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'सुई धागा' के 2 साल: 'मेरी फिल्मों के किरदार मेरे अनुभवों से जुड़े होते हैं' - निर्देशक शरत कटारिया
बेहद सराही गई फिल्म "सुई-धागा" की रिलीज के 2 साल पूरे हो गए हैं। इस अवसर पर फिल्म के निर्देशक शरत कटारिया ने अपनी फिल्मों में वास्तविक और दिल को छू लेने वाले किरदारों के पीछे छिपे फॉर्मूले का राज बताया।
फिल्म-मेकर शरत कटारिया आज बॉलीवुड की एक जानी-मानी हस्ती हैं। उन्होंने एक के बाद एक लगातार 2 हिट फिल्में दी हैं, जिसमें आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की "दम लगा के हइशा" और वरुण धवन और अनुष्का शर्मा की फिल्म "सुई-धागा" शामिल हैं। उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये दर्शकों को वास्तविक दिखने वाले आकर्षक और काफी शानदार किरदारों से रूबरू कराया है।
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"दम लगा के हइशा" के संध्या और प्रेमप्रकाश तिवारी से लेकर "सुई-धागा" के ममता और मौजी शर्मा तक उन्होंने अपनी फिल्मों में खूबसूरत और छोटे शहरों व कस्बों में रहने वाले किरदारों को पेश कर अपने दर्शकों का दिल जीता है। इन फिल्मों के किरदारों से हर कोई किसी न किसी रूप में अपना संबंध जोड़ सकता है। अपनी बेहद सराही गई फिल्म "सुई-धागा" की रिलीज के 2 साल पूरे होने पर शरत ने बताया कि वह अपनी फिल्मों में अपनी जड़ों में रचे-बसे दिल को छू लेने वाले पूरी तरह से भारतीय मध्यम वर्गीय किरदारों का चुनाव कैसे करते हैं।
शरत ने बताया, "मेरा जन्म दिल्ली में हुआ है। इन सभी फिल्मों के किरदार सामान्य तौर पर मेरी परवरिश के दौरान हुए निजी अनुभवों के आधार पर ही विकसित हुए हैं। ये सभी किरदार, चाहे वह प्रेम-संध्या हों, मौजी-ममता या फिल्मों में उनके पैरैंट्स, उनके परिवार और उनके पड़ोसी जैसे दूसरे किरदार हों। मैं अपने संपर्क में आए लोगों से प्रभावित होकर अपनी फिल्म के किरदारों का चुनाव करता हूं। मेरी फिल्मों में दिखने वाले ज्यादातर करैक्टर्स ऐसे लोग हैं, जो दिल्ली में पलने-बढ़ने के दौरान कभी न कभी मेरी जिंदगी में आए हैं।"
शरत की फिल्में हमेशा बारीकी से कोई न कोई सामाजिक संदेश देती हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या आप अपनी फिल्मों से समाज में कोई सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं तब इस पर उन्होंने कहा, 'जब आप लिखते हैं तो आपका इन चीजों की ओर कतई ध्यान नहीं जाता। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो आप महसूस कर रहे हों, आप वहीं लिखें। जो आप महसूस करते हैं, उसकी गूंज सामाजिक माहौल में होती है और यह आपकी स्क्रिप्ट में अपने आप झलकती है। फिल्म की स्क्रिप्ट सामाजिक संदेश देने से शुरू नहीं होती। स्क्रिप्ट घटना या किसी ऐसी चीज से ही शुरू होती है, जिससे आप प्रोत्साहित या प्रभावित हों। यहीं से कहानी की शुरुआत होती है।"
शरत ने इसे समझाते हुए कहा, "दम लगा के हईशा की स्क्रिप्ट का मूल प्लॉट एक व्यक्ति का किरदार पेश करना है, जो अपनी पत्नी को चैंपियनशिप जिताना चाहता था। मैं यह स्क्रिप्ट लिखते समय सामाजिक प्रासंगिकता या इस तरह की किसी चीज के बारे में नहीं सोच रहा था। मैं एक कहानी के बारे में सोच रहा था। पर जब आप किसी ऐसे करैक्टर को गढ़ते हैं, जहां महिला का वजन ज्यादा है और उसका पति दुबला-पतला है और यह एक ऐसी शादी है, जिसमें सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है, तब इस स्थिति में उत्पन्न होने वाले सामाजिक संघर्ष, ताने और उलाहने और कलंक आपकी कहानी में अपने आप ही आ जाते हैं। ये किरदार चूंकि वास्तविक माहौल में जन्मे हैं, इनके अपने पूर्वाग्रह, संघर्ष, सामाजिक सोच और भाषा होती है।"
उन्होंने कहा, "सुई-धागा की कहानी के साथ भी यही है। मैंने एक आदमी को पेड़ के नीचे बैठे देखा। वह अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए दर्जी का काम कर रहा है। इस कहानी की शुरुआत यहीं से होती है। यह मेरे लिए असली लोग हैं, असली हीरो हैं।
मेरे लिए वह एक सुपरहीरो है। केवल हवा में उड़ने वाला ही सुपरहीरो नहीं होता। सुपरहीरो वह भी होते हैं, जो काफी मुश्किल हालात में अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष करते हैं। इस तरह से इन किरदारों का जन्म हुआ और यह समाज को प्रेरणा और प्रोत्साहन देने वाले बन गए। मैंने इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखते समय कभी जोड़-तोड़ नहीं की और स्क्रिप्ट की मांग से कभी समझौता नहीं किया। इसलिए ये फिल्में सामाजिक संदेश देने वाली बन गईं।
शरत एक लेखक और निर्देशक के रूप में यशराज फिल्म्स के साथ जुड़े हैं। उन्होंने स्टूडियो के साथ अपने सफर का जमकर आनंद उठाया क्योंकि उन्हें वहां काफी रचनात्मक आजादी मिलती है। उन्होंने कहा, "रचनात्मक आजादी के इस माहौल में काम करने में काफी मजा आया, इसलिए मैं यहां पांच साल से हूं।
जब मैंने वाईआरएफ को ज्वाइन किया तो मैं फिल्म बनाना चाहता था। जब आप अपने ढंग की फिल्में बनाना चाहते हों और आपको ऐसा करने की आजादी मिले। यह बिल्कुल इसी तरह का है। यहां मुझे स्वतंत्र रूप से लोकतांत्रिक ढंग से काम करने का मौका मिला। मुझे कभी कोई स्क्रिप्ट किसी खास तरीके से लिखने और फिल्म को खास तरीके से बनाने के लिए नहीं कहा गया। मुझे अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई और तब मैं इन कहानियों को सबके सामने ला पाया।"
मनीष शर्मा, जिनके साथ उन्होंने "दम लगा के हईशा" के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था, के साथ अपने रचनात्मक तालमेल या मित्रता के बारे में बताते हुए कहा, "मैं बताता हूं कि इस समय मेरे मन में क्या चल रहा है और आप मनीष के साथ मेरे संबंधों के बारे में समझ जाएंगे। जो भी आइडिया मेरे मन में आता है, मैं उनके साथ शेयर करता हूं। हम उस पर विचार-विमर्श कर यह पता लगाते हैं कि क्या यह दर्शकों को पसंद आएगा या नहीं।
कभी-कभी मैं ऐसे आइडियाज उन्हें देता हूं, जिसके बारे में मैं पूरी तरह आश्वस्त नहीं होता। उस दौरान मैं असमंजस की स्थिति में रहता हूं, तब वह मुझे बताते हैं, नहीं, आप गलती कर रहे हैं। या आप काफी सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं या आप बेमतलब नेगेटिव सोच रहे हैं। आपको इस ढंग से आइडिया डेवलप करना चाहिए। मेरी उनके साथ अच्छी टूयनिंग हैं। वह मुझे प्रेरणा देते हैं। मेरे पथप्रदर्शक हैं, वे मुझे बताते हैं कि मैं कहां सही और कहां गलत हूं। इसके बाद हमारे बीच चर्चा होती है। मैं कह सकता हूं कि हमारे बीच अच्छा तालमेल है। उनके साथ काम करके ऐसा नहीं लगता कि आप अंधेरे में तीर मार रहे हैं।"
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