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सूफी संगीत में समाया बॉलीवुड
फिल्म हिट हो या फ्लॉप हो पर अगर फिल्म में सूफी संगीत है तो वह लोगों के जबान पर तुरंत चढ़ जाता है। लोग उन गानों को सालों सुनते भी रहते हैं।
'अल्लाह के बंदे' (वैसा भी होता है पार्ट 2), 'मन की लगन' (पाप), 'रूबरू' (मकबूल), 'ये हौसला' (डोर), 'मौला मेरे मौला' (अनवर), 'ख्वाजा मेरे ख्वाजा' (जोधा अकबर), 'या अली' (गेग्स्टर-ए लव स्टोरी), 'मौला मेरे' (चक दे! इंडिया) और 'अर्जियां' (दिल्ली-6) सूफी संगीत पर आधारित कुछ ऐसे गीत हैं जिन्हें लोगों ने खूब पसंद किया।
मशहूर गायक कैलाश खेर का कहना है कि सूफी संगीत सिर्फ मर्द और औरत के प्यार को सुरों में नहीं ढालता बल्कि इससे भी आगे जाकर पूरी दुनिया की बात करता है। शायद इसीलिए इतना पसंद किया जाता है।
सूफी गीत 'अर्जियां' को आवाज देने वाले गायक जावेद अली कहते हैं, "मेरे दृष्टिकोण से आज लोग अच्छा संदेश देने वाले गीतों को पसंद करते हैं इसीलिए वे सूफी संगीत से जुड़ जाते हैं और गीत प्रसिद्ध हो जाते हैं।"
हालाँकि
प्रसिद्ध
सूफी
गायक
हंसराज
हंस
का
कहना
है
कि
बॉलीवुड
संगीत
निर्देशक
सूफी
शैली
के
साथ
बहुत
छूट
ले
रहे
हैं।
उनका
कहना
है,
"कलाम
के
अल्फाज
और
सार
को
बदला
नहीं
जा
सकता,
केवल
आर्केस्ट्रा
बदला
जा
सकता
है।
सूफीवाद
का
लोगों
तक
पहुंचना
अच्छी
बात
है
लेकिन
संगीत
को
परंपरा
से
अलग
नहीं
करना
चाहिए।
उन्होंने
कहा
कि
"सूफी
गीतों
की
अधिकता
उनकी
पवित्रता
की
असल
खुशबू
खत्म
कर
देगी।"