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सुरों के हर सांचे में ढली आशा का आज 78वां जन्मदिन
महज सोलह वर्ष की उम्र मे अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध जाते हुए आशा ने अपनी उम्र से काफी बडे गणपत राव भोंसले से शादी कर ली। वैसे उनकी शादी सफल तो नहीं हो पायी लेकिन धीरे-धीरे आशा की आवाज का जादू संगीत की दुनिया पर छाने लगा और जल्द ही उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान बना ली।
अपनी आवाज के दम पर करोड़ों संगीतप्रेमियों के दिलों पर राज करने वाली सुरों की मल्लिका आशा भोंसले आज अपना 78वां जन्मदिन मना रही हैं। आशा ने ने हर दौर के गाने गाए और आज के समय में भी उनकी आवाज की कशिश कम नहीं हुई है। चलिए जानते हैं आशा भोसले को और भी करीब से...
1948
में
पहला
कदम
आशा
भोंसले
के
संगीत
जगत
में
अपना
पहला
गीत
वर्ष
1948
में
सावन
आया...
फिल्म
चुनरिया
में
गाया
था।
लेकिन
वर्ष
1957
में
प्रदर्शित
निर्माता-निर्देशक
बी.
आर.
चोपडा
की
फिल्म
'नया
दौर'
आशा
भोंसले
के
लिए
मील
का
पत्थर
साबित
हुई।
इसके
बाद
बी.
आर.
चोपडा
ने
आशा
भोंसले
को
अपनी
कई
फिल्मों
में
गाने
का
मौका
दिया।
ऐसी
ही
कुछ
फिल्में
हैं
गुमराह,
धुंध,
हमराज,
आदमी
और
इंसान
प्रमुख
है।
फिल्म
तीसरी
मंजिल
में
आशा
भोंसले
ने
आर.डी.बर्मन
के
संगीत
में
..आजा
आजा
मैं
हू
प्यार
तेरा
..गाना
जिसने
उनके
जीवन
मे
एक
नया
मोड़
दिया।
आशा ने अपने शुरूआती दौर में ज्यादा तर बी ग्रेड के लिए ही गाने गाए। साठ और सत्तर के दशक में आशा भोंसले हिन्दी फिल्मों की डांसर 'हेलन' की आवाज समझी जाने लगी। आशा भोंसले ने हेलन के लिए तीसरी मंजिल में 'ओ हसीना जुल्फों वाली...', इसके बाद कारवां में 'पिया तू अब तो आजा....' मेरे जीवन साथी में 'आओ ना गले लगा लो ना... और सुपरहीट रही फिल्म डॉन में 'ये मेरा दिल यार का दीवाना... जैसे सुपरहिट गीत गाए।
फिल्म तीसरी मंजिल के संगीत निर्देशन के दौरान आर. डी. बर्मन से उन्हें उनके गाने के लिए 100 रूपए उपहार स्वरूप भी दिए। इतना ही नहीं आगे दोनों ने एक दूसरे के लिए काफी समय तक काम भी किया बाद में इन्होंने साथ-साथ रहने का फैसला कर लिया। वर्ष 1980 में आशा ने आर डी बर्मन से शादी कर ली।
सदमे
के
बाद
फिर
वापसी
1994
मे
अपने
आर.डी.बर्मन
की
मौत
से
आशा
भोंसले
को
गहरा
सदमा
लगा
और
उन्होने
गायिकी
बंद
कर
दी।
लेकिन
अपनी
उदासियों
को
दूर
करने
के
लिए
आशा
ने
सुरों
का
सफर
फिर
से
शुरू
किया।
1995
में
रंगीला
में
'तन्हा
तन्हा...'
गीत
गाया।
इस दौर में संगीत जगत में भी काफी बदलाव आए रिमिकिस गाने इसी दौर की ही देन हैं इन गानों में पान खाये सइयां हमार..., पर्दे में रहने दो...., जब चली ठंडी हवा..., शहरी बाबू दिल लहरी बाबू..., झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में..., कह दूं तुम्हें या चुप रहूं..., और मेरी बेरी के बेर मत तोड़ो जैसे सुपरहिट गाने शामिल है।
आशा भोंसले को बतौर गायिका 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिल चुके हैं। य ह पहली सिंगर हैं जिन्हें ग्रेमी अवार्ड के लिए भी चुना गया थी। सबसे पहले उन्हे वर्ष 1966 मे प्रदर्शित फिल्म दस लाख में 'गरीबों की सुनो' गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके बाद वर्ष 1968 मे फिल्म शिकार के गाने 'पर्दे में रहने दो' वर्ष 1971 फिल्म कारवा में 'पिया तू अब तो आजा' वर्ष 1972 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा में 'दम मारो दम' वर्ष 1973 में फिल्म नैना में 'होने लगी है रात' वर्ष 1974 में फिल्म प्राण जाये पर वचन न जाये में 'चैन से हमको कभी' वर्ष 1977 फिल्म डॉन में 'ये मेरा दिल यार का दीवाना' और वर्ष 1995 मे प्रदर्शित फिल्म रंगीला के लिए भी आशा भोंसले को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका के फिल्म फेयर का विशेष पुरस्कार दिया गया। आशा भोंसले को वर्ष 2001 में फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इससे पले 1981 में प्रदर्शित फिल्म उमराव जान की गजल 'दिल चीज क्या है' वर्ष 1986 मे प्रदर्शित फिल्म इजाजत के गीत 'मेरा कुछ सामान आपके पास पड़ा है' के लिए आशा भोंसले नेशनल अवार्ड से सम्मानित की गई। इनके अलावा बीबीसी की तरफ से इन्हें लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड भी दिया गया है। 78 साल के बाद उनके गाने चलते रहे तो उन्हें सुने बिना जाने का मन नहीं करता है।
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