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    वीनस की ज्यूरी में अनुराग कश्यप

    By Staff
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    वीनस की ज्यूरी में अनुराग कश्यप

    भारतीय लेखक-निर्देशक अनुराग कश्यप को इस वर्ष वीनस फ़िल्म समारोह की ज्यूरी में शामिल किया गया है.

    साथ ही उनकी फ़िल्म देव-डी और गुलाल को भी 66वें वीनस फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित किया जायेगा. इसके अलावा समारोह में राकेश ओमप्रकाश मेहरा की डेल्ही-6 और अमित दत्ता की आदमी की औरत और अन्य कहानियां भी दिखाई जाएँगी.

    दत्ता की ये फ़िल्म, फ़िल्म ऐंड टेलिविज़न इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया के एक्टिंग कोर्स की डिप्लोपा फ़िल्म है. ये विनोद कुमार शुक्ल और सआदत हसन मांटो की ऐसी कहानियों पर बनाई गई है जो पुरुष और महिला के बीच के संबधों पर मंथन करतीं हैं.

    अनुराग कश्यप ने बीबीसी को बताया कि ये चार-चार हिंदी फ़िल्मों का प्रदर्शन भारतीय सिनेमा के लिए अच्छी बात है.

    लेकिन इनमें से सिर्फ़ अमित दत्ता की फ़िल्म ही प्रतिस्पर्द्धा की श्रेणी में है यानि बाक़ी तीन फ़िल्में दिखाई तो जायेंगी लेकिन इन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिलेगा.

    कश्यप ने इन फिल्मों के प्रतिस्पर्द्धा की श्रेणी में ना होने की वजह बताते हुए कहा कि हमारा सिनेमा एक अलग तरह का सिनेमा है और पाश्चात्य संवेदनशीलता की वजह से वहां चीज़ों को अलग तरह से देखा जाता है.

    एक अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह की ज्यूरी का सदस्य बनना कश्यप काफ़ी जिम्मेदारी का काम मानते हैं. उन्होंने कहा कि ये सिर्फ़ ज्यूरी में शामिल होना मात्र नहीं, वहां वो अपने सिनेमा के एक प्रतिनिधि भी होंगे.

    दो सितंबर से शुरु हो रहे इस समारोह में अनुराग कश्यप जिस ज्यूरी का हिस्सा होंगे उसके अध्यक्ष हैं ऑस्कर से सम्मानित निर्देशक ऐंग ली.

    ऐंग ली क्राउचिंग टाइगर हिडन ड्रैगन और ब्रोबैक माउंटेन जैसी कई बहुचर्चित फ़िल्में बना चुके हैं.

    कश्यप और ली के अलावा इस बार वीनस फ़िल्म समारोह की ज्यूरी में फ़्रांसिसी अभिनेत्री सैंड्रीन बोने, इतालवी फ़िल्मकार लिलियाना कवानी, अमेरिकी निर्देशक जो दांते और इतालवी रॉक स्टार लुसिआनो लिगाब्यू भी शामिल हैं.

    अनुराग कश्यप इन दिनों उड़ान बनाने मे जुटे हुए हैं. उन्होंने बीबीसी को बताया कि वो इस फ़िल्म के ज़रिए एक छोटे शहर में पिता और पुत्र के बीच करियर को लेकर जारी जद्दोजहद दिखाने जा रहे हैं.

    कश्यप ने लीक से हटकर फ़िल्में बनाकर अपने लिए हिंदी फ़िल्म जगत में एक ख़ास जगह बनाई है. वो मानते हैं कि ये हिंदी सिनेमा के लिए ट्रांजिशन का दौर है, ऐसे दौर में ही सबसे ज़्यादा मुश्किलें आतीं हैं. उन्होंने कहा कि ये मंथन के बाद जो निकलेगा, वही हमारे सिनेमा का भविष्य होगा.

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