सेक्शन 375- मर्जी या जबरदस्ती फिल्म रिव्यू: इस कोर्ट रूम ड्रामा की चमक हैं अक्षय खन्ना


Rating:
2.5/5

कलाकार- अक्षय खन्ना, ऋचा चड्ढा, राहुल भट्ट, मीरा चोपड़ा

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निर्देशक- अजय बहल

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 काफी संवेशनशील और पेचीदा मुद्दा है। लेकिन इस मुद्दे को गंभीरता के साथ उठाने की कोशिश की है निर्देशक अजय बहल ने। फिल्म धारा 375 के दुरुपयोग पर केंद्रित है, जिसे भारत में बलात्कार विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है। फिल्म में एक संवाद है जहां वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) कहते हैं कि- ये केस सटीक उदाहरण है कि कैसे एक महिला उसी कानून का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर करती है, जो उसकी सुरक्षा के लिए बनाया गया था। बहरहाल, कहानी में कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ , यह देखने के लिए आपको सिनेमाघर तक जाना होगा।

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फिल्म की कहानी शुरु होती है जब मशहूर फिल्म निर्देशक रोहन खुराना (राहुल भट्ट) पर जूनियर कॉस्ट्यूम डिजाइनर अंजलि दांगले (मीरा चोपड़ा) बलात्कार का आरोप लगाती है। सेशन कोर्ट में आनन फानन में यह केस निपट जाता है। सारे फॉरेन्सिक रिपोर्ट्स को देखते हुए कोर्ट रोहन खुराना को 10 साल की सज़ा सुनाती है। लेकिन केस हाई कोर्ट तक पहुंचता है और वहां आमने सामने आते हैं हाई प्रोफाइल वकील तरुण सलूजा और अंजलि की ओर से सरकारी वकील हिरल गांधी (ऋचा चड्ढा)। अब कोर्ट में तमाम दलीलें पेश होती हैं, जो आपको कभी किसी को सच तो कभी किसी को झूठ मानने पर मजबूर करेगी। क्लाईमैक्स तक जाते जाते फिल्म कई परतों में खुलती है। लेकिन क्या एक झूठ.. पूरी की पूरी सच्चाई बदल सकता है? इसी पर टिकी है पूरी कहानी। फिल्म देखने के दौरान बॉलीवुड में हो रहे 'मी टू अभियान' की ओर ध्यान जरूर जाएगा। जहां एक के बाद एक सेलिब्रिटीज पर यौन शोषण जैसे आरोप तो लग रहे हैं, लेकिन सिद्ध नहीं हो रहा।

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पूरी फिल्म एक कोर्ट रूम ड्रामा है, लिहाजा लेखन के साथ साथ कलाकारों का अभिनय बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। कोई दो राय नहीं कि अक्षय खन्ना अपने किरदार में खूब जमे हैं। बतौर वकील उनके चेहरे के हाव भाव आपको कहानी से बांधे रखते हैं। मीरा चोपड़ा और राहुल भट्ट भी अपने किरदारों में प्रभावी हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि ऋचा चड्ढा यहां काफी कमजोर दिखी हैं। उनके संवाद, हाव भाव खोखले दिख रहे हैं। एक दमदार किरदार को उन्होंने काफी हल्का सा बना दिया। जज बने कृतिका देसाई और किशोर कदम संक्षिप्त रोल में मजबूत दिखे हैं।

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निर्भया केस से लेकर मी टू अभियान जैसे विषयों को छूती यह फिल्म काफी मजबूती से शुरु होती है। लेकिन धीरे धीरे फिल्म बोझिल होती जाती है, खासकर फर्स्ट हॉफ के बाद। किसी कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म के लिए उसकी सबसे बड़ी ताकत है उसका लेखन। एक दमदार लेखन की दर्शकों को फिल्म से बांधे रख सकता है क्योंकि यहां निर्देशक के पास मनोरंजन का कोई दूसरा साधन नहीं है। सेक्शन 375 लेखन के मामले में औसत दिखती है। राइटर मनीष गुप्ता ने संवेदनशीलता को तो बनाए रखा, लेकिन कहानी को आकर्षक नहीं रख पाए। कुछ एक संवाद आपको याद रहते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं, जैसे कि ''हम न्याय के व्यवसाय में नहीं, कानून के व्यवसाय में हैं..''। लेकिन कई बार दोहराव दिखता है। अजय बहल का निर्देशन बढ़िया रहा है। इस मुद्दे को खंखालने की कोशिश में सच्चाई दिखी है। खास बात है कि फिल्म में एक भी गाने नहीं हैं, लेकिन बैकग्राउंड स्कोर प्रभावित करता है।

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कुल मिलाकर, सेक्शन 375 एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर बनी औसत फिल्म है। अक्षय खन्ना इस फिल्म के सबसे मजबूत पहलू हैं। यदि आप कोर्ट रूम ड्रामा पसंद करते हैं तो एक बार जरूर देखी जा सकती है। हमारी ओर से फिल्म को 2.5 स्टार।

English Summary

Akshaye Khanna and Richa Chadha starrer courtroom drama film Section 375 is too slow to absorb the sensitive subject. The directed by Ajay Bahl.