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अली अकबर ख़ान अलविदा कह गए
वो डायलेसिस पर थे और पिछले चार महीनों में उनकी हालत और नाज़ुक हो गई थी.
अठासी वर्षीय उस्ताद अली अकबर ख़ान का निधन भारतीय समय के मुताबिक़ सुबह दस बजे अपने संगीत केंद्र में हुआ.
उनके परिवार में उनकी पत्नी मेरी, तीन बेटे और एक बेटी शामिल हैं.
सरोदवादक उस्ताद अकबर अली ख़ान को प्रसिद्ध वॉयलनिस्ट येहूदी मेनूइन ने विश्व के सबसे बड़े संगीतकार के तौर पर याद किया है.
अकबर अली ख़ान ने भारतीय संगीत को पश्चिमी देशों और ख़ास तौर से अमरीका तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वे पहले भारतीय संगीतकार थे जिन्हें 1991 में मैक-आर्थर फ़ाउंडेशन फ़ेलोशिप दी गई और उन्हें प्रसिद्ध ग्रेमी पुरस्कार के लिए 1970 से 1998 के बीच पांच बार नामांकित किया गया.
जिंदगी का सफ़र
अली अकबर ख़ान ने 13 साल की उम्र में अपना पहला प्रोग्राम इलाहाबाद में पेश किया था. जब वह अपने बीस के पेटे में थे तब लखनऊ में उन्होंने पहली बार ग्रामोफ़ोन पर रिकार्डिंग कराई थी
अली अकबर ख़ान का जन्म 14 अप्रैल 1922 में कोमिला ज़िले के शिबपुर गांव में हुआ. यह इलाक़ा आज बांग्लादेश में आता है.
उन्होंने तीन साल की उम्र से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी. उन्होंने अपने पिता से गायन की शिक्षा ली और अपने चाचा फ़क़ीर आफ़्ताबुद्दीन से टक्कर सीखी.
उनके पिता ने उन्हें कई और वाद्यों की शिक्षा दी थी लेकिन उन्होंने सरोद और गायन को अपनाया और उसी पर अपना अभ्यास केंद्रित रखा.
अली अकबर ख़ान ने 13 साल की उम्र में अपना पहला प्रोग्राम इलाहाबाद में पेश किया था. जब वह अपने बीस के पेटे में थे तब लखनऊ में उन्होंने पहली बार ग्रामोफ़ोन पर रिकार्डिंग कराई थी.
उन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए भारत सरकार ने पद्मविभूषण और पद्मभूषण से सम्मानित किया.
पिछले पचास वर्षों से अली अकबर ख़ान भारतीय शास्त्रीय संगीत के महापंडितों में शुमार होते रहे हैं.
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