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INTERVIEW: 'हमें अपने इतिहास के बारे में, अपनी संस्कृति के बारे में जरूर पता होना चाहिए'- अक्षय कुमार
पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान के जीवन और वीरता पर आधारित फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' में अक्षय कुमार मुख्य किरदार निभा रहे हैं। फिल्म को लेकर उत्साहित अक्षय कुमार कहते हैं, "मेरी मां मुझे इतिहास पढ़ाती थी। उस वक्त जब वो मुझे सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में बताती थी, तो सारी तारीखें और फैक्ट्स मैं रट्टा मारा करता था। मुझे सोचकर बहुत खुशी होती है कि आज मुझे मौका मिला है ये किरदार निभाने का। लेकिन अफसोस इस बात है कि आज ये देखने के लिए मेरी मां मेरे साथ नहीं है। काश मैं उन्हें ये फिल्म दिखा पाता।"
यशराज फिल्म्स बैनर तले यह फिल्म हिंदी, तमिल और तेलुगु भाषा में 3 जून को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। अक्षय कहते हैं, "सम्राट पृथ्वीराज चौहान जिन मूल्यों के लिए खड़े रहे, उन्होंने जिस साहस का प्रदर्शन किया और मातृभूमि के लिए जैसा उनका प्यार था, वह बहुत ही प्रेरणादायक है।"
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'सम्राट पृथ्वीराज' की रिलीज से पहले सुपरस्टार अक्षय कुमार ने मीडिया से खास बातचीत की, जहां उन्होंने फिल्म का चुनाव करने से लेकर साउथ वर्सेज बॉलीवुड विवाद, देशभक्ति और इतिहास पर बनी फिल्मों पर अपनी राय रखी। अभिनेता ने कहा, "मेरा मानना है कि हमें अपने इतिहास के बारे में, अपनी संस्कृति के बारे में, सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सोच के बारे में पता होना बहुत जरूरी है।"
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-
Q. इस फिल्म से कैसे और कब जुड़ना हुआ?
जब डॉक्टर साहब (निर्देशक) और आदित्य चोपड़ा ने मुझे कहा कि वो ये फिल्म मेरे साथ बनाना चाहते हैं, तो जो सबसे पहले बात मेरे दिमाग में आई कि मैं कैसे ये कर सकता हूं? हम सब लोगों ने इतिहास की किताब में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर देखी हुई है.. तो मैंने उन दोनों से भी कहा कि किताब में उनकी जो छवि है, मैं उससे बिल्कुल मैच नहीं करता हूं। लेकिन उसके बाद चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने जो जवाब दिया, मैं उससे बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने कहा कि, "अक्षय आज तक उनकी तस्वीर किसी के पास नहीं है। किताबों में भी जो है वो एक कल्पना मात्र है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने करीबन 18 जंग लड़े हैं और एक- एक जंग 20 दिन, 25 दिन तक चलती थी। जैसा उनका जीवन रहा है, मेरे हिसाब से उनकी बॉडी एथलेटिक होनी चाहिए.. और ये मेरी कल्पना है।" मैं बता दूं कि चंद्रप्रकाश द्विवेदी 18 साल से इस कहानी में डूबे हुए हैं और उन्हें जितना ज्ञान है, उतना शायद ही मैंने किसी के पास देखा है। उन्होंने मुझे पूरी कहानियां बताईं कि सम्राट ने क्या क्या किया था। तो उन्होंने ही मुझे राजी कराया कि मुझे ये फिल्म करनी चाहिए और मैं ये कर पाऊंगा।
Q. इतिहास पर बनी फिल्मों के फाइट सीन्स काफी अलग तरह से फिल्माए जाते हैं। आपके लिए इस फिल्म का एक्शन कितना चैलेजिंग रहा?
इसके अंदर जो फाइट सीन्स आप देखेंगे, खासकर फिल्म की शुरूआत और क्लाईमैक्स में, मेरे पूरे करियर में मैंने ऐसा कभी नहीं किया है। ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। यह बहुत ही अलग अनुभव था। इतिहास पर बनी फिल्मों की बात करूं तो मैंने सिर्फ केसरी की है, लेकिन वहां भी फाइट सीन्स ऐसे नहीं थे। पृथ्वीराज में जिस तरह के कॉस्ट्यूम पहनकर मुझे युद्ध के सीन शूट करने थे, वो मेरे लिए चैलेंजिंग था।
Q. पीरियड फिल्मों में काफी क्रिएटिव लिबर्टी भी ली जाती रही है। इस फिल्म में कितनी स्वतंत्रता ली गई है?
बिल्कुल भी नहीं.. और डॉक्टर साहब तो कैसे भी कोई क्रिएटिव लिबर्टी नहीं लेंगे। वो लकीर के फकीर हैं, जो किताब में लिखा हुआ है वो उसी पर चलेंगे। 18 साल कौन बिताता है एक स्क्रिप्ट के पीछे, लेकिन वो लगे रहे.. और कहां कहां लेकर नहीं गए। इतने लंबे समय तक उन्होंने इस कहानी पर काम किया, तब जाकर यशराज में मौका मिला। वो भी यहां वो कोई अलग स्क्रिप्ट पर काम करने आए थे, लेकिन जब आदित्य चोपड़ा ने ये कहानी सुनी तो कहा कि चलो बनाते हैं। ऐसे शुरु हुई थी फिल्म।
Q. इतिहास या देशभक्ति पर बनी फिल्मों को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं? आपकी ज्यादातर फिल्मों में देशभक्ति की भावना होती है।
मेरा मानना है कि हमें अपने इतिहास के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। हमारे संस्कृति के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। पृथ्वीराज चौहान की सोच के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। देखिए उनकी सोच इतनी आगे की थी कि हम पीछे चले गए। मैं सिर्फ चाहता हूं कि हमने ये फिल्म बनाई है.. और सब माता- पिता अपने बच्चों को ये दिखाएं।
जहां तक देशभक्ति वाली फिल्मों की बात है, तो ये जरूरी नहीं है कि हर इंसान को देशभक्ति वाली फिल्म ही बनानी चाहिए। यदि मैं एयरलिफ्ट, बेल बॉटम बनाता हूं .. तो मैं लक्ष्मी, बच्चन पांडे, हाउसफुल भी बनाता हूं। ऐसा नहीं है कि मैंने ठेका ले रखा है कि मैं सिर्फ देशभक्ति वाली फिल्म ही बनाउंगा। मैं कोई भी फिल्म बनाना चाहता हूं, जिसकी कहानी मुझे अच्छी लगती है।
Q. सम्राट पृथ्वीराज चौहान की किन विशेषताओं से प्रभावित रहे, जिन्हें आप खुद भी अपने जीवन में अपनाना चाहते हैं?
बहुत सारे गुण हैं उनके, जैसे कि औरतों का सम्मान करना, सही के लिए समाज से भी भिड़ जाना.. आदि। लेकिन एक जो उनकी खास गुण है, वो कि शत्रु का भी सम्मान करना। हम कभी कभी ना दुश्मनी में थोड़ा ज्यादा कर जाते हैं। किसी ना किसी तरह से दूसरे के प्रति दिल में द्वेष रखते हैं। मेरे हिसाब से जो इंसान माफ करना जानता हो, उससे बड़ा कोई इंसान नहीं। मैं उनके इस गुण को अपनाना चाहता हूं।
Q. किसी के व्यवहार से आहत होते हैं तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है?
मुझे किसी के बर्ताव से दुख होता है तो मैं बहुत शांत हो जाता हूं। मैं चुपचाप वहां से निकल जाता हूं। मुझे नहीं पता ये सही है या नहीं। मुझे लगता है कि कौन लड़ेगा बैठ के। फायदा क्या है। दुनिया में करने के कितनी और खूबसूरत चीजें हैं। क्यों किसी के प्रति द्वेष रखना।
बॉलीवुड और साउथ की फिल्मों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी बहस देखा जा रहा है। आप इस बारे में क्या राय रखते हैं?
सबसे पहले तो ये पैन इंडिया शब्द मुझे समझ नहीं आता। मुझे गुस्सा आता है जब लोग नार्थ इंडिया या साउथ इंडिया कहकर बात करते हैं। हम एक ही हैं.. हम इंडियन फिल्म इंडस्ट्री हैं। मैं सबसे यही अपील करता हूं कि प्लीज भारत को बांटने की कोशिश मत कीजिए। साउथ इंडिया और नार्थ इंडिया की बात मत कीजिए। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि हम इंडियन फिल्म इंडस्ट्री हैं.. उनकी भी फिल्म चले, हमारी भी फिल्म चले। हमें दोनों इंडस्ट्री को अलग सोचना भी नहीं चाहिए। ठीक यही अंग्रेजों ने किया था। भारत में आकर धर्म, जाति और भाषा के नाम पर हमें विभाजित कर फायदा उठाया। दूसरे क्या बोलते हैं, हमें उससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए.. हम इंडस्ट्री के लिए क्या कर रहे हैं, वो मायने रखता है। चाहे कोई कुछ भी बोले.. हम एक ही इंडस्ट्री हैं।
मैं तो फिल्मों में तब से काम कर रहा हूं, जब महज 15- 20 लाख में फिल्म बन जाती थी.. आज 250- 300 करोड़ में बन रही है। ये बदलाव आया है.. कुछ उनकी वजह से, कुछ हमारी वजह से। ये एक महत्वपूर्ण बात है, जो सभी को समझना चाहिए। ये बंटवारा करने की प्रवृति बिल्कुल गलत है.. चाहे वो जिसके की तरफ से की जा रही हो। ये दुखी करने वाली बात है।
आज मुझसे कोई पूछता है कि आप फिल्में रीमेक क्यों कर रहे हैं? मैं कहता हूं कि इसमें क्या परेशानी है। मुझे अच्छी लगी कोई फिल्म तो मैं उसी हिंदी में कर रहा हूं। ओह माय गॉड मेरी थी, तेलुगु में भी बनी और वहां भी चली। राउडी राथौड़ उनके यहां बनी, फिर मैंने बनाई.. हमारी भी चली। तो इसमें क्या परेशानी है।
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