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    शोहरत प्रतिभा से भारी लगती है

    By Staff
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    शोहरत प्रतिभा से भारी लगती है

    रचना श्रीवास्तव

    बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए, डैलस, अमरीका से

    1200 से ज़्यादा भजन, 5000 से अधिक कंसर्ट्स और 200 से अधिक भजन और ग़ज़ल के एल्बम. ये कहानी खुद बयान करती है भजन सम्राट अनूप जलोटा के गायन सफ़र की.

    अनूप जलोटा निसंदेह ही भजन गायन यात्रा के सबसे अग्रणी सारथी हैं और आज भजन को इस सरलता और सफलता से जन मानस के दिल और आम घरों तक पहुँचाने का बहुत सा श्रेय अनूप जलोटा को जाता है.

    उत्तराखंड के नैनीताल में पुरषोत्तम दास जलोटा के घर में जन्मे अनूप जलोटा को संगीत शिक्षा अपने पिता से विरासत में मिली.

    भजन के पर्याय बन चुके अनूप जलोटा को ग़ज़ल गायकी में भी उतनी ही महारत हासिल है.

    अमरीका के आइज़्मेन सेण्टर, डैलस में सुर एंटरटेनमेंट द्वारा आयोजित अनूप जलोटा की भजन संध्या से पूर्व एक छोटी यात्रा हमने भी तय की इस भजन सम्राट के हृदय और मन की- अनूप जी, आप ने संगीत की शिक्षा किस से ग्रहण की ? मैने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता श्री पुरषोत्तम दास जी से ली है. पिता भी और गुरु भी , कैसा रहा ये संगम ? अच्छा था पर पिता जी बहुत सख्त थे. सिखाते समय वो चाहते थे कि सभी समय से आएँ.. फिर उनके पास बहुत से विद्यार्थी आते थे तो उतना समय भी नहीं दे पाते थे. हम जब लखनऊ आए तो मैने भातखंडे में प्रवेश लिया और अपनी संगीत की शिक्षा जारी रखी. आप छात्र जीवन के बारे में कुछ बताइए. छात्र जीवन बहुत ही अच्छा था. मेरे संगीत के कार्यक्रम उस समय भी होते थे. मैं किशोर कुमार के गाने गाता था, भजन गाता था और जब समय मिलता था तो मै क्रिकेट खेलता था. मुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था. यदि गायक नहीं होता तो क्रिकेटर होता. अच्छा, तो क्या आप क्रिकेट देखते भी हैं ? हाँ, मै तो बहुत देखता हूँ. सुनील गावस्कर और किरण मोरे मेरे अच्छे दोस्त भी हैं. आज की क्रिकेट टीम में आप को कौन पसंद है ? पूरी टीम ही बहुत अच्छी है. तेंदुलकर, धोनी, युवराज मुझे बहुत पसंद हैं. पुरषोत्तम दास जी स्वयं बहुत बड़े भजन गायक है, उनका पुत्र होना आप के लिए कैसा अनुभव है ? बहुत ही गर्व की बात है कि मै उनका पुत्र हूँ पर जब मैने भातखंडे में प्रवेश लिया था तो सभी कहते थे, अरे इसे सिखाने की क्या जरूरत है. सभी मुझ को बिठा के गाना सुनते थे. जब मैने गाना शुरू किया तो सभी मुझसे बहुत ज़्यादा उम्मीद रखते थे. आप जब मुम्बई आए थे तो उस समय आप ने आकाशवाणी पर काम किया वो आप का स्ट्रगल का समय था उस के बारे में कुछ बताइए. मेरे विचार से स्ट्रगल का समय, ये शब्द संगीत में होना नहीं चाहिए. इसे ट्रेनिंग का समय कहना चाहिए क्योंकि इसी समय हम सीखते हैं वरना जब नाम हो जाता है तो सीखना बंद हो जाता है व्यक्ति व्यस्त हो जाता है, पैसा कमाने, दुनिया घूमने और पहचान बनाने में. आप को अपना पहला ब्रेक कैसे मिला ? मुम्बई के एक कार्य्रक्रम में मनोज कुमार जी ने मुझे सुना उनको मेरा गाना बहुत अच्छा लगा उन्होंने कहा की आप शिर्डी के साईं बाबा में गाइए. मैने गाया फिर तो बहुत सी फिल्मो के ऑफर आने लगे और कुछ में तो मैने गाया भी. पर आप ने फिल्मों में बहुत कम गाया है ऐसा क्यों ? क्योंकि मुझे फिल्मो में गाने में ज़्यादा आनंद नहीं आता मुझे स्टेज पर लाइव गाने में असीम आनंद की अनुभूति होती है. मैंने बहुत सी फिल्मों में संगीत दिया है, फिल्में बनाई भी है पर स्वयं नहीं गाया. हमेशा दूसरों से गवाया है. अभी भी मैने एक फिल्म बनाई है "मालिक एक" ये साईं बाबा पर है. इसमें जैकी ने साईं बाबा का रोल किया है. इसमें भी मैने कम गाया है ज़्यादा गाने गुलाम अली, जगजीत सिंह, पंकज उधास से गवाए हैं. एक समय भजन मात्र घरों , मंदिरों और धार्मिक सभाओं का हिस्सा हुआ करते थे. आप ने उसको अपनी गायकी का हिस्सा बनाया. क्या आप को लगता था की भजन को आप इस मुकाम तक पहुंचा पाएंगे जहाँ आज ये है ? मुझे बचपन से ही भजन सुनना बहुत अच्छा लगता था पर सभी कहते थे की ये तो साठ साल की उम्र में सुनने की चीज़ है पर मै उनको कहता था कि नहीं ये ग़लत है. भजन से प्यारी क्या चीज़ हो सकती है जिस में आप भगवान के चरित्र का वर्णन करते हैं. मैंने कहा कि ठीक है मै छोटा हूँ और मै गाऊंगा तो नौजवान सुनेंगे. मैंने सात साल की उम्र से भजन गाना शुरू किया, फिर कॉलेजों, स्कूलों में मेरे भजन के कायर्क्रम होने लगे. बच्चे मुझसे भजन सीखने आने लगे, सारेगामा टी वी शो में भजन गाने लगे. अपने इस सुर-यात्रा में जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं तो आपको क्या लगता है कि आप ने सब कुछ पा लिया है सब कुछ सीख लिया है या अभी भी कुछ पाना और सीखना बाकी है ? मुझे एक बात का दुःख रहता है कि मेरा नाम जरा जल्दी हो गया. यदि मुझे वो ट्रेनिग का समय (स्ट्रगल पीरियड) पॉँच साल और मिलता होता तो मैं और अच्छा गाता. जब मैं 27 साल का था तो मेरा एक अल्बम 1980 में हिट हो गया था. सफलता का आनंद लेने के लिए ये थोडा जल्दी था. मै और सीखना चाहता था. यदि सफलता थोडा और बाद में मिलती तो मैने इस से अच्छा किया होता.

    मुझे लगता है कि मैं जितना पाने के लायक था उससे ज़्यादा पा लिया है. इसलिए मै बहुत ही संतुष्ट हूँ. जब मै प्रतिभा और प्रसिद्धि को तराज़ू में रखता हूँ तो मेरी शोहरत मेरी प्रतिभा से भारी लगती है और ये मैं दिल से महसूस करता हूँ . आप ग़ज़ल गायकी से कैसे जुड़ गए ? ग़ज़ल तो मै लखनऊ के दिनों से गाता था. वहां मैं अपने पिता जी को सुनता था, बेगम अख्तर, ग़ुलाम अली जी, मेहँदी हसन साहब, तलत महमूद इन सभी को सुनता था. मैं इन सभी से बहुत मुतासिर (प्रभावित) था. मैंने ग़ुलाम अली, मेहँदी हसन और तलत जी सभी के साथ कार्यक्रम किया है. मैं ग़ज़लें भी स्टेज पर गाता था पर मैंने देखा कि जब मैं भजन गाता हूँ तो लोगों का जुडाव कुछ अलग हो जाता है. ग़ज़ल संसारी है और भजन अध्यात्मिक है तो मैं देखता था कि भजन का असर ज़्यादा होता है, लोग ज़्यादा समर्पित हो जाते हैं तो मैंने भजन की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देना प्रारंभ कर दिया और इसी क्षेत्र में मेरा नाम ज़्यादा हो गया. गायकी से आप फिल्म प्रोडक्शन के क्षेत्र में कैसे आ गए , जबकि आप के परिवार के सदस्य इस के ख़िलाफ़ थे ? ख़िलाफ़ थे तो कोई बात नहीं, मैं तो अब भी फ़िल्मे बना रहा हूँ. फ़िल्म बनाने का शौक है. (हँसते हुए) एक-आध बुरा शौक होना चाहिए. आप का नाम गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है. पहले ये एल्विस के पास था पर जब आप ने 58 गोल्ड और प्लेटिनम डिस्क के साथ उनका रिकॉर्ड तोडा था तो आप को कैसा लगा था ? कुछ नहीं, मुझे लगा कि एल्विस केवल अंग्रेज़ीमें गाते थे और मै कई भाषाओँ में गाता हूँ तो बहुत से रिकॉर्ड बिकते हैं. गुजराती, मराठी, सिंधी, बंगाली, उड़िया तो बस इसलिए बिकने वाले रिकार्ड्स की संख्या ज़्यादा हो जाती है . आप इतनी भाषाओँ में गाते हैं. आप इन को कैसे सीखते हैं. शुद्ध उच्चारण कैसे करते हैं ? उच्चारण पर बहुत मेहनत करते हैं. भाषा आती नही है. गाने के लिए थोडा सीख लेते हैं. गाने के भाव और उसका अर्थ जान लेते हैं, फिर गाते हैं. अभी मैंने एक मलयाली ग़ज़ल रिकॉर्ड की. मुझे मलयाली भाषा नहीं आती है. (मुस्कुराते हुए कहते हैं) आज के समय में संगीत और गायन में बहुत परिवर्तन हो रहा है आप इस विषय पर क्या कहना चाहेंगें ? परिवर्तन का स्वागत है क्योंकि परिवर्तन से ही अच्छे बुरे का पता चलता है. यदि एक ही चीज़ चलती जाएगी तो उसकी क़ीमत का पता नहीं चलेगा. परिवर्तन का मतलब ये नहीं कि लोग पुरानी चीज़ों को भूल जाते हैं. परिवर्तन का अर्थ है कि एक नई चीज़ दृश्य में आती है. इस को आप ऐसे लें कि परिवर्तन एक मेहमान है और मेहमान तो कुछ दिनों के लिए आते है (हँसने लगते हैं). परिवर्तन यदि अच्छा है तो टिका रहेगा वरना चला जाएगा .

    आप जब अपनी अल्बम के लिए भजनों ओर ग़ज़लों का चुनाव करते हैं तो उसके पीछे आपकी क्या सोच होती है ? मै देखता हूँ, क्या ये लोगों को समझ में आ जाएगी. सबसे पहले मुझे समझ में आनी चाहिए, सरल होनी चाहिए. आप सभी रागों के ज्ञाता है पर किस राग में गाना आप ज़्यादा पसंद करते हैं ? मुझे राग गुज़री तोडी बहुत पसंद है. इसको गाने में मुझको बहुत आनंद आता है. मेरे अधिकतर भजन इसी राग के आस पास हैं जैसे कभी कभी भगवान को भी.... , तेरे मन में राम.... ,,ऐसी लागी लगन...... ,जग में सुंदर है दो नाम.... इत्यादि. आप ने जिस तरह से अपने पिता जी का नाम रौशन किया है क्या आप का बेटा आर्यमन भी आप के पद चिन्हों पर चल संगीत को अपनाना चाहता है ? आर्यमन तेरह साल का है. जब वो पाँच या छह साल का था तो उस समय सचिन तेंदुलकर को फरारी कार मिली थी. उस ने मुझसे कहा पापा आप फरारी कार क्यों नहीं खरीद लेते. मैने कहा बेटा ये बहुत महंगी कार है. तो कहने लगा कि फिर गाना छोडो क्रिकेट खेलना शुरू कर दो. तो ये हाल है मेरे बेटे का. वो गाना तो नहीं गाने वाला है पर उस को संगीत का शौक है वो सुनता है. आपने पूरी दुनिया में शो किए हैं तो क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ के श्रोता बहुत अच्छे हो और आप को गा कर असीम आनंद आया हो ? ऐसी जगह तो भारत ही है. भारत में कहीं भी गाओ सभी अपने हैं ध्यान से और प्यार से सुनते हैं. यहाँ अमरीका में एक शहर है सेन फ्रानसिस्को जहाँ गा कर बहुत मज़ा आता है क्योंकि वहाँ पर शास्त्रीय संगीत के बहुत से विद्यालय हैं. अली अकबर ख़ान साहब, ज़ाकिर हुसैन, रवि शंकर जी....तो इस वजह से वहां संगीत के जानकार बहुत हैं. जब वो आते हैं और जिस तरह से गाना सुनते हैं तो वहाँ गा कर बहुत ही आनंद आता है. आप अब स्टेज पर शो करते हैं तो क्या हर बार आप को एक नई अनुभूति होती है ? हाँ ये सही है. हर बार बहुत ही अच्छा लगता है और सोचता हूँ कि कुछ और नए सुनने वाले मिलेंगे उनको हम कुछ अलग सुनाएंगें. हर कार्यक्रम एक नया अनुभव है पर आनंद वही पुराना होता है. ग़ज़लों के जानकारों का इल्ज़ाम है कि आज के गायकों ने ग़ज़ल को बहुत ही साधारण बना दिया है. गायकी के स्तर को गिरा दिया है. आप क्या कहना चाहेंगें ? किसी भी चीज को जब मार्केट में लाया जाता है तो उसको सरल करना पड़ता है, लाइफ बॉय साबुन कभी नहीं बिकता यदि उस को सस्ता कर के नहीं बेचा जाता. यही कुछ ग़ज़ल के साथ हुआ. इसकी मार्केटिंग कुछ ऐसी हुई कि हर इंसान जो कुछ भी सुनता था उस को ग़ज़ल समझने लगता था .एक बार मेरा सूरत में कार्य्रक्रम था. एक गुजराती आदमी मेरे पास आया बोला अनूप भाई आपकी एक ग़ज़ल ने मुझको दीवाना बना रखा है, उस को सुने बिना में सोता नहीं हूँ. मैंने पूछा वो कौन सी ग़ज़ल है भाई, उसने कहा "मैया मेरी मै नहीं माखन खायो". तो ग़ज़ल उस मकाम पर पहुंच गई थी कि जो भी आप को पसंद आए वो ग़ज़ल है. मेरे विचार से ये ग़ज़ल की एक बड़ी सफलता है. जैसे मैं 20 साल पहले एक अमरीकी व्यक्ति के घर खाना खाने गया था तो उस के ड्राइंग रूम में एक बहुत ही सुन्दर शो केस में सितार रखा था. मैंने उससे पूछा कि ये क्या है? तो वो अमरीकी व्यक्ति बोला "दिस इस रवि शंकर" (हँसते हुए बोले ). यदि हर गाना ग़ज़ल है और सितार रविशंकर है तो ये बहुत बड़ी सफलता है. छात्र जीवन में तो आप क्रिकेट बहुत खेलते थे , आज आप संगीत से हट के क्या करते हैं ? फ़िल्मे बनाते हैं और अपनी पत्नी के साथ थियेटर में जाकर फ़िल्मे देखते हैं . आप को आप के प्रशंसक फिल्म देखने देते हैं ? हाँ देखने देते हैं. मुम्बई में अभी कुछ ऐसे थियटर बन गए हैं जो केवल कुछ ख़ास लोगों के लिए हैं. मात्र 50 सीटें हैं और जिसका टिकट है 1000 रुपए. कम्बल दे देते हैं, जाइए आराम से लेटिए, खाने के लिए चीज़ें मंगवा लीजिए और आराम से फ़िल्म देखिए. आप किस तरह की फिल्में देखना पसंद करते हैं ? ऐसी फ़िल्म जिसमें कुछ नया हो, अच्छा हो, जैसे अभी हमने न्यूयार्क देखी. आप अभी नया क्या करना चाहते हैं ? मैं वेदों को रिकॉर्ड करना चाहता हूँ. बहुत कठिन काम है, समय लगेगा पर हो जाएगा. मैं भोजपुरी फ़िल्मे भी बना रहा हूँ. हर महीने एक फ़िल्म रिलीज होती है. अगले महीने "चोर जी नमस्ते" और बाद में "हमार माटी मा दम बा" रिलीज होने वाली है . आज की युवा पीढी जो पॉप और डिस्को की तरफ़ भाग रही है, क्या वो भजन को भी उसी आस्था से सुनते हैं ?

    जी हां, बहुत आस्था से सुनते हैं. उन के मन में ईश्वर के प्रति विश्वास है क्योंकि जब वो परीक्षा देने जाते हैं तो मंदिर से होते हुए जाते हैं डिस्को थेक से नहीं. हमारे भजन के कार्यक्रम में नौजवान (यंग क्राउड) लोग बहुत आते है. मेरे विचार से ये कभी भी कम नहीं होगा.

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