Just In
- 3 min ago खुद को खत्म कर लेना चाहता था ये एक्टर, जिससे परिवार को मिल सके इंश्योरेंस, फिर एक वेब सीरीज से पलटी किस्मत
- 16 min ago कोमल पांडे ने नए घर का बॉयफ्रेंड संग किया गृह प्रवेश, शाहरुख के मन्नत के भी खास है इस घर का नाम
- 32 min ago कॉन्ट्रोवर्सी क्वीन Poonam Pandey की बार-बार खिसक रही थी ड्रेस, Oops Moment से बचने के लिए करती रहीं मेहनत
- 1 hr ago चुनाव के बीच पीएम मोदी पर भड़के रणवीर सिंह ? सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो को देख फैन्स को लगा झटका
Don't Miss!
- News टैंक, घर या फिर कछुआ! एक झटके में होगा दुश्मन का किला ध्वस्त, कैसा है हाईटेक House Shed?
- Automobiles हो जाइए तैयार! भारत में नई कार लेकर आ रही है Ford, Mahindra XUV700 को देगी टक्कर, जानें डिटेल्स
- Finance Wipro Q4 Results: विप्रो के प्रॉफिट सालाना आधार पर 8 प्रतिशत की गिरावट, घटकर हुआ 2835 करोड़ रुपए
- Technology आ गया माइक्रोसॉफ्ट VASA-1, पल भर में फोटो से बना देगा वीडियो
- Lifestyle IAS Interview में जमाना है इम्प्रेशन, तो कैंडिडेट पहने ऐसे सोबर ब्लाउज, ये देखें फॉर्मल डिजाइन
- Education ग्राफिक डिजाइन कोर्स
- Travel दिल्ली-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन कौन से स्टेशनों से होकर गुजरेगी? और कौन से रूट्स हैं प्रस्तावित?
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
महेंद्र कपूर का आखिरी साक्षात्कार
कुछ दिन पहले यूँ ही पुरानी डायरी से महेंद्र कपूर जी का नंबर निकाला, फ़ोन घुमाया और इंटरव्यू की फ़रमाइश कर डाली. उनके बेटे रोहन की बस एक ही गुज़ारिश थी- पिताजी की तबीयत ख़राब है, डॉक्टर ने गाने से मना किया है इसलिए महेंद्र कपूर जी से गाने के लिए मत कहिएगा.
यूँ तो बतौर पत्रकार कई लोगों के साक्षात्कार का मौका मिलता है लेकिन बीते दौर की दिग्गज हस्तियों से बात करना या रूबरू होना अपने आप में अनमोल अनुभव है. इंटरव्यू में उन्होंने संगीत के अपने सफ़र, रफ़ी साहब के साथ रिश्ता और आज के संगीत से अपनी नाराज़गी..तमाम पहलूओं पर बात की.
साक्षात्कार के समय महेंद्र कपूर जी की तबीयत नासाज़ थी लेकिन फिर भी उन्होंने बात की- सादगी और अदब भरे उनके अंदाज़ ने दिल जीत लिया. मैं सोचती ही रह गई कि किसी ख़ास दिन उनका ये साक्षात्कार प्रकाशित और प्रसारित किया जाए, लेकिन किस्मत ने ये मौका ही नहीं दिया. 27 सितंबर 2008 को उनका निधन हो गया.
पेश है महेंद्र कपूर से बातचीत के मुख्य अंश. ये इंटरव्यू सात सितंबर को रिकॉर्ड किया गया था।
आपने इतने सारे बेमिसाल गीत गाए हैं, ढेरों सम्मान मिल चुके हैं आपको, कैसा लगता है ये सब सोचकर.
पहले तो बीबीसी वालों को मेरा नमस्कार. सम्मान तो बहुत मिले हैं...आज भी जब कोई सम्मान मिलता है तो उतना ही उत्साह रहता है मन में जितना बरसों पहले हुआ करता था. बस ऐसा लगता है कि मंज़िल पाई तो नहीं पर मंजिल के करीब आ गए हैं. अभी कुछ दिन पहले मैं वर्ल्ड टूर पर गया था, बड़ा अच्छा लगा. वहीं मुझे इन्फ़ेक्शन हो गया.
सुरों के साथ आपका रिश्ता कब और कैसे शुरु हुआ? क्या घर में संगीत का माहौल था.
जब मैं छोटा था तो एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता हुई थी, किस्मत की बात थी कि उसमें मैं चुना गया था. उसमें पाँच जज थे जिसमें सी रामचंद्र जी, मदन मोहन जी, नौशाद और अनिल बिसबास साहब शामिल थे. जब मुझे चुना गया तो इन लोगों ने वादा किया कि एक-एक गाना मुझे देंगे. ख़ुशकिस्मत था कि वो फ़िल्मी गाने सुपरहिट हो गए और कारवां चल निकला.
आप मोहम्मद रफ़ी साहब से भी जुड़े रहे हैं. उनका और आपका किस तरह का रिश्ता था?
फ़िल्म आदमी में महेंद्र कपूर को अपने गुरु मोहम्मद रफ़ी के साथ गाने का मौका मिला
मेरा और रफ़ी साहेब का रिश्ता वैसा था जैसा उस्ताद और शागिर्द का होता है. मैं कोई 13-14 साल का था, तब से मैं रफ़ी साहेब के पास जाया करता था. उन्होंने कुछ समय तक मुझे वैसी ही तालीम थी जैसे कोई उस्ताद अपने शागिर्द को देता है.
हालांकि रफ़ी साहेब ख़ुद इतने व्यस्त थे लेकिन जितना हो सकता था रफ़ी जी ने मुझे सिखाया.
क्या रफ़ी जी के साथ गाने का मौका मिला?
हाँ मैने उनके साथ वो गाना गाया था....'कैसी हसीन आज बहारों की रात है, इक चाँद आसमान पे है इक मेरे साथ है.' ये गाना दिलीप कुमार और मनोज कुमार पर फ़िल्माया गया था. शायद आदमी फ़िल्म का गाना था.
आपने वो दौरा देखा था जब रफ़ी जी, हेमंत कुमार, मुकेश, इतने महान गायक थे. कभी मिल बैठने का मौका मिलता था. अपने समकालीन गायकों की गीत सुनते थे?
अब
मैं
फ़िल्मों
में
इसलिए
नहीं
गाता
क्योंकि
मैं
कुछ
भी
मिस
नहीं
करता.
आजकल
जैसा
संगीत
बनता
है
उसे
देखकर
फ़िल्मों
में
न
गाने
की
कमी
महसूस
नहीं
होती.
हमारे
लिए
तब
गायन
इतना
मुश्किल
होता
था,
अब
तो
वो
स्टाइल
ही
नहीं
है.
मुझे
तो
ऐसा
कोई
भी
संगीतकार
अब
दिखाई
नहीं
देता
जिसके
लिए
गाने
का
मन
होता
हो.
आज
के
गीत-संगीत
को
मैं
अच्छा
नहीं
मानता. |
मैं हमेशा दूसरे गायकों को सुनता था, देखता था, थिरकता था. इन सब बड़े गायकों से तो बहुत कुछ मिला मुझे सीखने को.
लोग तो कोई भी गीत तब सुनते हैं जब वो पूरी तरह तैयार हो जाता है. लेकिन बतौर गायक जब आप गाते हैं तो स्टूडियो में उस समय कैसा माहौल होता है, गायक के दिलो-दिमाग़ में क्या चल रहा होता है?
सिर्फ़ वो सिचुएशन, वो पूरा दृश्य जिसमें गीत फ़िल्माया जाना है, साथ ही फ़िल्म में गाना जिसे गाना है उसे ध्यान में रखकर हम लोग गाते हैं. गायक को शास्त्रीय संगीत ज़रूर सीखना चाहिए, जैसे ही वो ये करेगा उसके लिए आसान हो जाएगा- गाना सुनना और सीखना भी. वरना मुश्किल हो जाता है.
आपने सी रामचंद्र, रवि, कल्याणजी आनंदजी, ओपी नैय्यर जैसे उम्दा संगीतकारों के साथ काम किया. आपके पास तो ख़ज़ाना होगा इनके साथ बिताई सुनहरी यादों का.
ये बात तो सही कही आपने, ख़ज़ाना ही है. हमारे जैसे गायकों के लिए तो ये संगीतकार भी एक तरह के गुरु हैं. ये जो सिखा जाते हैं बहुत मुश्किल से हासिल होता है.
सबसे पसंदीदा संगीतकार कौन से हैं?
नहीं नहीं, ये तो मैं नहीं बता सकता. सबके साथ एक अलग रिश्ता था.
पहले ज़माने में किसी अभिनेता के साथ एक गायक की आवाज़ जुड़ जाया करती थी- शम्मी कपूर और रफ़ी, राज कपूर और मुकेश. आपने मनोज कुमार और सुनील दत्त के लिए काफ़ी गाने गाए थे. क्या अभिनेता और गायक का उनदिनों ख़ास रिश्ता हुआ करता था?
रिश्ता तो गीत के बाद बन जाता है. वैसे भी एक बार आपके गाने चल गए तो स्टार ख़ुद माँग करते थे कि मुझे वो गायक चाहिए. बाक़ी तो लोगों को गीत पसंद आते थे तो ये गायक-अभिनेता की जोड़ी ख़ुद ब ख़ुद बन जाती थी.
निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा से भी आपका गहरा रिश्ता रहा है. आप लोगों का नाम एक साथ जोड़ा जाता है.
चोपड़ा जी और मेरा साथ बहुत पुराना है. वे तो मेरे पिता समान थे और हैं. अब भी कभी-कभी मुलाक़ात का मौका मिलता है लेकिन इन दिनों साहेब बहुत बीमार रहते हैं. तबीयत के ऊपर ही सब कुछ है वंदना जी. तबीयत अच्छी रहे तो अच्छे काम होते हैं, तबीयत नरम हुई तो काम भी नरम पड़ जाता है.
हालांकि ये फ़ेहरिस्त तो लंबी है लेकिन अपना गाया पसंदीदा गाना कौन सा आपका.
जैसे मैने पहले भी कहा कि गायक के लिए तो हर गाना प्यारा होता है. दरअसल जो गाना जनता को भा जाए वही गाना गायक को भी अच्छा लगने लग जाता है. जैसे चलो इक बार फिर से...साहिर साहब का, बहुत अच्छा है. नीले गगन के तले, अंधेरे में जो बैठे हैं, लाखों है यहाँ दिलवाले, और नहीं बस और नहीं ( रोटी कपड़ा और मकान). ये सब पसंदीदा गीत हैं.
उपकार के गाने कैसे भूल सकते हैं हम.
हाँ, उस फ़िल्म में तो समझो कमाल हो गया था.
आपने हिंदी के अलावा गुजराती, मराठी में भी बहुत सारे गाने गए हैं..मराठी में तो दादा कोंडके के साथ आपकी जोड़ी बहुत ही हिट रही.
मेरी शिक्षा की वजह से मैं ऐस कर पाया, मुझे कोई मुश्किल नहीं हुई दूसरी भाषाओं में गाने में. सो गा दिए और ढेर सारे गाए. रही बात अभिनेता दादा कोंडके की तो मैं उनका फ़ेवरेट था और वो मेरे फ़ेवरेट थे. बहुत मेलजोल था.
फ़िल्मों में गाए आपको एक अरस हो गया है. नहीं गाने की कोई ख़ास वजह? कोई भी ऐसा संगीतकार नहीं है जिसे देखकर लगता हो इसके लिए गाना गाएँ
इसलिए नहीं गाता क्योंकि मैं कुछ भी मिस नहीं करता. आजकल जैसा संगीत बनता है उसे देखकर फ़िल्मों में न गाने की कमी महसूस नहीं होती. हमारे लिए तब गायन इतना मुश्किल होता था, अब तो वो स्टाइल ही नहीं है.
मुझे तो ऐसा कोई भी संगीतकार अब दिखाई नहीं देता जिसके लिए गाने का मन होता हो. आज के गीत-संगीत को मैं अच्छा नहीं मानता.
आप देश-विदेश में आज भी शो करते हैं, तो क्या आज भी रियाज़ करते हैं आप?
क्यों नहीं करता, बहुत करता हूँ. अगर रियाज़ न करूं तो मैं गा ही नहीं सकता. रियाज़ ही बड़ी चीज़ है.
(ये इंटरव्यू सात सितंबर को रिकॉर्ड किया गया था)