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#EPIC: 30 साल हो गए लेकिन बॉलीवुड में ऐसा दोबारा कभी नहीं हुआ!
बॉलीवुड में ऐसा बहुत ही कम होता है। कुछ एक चीज़ जो अमर हो जाए। ऐसा ही एक गाना था जो अमर हो गया। जो भी उसे जब भी सुन लेता तो रोने लग जाता था। गाने का नाम था चिट्ठी आई है। पंकज उदास की आवाज़, फिल्म का नाम ही था नाम। संजय दत्त और कुमार गौरव की कहानी।
गाना
जब
आया
तो
हिट
हो
गया।
लेकिन
धीरे
धीरे
उसका
सुरूर
ऐसा
चढ़ा
कि
आज
तक
उस
ज़ोन
में
कोई
भी
उस
गाने
को
टक्कर
नहीं
दे
पाया।
जब
भी
जिसने
भी
सुना
बस
आंख
भर
जाती।
गाने
की
कुछ
लाइनें
तो
बहुत
ही
ज़्यादा
मशहूर
हुई
थीं
-
और
गाने
को
लिखा
था
आनंद
बख्शी
ने।
और
इस
गाने
को
30
साल
हो
गए।
लेकिन
आज
भी
उतना
ही
डाउनलोड
किया
जाता
है
और
उतना
ही
सुना
जाता
है।
ऊपर मेरा नाम लिखा है, अंदर ये पैगाम लिखा हैं
ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं
हालांकि चिट्ठी आई है जैसे तो नहीं लेकिन कुछ और गाने तो जो इसी तरह इतने फेमस केवल इसलिए हो गए कि लोग उन्हें सुनते और रोने लग जाते -
संदेसे
आते
हैं
गाना
गाया
था
रूप
कुमार
राठौड़
और
सोनू
निगम
ने।
और
लिखा
था
जावेद
अख्तर
ने।
मोहब्बतवालों ने, हमारे यारों ने, हमें ये लिखा है, कि हमसे पूछा है
हमारे गाँवों ने, आम की छांवों ने, पुराने पीपल ने, बरसते बादल ने
खेत खलिहानों ने, हरे मैदानों ने, बसंती बेलों ने, झूमती बेलों ने
लचकते झूलों ने, दहकते फूलों ने, चटकती कलियों ने
और पूछा है गाँव की गलियों ने...के घर कब आओगे
चिट्ठी
ना
कोई
संदेस
जगजीत
सिंह
का
ये
गाना
लोगों
ने
हमेशा
मनहूस
कहा
क्योंकि
दो
लाइन
सुनिए
और
इंसान
रोने
लग
जाता
है।
फिल्म
थी
दुश्मन।
जहां
काजोल
की
बहन
की
मौत
हो
जाती
है।
गाना
लिखा
था
आनंद
बख्शी
ने।
एक आह भरी होगी, हमने ना सुनी होगी, जाते जाते तुमने, आवाज़ तो दी होगी
हर वक़्त यही है गम, उस वक़्त कहाँ थे हम, कहाँ तुम चले गए
चिट्ठी ना कोई संदेस, जाने वो कौन सा देस, जहां तुम चले गए!
जीना
यहां
मरना
यहां
राजकुपूर
की
मेरा
नाम
जोकर
हर
मायने
में
बेहतरीन
फिल्म
थी
लेकिन
फिल्म
के
गाने
दिल
में
घर
कर
गए
थे।
गीत
लिखा
था
शैलेंद्र
ने
और
हर
लाइन
के
साथ
और
भावुक
हो
जाता
था।
जीना
यहाँ
मरना
यहां,
इसके
सिवा
जाना
कहां
जी
चाहे
जब
हमको
आवाज़
दो,
हम
हैं
वहीं
हम
थे
जहां
कल खेल में हम हों न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलोगे तुम, भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
होंगे यहीं अपने निशां, इसके सिवा जाना कहां
इसके बाद ऐसा वाकई कोई गाना नहीं बना जो इन गानों को टक्कर दे पाता। लता मंगेशकर का ऐ मेरे वतन के लोगों, बिल्कुल ही अलग परिस्थिति का गाना था। लेकिन नए दौर में एक नई खेप आई। और फिर ऐसे कुछ गाने बने जिन पर आज से 30 साल बाद भी बात होगी -
मेरी
मां
तारे
ज़मीन
पर,
के
इस
गाने
ने
अच्छे
अच्छों
को
इमोशनल
किया
था।
इसे
गाया
था
शंकर
महादेवन
ने
और
लिखा
था
प्रसून
जोशी
ने।
मैं कभी, बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं, दिखलाता नहीं, तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है न मां, तुझे सब है पता.. मेरी माँ
भीड़
में,
यूं
ना
छोड़ो
मुझे,
घर
लौट
के
भी
आ
ना
पाऊं
माँ
भेज
ना
इतना
दूर
मुझको
तू,
याद
भी
तुझको
आ
ना
पाऊँ
माँ
क्या
इतना
बुरा
हूं
मैं
माँ?
लुका
छिपी
इस
गाने
में
क्या
था
पता
नहीं,
शायद
लता
मंगेशकर
और
ए
आर
रहमान
की
आवाज़
या
फिर
प्रसून
जोशी
की
कलम
लेकिन
हर
शब्द
छू
गया
था।
लुका छुपी...बहुत हुई...सामने आजा ना
कहाँ कहाँ ढूँढा तुझे, थक गई है अब तेरी माँ
आजा साँझ हुई मुझे तेरी फिकर,धुंधला गई देख मेरी नज़र...
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