की तंगी के कारण स्कूल छूट गया. अब सोच रहा हूं कि प्राइवेट से दसवीं करूंगा."
अज़हर के सिर से पिता का साया 2009 में ही उठ गया था. एक साल पहले नौवीं कर स्कूल छोड़ चुके अज़हर कहते हैं कि अगर एक्टिंग में कोई चांस नहीं मिला तो ट्रस्ट से मिलने वाली रकम से भाई के साथ मिल कर बिज़नेस करेंगे.
बाफ़्टा में देव पटेल चमके, ऑस्कर की तैयारी
वैसे ऑस्कर के रेड कार्पेट पर चले रूबीना और अज़हर आज एक दूसरे के संपर्क में नहीं है. इसी साल 18 साल के हो जाने की वजह से अज़हर और रूबीना को हर महीने जय हो ट्रस्ट की तरफ से मिलने वाली रकम भी अब बंद हो चुकी है.
हालांकि बहुत ही जल्द ट्रस्ट का दिया घर और पैसा अज़हर के नाम हो जाएगा लेकिन रूबीना के सर पर तो वो छत भी नहीं है.
ज़िंदगी के कई कड़वे सच देख चुकी रूबीना की ही तरह अज़हर भी इस चकाचौंध भरी ग्लैमर की दुनिया के दूसरे पहलू से भी वाक़िफ हैं.
स्लमडॉग मिलिनेयर की सफलता के समय मदद के कई वादों ने दोनों की उम्मीदें बढ़ा दी थीं. अनिल कपूर और साथ ही कई जगहों से मदद का आश्वासन मिलने की वजह से रुबिना और अज़हर दोनों ही कुछ साल पहले अनिल कपूर से मिलने गए.
जहां अज़हर को फिर से एक बार मदद का आश्वासन मिला वहीं रूबीना को तो मिले बिना ही वापस आना पड़ा. हालांकि अज़हर को आज भी उम्मीद है कि मदद मांगने पर मदद शायद मिल जाए.
उम्मीद पर दुनिया क़ायम है
अज़हर कहते हैं, "ये दुनिया (फिल्मी दुनिया) ऐसी है जहाँ किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए. लोग फ़ायदा उठाने की कोशिश करते हैं. लोग कहते हैं कि आपकी मदद करेंगे लेकिन कोई करता नहीं. मैं तो सिर्फ़ इतनी मदद चाहता था कि मुझे कोई अच्छी फिल्म में काम मिल जाता."
रूबीना अपने कल से पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद कर रही हैं तो बिना बाप का नौजवान बेटा अज़हर घर चलाने के लिए संघर्ष.
लेकिन दोनों की ही ज़िंदगी में अगर कोई उम्मीद की किरण है तो वो हैं निर्देशक डैनी बॉयल. वो हर बार भारत आने पर दोनों से मिलना नहीं भूलते.
आत्मनिर्भर होने का और हंसते हंसते ज़िंदगी का संघर्ष करने का गुर दोनों ने उन्हीं से ही सीखा है.
इन दोनों ने कभी नहीं सोचा था कि ज़िंदगी की चुनौतियां और ग़म उन्हें इतनी जल्दी बड़ा कर देंगे जहाँ पढ़ने और दोस्तों के साथ घूमने की उम्र उन्हें अपने पेट भरने की चिंता में बितानी होगी.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)