इस रिव्यू की शुरूआत हम लव सोनिया के सबसे दमदार सीन से करते हैं जिसमें वेश्यालय में पुलिस की रेड पड़ती है। एस सामाजिक कार्यकर्ता मनीष (राजकुमार राव) चिल्ला-चिल्ला कर सोनिया (मृणाल ठाकुर) से उस संकरे, अंधेरे बिल जैसी जगह से बाहर आने के लिए कहता है और उसे इस अंधेरे से भरी दुनिया से बाहर ले जाना चाहता है। इसके बावजूद सोनिया इस आजादी से इनकार कर देती और उसी बिल जैसी जगह पर और अंदर घंस जाती है। कुछ ही मिनटों के इस सीन में आप खुद को सुन्न जैसा महसूस करते हैं.... ये असर है तरबेज नूरानी के निर्देशन का।
लव सोनिया की शुरूआत होती है ट्रैफिक को एक शॉट से जहां एक लड़का किसी खजाने की तरह अपने पास कांच के जार में बंद एक तितली लेकर दोस्तों को दिखाता है। वो उसे दोस्तों को छूने देता है जैसे तितली जार से बाहर निकलने की कोशिश करती है। ये सीन इस पूरी फिल्म का सार मालूम होता है।
प्लॉट की बात करें तो सोनिया (मृणाल ठाकुर) प्रीती (रिया सिसोदिया) की प्यारी बहन है। उनकी जिंदगी में झंकझोर देने वाला वक्त तब आता है जब उनके पिता (आदिल हुसैन) जो कि एक दरिद्र किसान हैं वो अपनी बेटी प्रीती को साहूकार दादा ठाकुर (अनुपम खेर) को बेच देते हैं। जो उसे तुरंत मुंमबई भेज देता है। जब सोनिया को अपनी बहन का कोई पता नहीं चल पाता है जो वो घर छोड़कर चल पड़ती है अपनी बहन को वापस लाने। हालांकि वो खुद जिस्म फरोशी के दलदल में बुरी तरह फंस जाती है। सोनिया जल्द ही एक ऐसे वैश्यालय में पहुंचती है जहां उसकी मुलाकात माधुरी (ऋचा चढ्ढ़ा) और रश्मी (फ्रीडा पिंटो) से होती है। इस वेश्यालय को एक धूर्त आदमी फैसल (मनोज वाजपेई) चलाता है। माधुरी और रश्मी उसे बताती हैं कि ये दुनिया जैसी दिखती है वैसी नहीं है। फिल्म का बाकी प्लॉट सिर्फ इसी के इर्द-गिर्द घूमता है कि इतने भयावह समय में भी कैसे सोनिया को उम्मीद की एक किरण नजर आती रहती है। अपनी पहली ही फिल्म इतने हार्ड हिटिंग सब्जेक्ट पर बनाने के लिए तबरेज नूरानी तालियों के हकदार तो हैं। हमने मानव तस्करी पर पहले भी कई फिल्में देखी हैं, इस फिल्म में फिल्ममेकर ने इंसानियत के ऐसे डार्क साइड से ऑडिएंस को रूबरू करवाया जो बाकियों से एकदम अलग है। वो आपको सोनिया के जरिए ऐसी कड़वी सच्चाई दिखाते हैं जो किसी भी लड़की के साथ असल जिंदगी में नहीं होना चाहिए। दूसरी तरफ, इंटरवल के बाद जब कहानी की कई परतें खुलती हैं तो फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी ढ़ीला पड़ जाता है। अगर आप को धीमी रफ्तार वाली फिल्में पसंद नहीं हैं तो ये फिल्म आपके लिए कुछ जगहों पर बोरिंग हो सकती है। परफॉर्मेंस की बात करें तो, मृणाल ठाकुर ने लव सोनिया से जबरदस्त और दमदार डेब्यू किया है। उनकी आंखे और एक्सप्रेशन बात करते हैं और इसी वजह से उनका किरदार आपके दिल में उतर जाता है। वहीं सिर्फ मृणाल ही नहीं बल्कि रिया सिसोदिया ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है लेकिन जब वे मृणाल के साथ एक साथ सीन में आती हैं तो फीकी पड़ जाती हैं। मनोज वाजपेयी अपने डार्क किरदार के जरिए ऑडिएंस को भयभीत करने में कामयाब होते हैं। एक ऐसा किरदार जो अपनी ही प्रेमिका को एक सिगरेट के लिए रेप करवाने में नहीं चूकता है। ऋचा चढ्ढा का दिल दहला देने वाला किरदार शानदार है। फ्रीडा पिंटो अपने ट्रांसफॉर्मेंशन से आपको चौंका देंगी। हालांकि कहीं-कहीं लगता है कि उनका किरदार थोड़ा और अच्छे से लिखा जाना चाहिए था। फिल्म में थोड़े से स्क्रीन टाइम के बावजूद भी राजकुमार राव की परफॉर्मेंस ने स्त्री के बाद एक बार फिर से कमाल कर दिया है। साईं तम्हंकर शानदार हैं और डेमी मोरे का किरदार एक कैमियो मात्र है। लुकस बायिलन के कौमरे ने भयावह अंधेरे के डर और हमारे समाज की छुपी हुई असलियत को बखूबी टटोला है। मार्टिन सिंगर की एडिटिंग थोड़ी और अच्छी हो सकती थी। बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जिस्म फरोशी के दलदल की मानवीय कहानी कहती लव सोनिया आपको कड़वे सच से रूबरू करवाएगी। आपको उम्मीद की एक किरण की ताकत समझाएगी। हमारी तरफ से लव सोनिया को 3.5 स्टार्स।