कलाकार- किच्चा सुदीप, सुनील शेट्टी, आकंक्षा सिंह, सुशांत सिंह, कबीर दुहान सिंह
निर्देशक- एस कृष्णा
एक ही फिल्म में यदि कई मुद्दों को डालने की कोशिश की जाए तो नतीजा 'पहलवान' निकलता है। कन्नड़ सुपरस्टार किच्चा सुदीप और सुनील शेट्टी अभिनीत फिल्म पहलवान की पटकथा गुरु- शिष्य की कहानी से शुरु होती है। लेकिन धीरे धीरे कहानी लव स्टोरी, समाज सेवा, खेल और खिलाड़ियों की महत्ता से भी जुड़ती जाती है। लिहाजा, आप कहानी से जुड़ नहीं पाते हैं और पौने तीन घंटे लंबी यह फिल्म उबाऊ लगने लगती है।
फिल्म की कहानी शुरु होती है सरकार (सुनील शेट्टी) से, जिनका सपना होता है कि उनके अखाड़े का एक पहलवान नेशनल कुश्ती खेले और स्वर्ण पदक जीते। ऐसे में उनकी नजर एक बच्चे पर पड़ती है, जो भारी बारिश में अकेले तीन लड़कों की पिटाई कर रहा होता है। सरकार मान लेते हैं कि यही बच्चा उनके सपने को पूरा करेगा। जब उन्हें पता चलता है कि वह बच्चा अनाथ है, तो सरकार उससे कहते हैं- जब तक दुनिया में इंसानियत है, कोई बच्चा अनाथ नहीं हो सकता। वह उसे घर लाते हैं और अपने बेटे की तरह देखभाल करते हैं। उसे पहलवानी के सभी गुर सिखाते हैं और मंत्र देते हैं कि- जो अपनी ताकत पर घमंड करे वह गुंडा, लेकिन जिसके इरादों में ताकत भरा हो वो योद्धा है। साल दर साल गुजरते हैं और कृष्णा (सुदीप) अपने इलाके का सबसे दमदार पहलवान साबित होता है। लेकिन नेशनल खिलाड़ी बनने का सपना अभी भी दूर है। इसी बीच कृष्णा को रुक्मिणी (आकांक्षा सिंह) से प्यार हो जाता है। इस बात से सरकार बेहद खफा हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने कृष्णा को हमेशा सलाह दी थी कि अपना लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ पहलवानी रखे, ना कि प्रेम संबंध में फंसे। नाराज़ होकर सरकार उसे कभी पहलवानी ना करने का वचन मांगते हैं। इधर दूसरी ओर देश का नंबर एक रेसलर टोनी (कबीर दुहान सिंह) है, जिसके अहंकार से परेशान होकर उसके कोच को एक ऐसे फाइटर की खोज़ होती है कि जो टोनी को रेसलिंग में पछाड़ सके। अब कृष्णा वापस पहलवानी में उतरता है या नहीं? अपने देवता तुल्य गुरु सरकार से उसे माफी मिलती है या नहीं ? यह देखने के लिए आपको सिनेमाघर तक जाना पड़ेगा। निर्देशक एस कृष्णा ने एक कहानी में कई छोटी छोटी कहानियों को कहने और जोड़ने की कोशिश की है। जिस वजह से यह आपको कई एक्शन- ड्रामा और स्पोर्ट्स से जुड़ी फिल्मों की याद दिलाएगी। सलमान खान की सुल्तान से लेकर अक्षय कुमार की ब्रदर्स तक जेहन में आ जाते हैं। पहलवानी और बॉक्सिंग के दांव पेंच हो या इमोशनल सीन, यहां कोई नयापन नहीं दिखता है। खासकर फिल्म का संवाद भी काफी थका थका सा है, जो शायद हम 90 के दशक की फिल्मों से सुनते आए हैं। जहां एक पिता अपनी बेटी की प्रेमी को कहता है- कहो, मेरी बेटी से दूर रहने के लिए तुम्हें कितने पैसे चाहिए ? कुछ एक एक्शन सीन्स को छोड़कर निर्देशक काफी ढ़ीला रहा है। फिल्म का संगीत औसत है। अभिनय की बात करें तो पहलवान के किरदार में किच्चा सुदीप काफी जबरदस्त दिखे हैं। उन्होंने पूरी सच्चाई से अपने किरदार को निभाया है और उनकी मेहनत भी साफ दिखती है। एक्शन वाले दृश्यों में सुदीप दमदार लगे हैं। वहीं, उत्तर भारत के दर्शकों को असली खुशी सुनील शेट्टी को देखकर मिलेगी। उन्होंने सरकार के रोल के साथ पूरी तरह न्याय किया है। हर फ्रेम में सुनील शेट्टी प्रभावशाली दिखे हैं। उन पर फिल्माया एक एक्शन सीन सीटी मारने को भी मजबूर करेगा। राजा राणा प्रताप वर्मा बने सुशांत सिंह राजपूत और टोनी के किरदार में कबीर दुहान सिंह टिपिकल विलेन दिखे हैं। साउथ की फिल्मों को एन्जॉय करते हैं तो पहलवान एक बार जरूर देख सकते हैं। खासकर किच्चा सुदीप और सुनील शेट्टी की गुरु- शिष्य जोड़ी काफी जबरदस्त लगी है। निर्देशक एस कृष्णा ने फिल्म में एक्शन, इमोशन, कॉमेडी सभी मसाला डालने की कोशिश की है, जिस वजह से यह बिखर गई है। हमारी ओर से फिल्म को 2.5 स्टार।