[नीति सुधा] आज Hug Day है, यानि की गले मिलने का दिन। ऐसे में फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस और खासकर मुन्ना की 'जादू की झप्पी' याद आना लाज़मी है। साल 2003 में आई इस फिल्म ने मनोरंजन की दुनिया में एक नई पहचान बनाई। राजकुमार हिरानी के निर्देशन में बनी इस फिल्म को 2004 में बेस्ट पॉपुलर फिल्म के नेशनल एवार्ड से सम्मानित किया गया था।
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वहीं, मुन्नाभाई के किरदार में संजय दत्त को एक नई पहचान मिली। खासकर मुन्ना की जादू की झप्पी तो देश भर में पॉपुलर हो गई थी। आज भी लोग मुन्नाभाई के डॉयलोग याद किया करते हैं। लेकिन आज 13 सालों के बाद जब यह फिल्म देखो तो कई ऐसे ट्विटस्ट हैं, जो आपके गले नहीं उतरती। कुछ सीन ऐसे हैं, जहां निर्देशक ने बड़ी सफाई के साथ चूक की है। हालांकि, मनोरंजन में आज भी इसका कोई जवाब नहीं है, लेकिन भूल तो भूल होती है। वहीं, क्या आपको पता है कि मुन्नाभाई के किरदार के पहली पसंद संजय दत्त नहीं, बल्कि शाहरूख खान थे।
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क्या आपने कभी सोचा है कि यदि फिल्म में शाहरूख ही बनते मुन्नाभाई या चिंकी को नहीं होता मुन्ना से प्यार तो फिल्म कैसी होती? नहीं न.. तो फिर यहां पढ़िए, ऐसा होता तो कैसी होती 'मुन्नाभाई एमबीबीएस'।
जी हां, संजय दत्त के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक मुन्नाभाई एमबीबीएस के लिए संजय दत्त निर्देशक की पहली पसंद नहीं थे। बल्कि राजकुमार हिरानी ने मुन्नाभाई के किरदार के लिए शाहरूख खान से संपर्क किया था। लेकिन शाहरूख के कंधों में चोट की वजह से बात नहीं बनी। उसके बाद हिरानी ने विवेक ओबरॉय से बात की, जहां बात नहीं बनी और हमारे सामने मुन्नाभाई के किरदार में आए संजय दत्त। बहरहाल, यह तो मानना पड़ेगा कि इस रोल में हम संजय दत्त को छोड़कर अब किसी को नहीं देख सकते। टपोरी के किरदार में शाहरूख को देख, यूं ही बज जाती कहानी की बैंड....
यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि मुन्नाभाई में जहीर के किरदार के लिए संजय दत्त को फाइनल किया गया था, जबकि मुन्नाभाई के लिए जिमी शेरगिल को लिया गया था। लेकिन अचानक ही निर्देशक ने दोनों किरदारों को आपस में बदल दिया और उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है। बहरहाल.. सोचिए अगर संजय ही जहीर होते तो..तो फिल्म में हमें मुन्नाभाई के रोल में जिमी शेरगिल को देखना पड़ता और संजय की मौत पर दर्शक आंसू बहाते। लेकिन हम इस बात के लिए निर्देशक का धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने अपना फैसला बदल लिया।
मुन्ना 17 साल की उम्र में गांव से भागकर मुंबई आ गया था, जिसके बाद उसने 15 सालों तक उसने मां-पिता से दूरी बनाई रखी। और फिर अगले 10 सालों से वह डॉक्टर बनने का नाटक करता रहा। हम्ममममम....यानि की इस हिसाब से मुन्ना कम से कम 40 वर्ष से ज्यादा का ही होगा..तो फिर मुन्ना इतने आराम से मेडिकल के एग्जाम में कैसे बैठ जाता था.. हम्म..शायद हमारे निर्देशक को उम्र-सीमा की सही जानकारी नहीं थी।
फिल्म में चिंकी यानि की डॉक्टर सुमन से मुन्ना हर रोज अस्पताल में मिलता है। चिंकी के बारे में उससे बातें किया करता है, लेकिन कभी समझ नहीं पाता कि वही चिंकी है। हम्मम..इतने नासमझ फिल्मी हीरो ही हो सकते हैं। बहरहाल, सोचिए, अगर मुन्ना चिंकी को पहचान लेता तो...तो शायद वह चिंकी से भी उतनी ही नफरत करता जितना वह डॉक्टर अस्थाना से करता था। तो फिर न बनती प्रेम कहानी..न मुन्ना उस अस्पताल में करता डॉक्टरी..और न लोगों को मिलती जादू की झप्पी..
मुन्नाभाई शहर के इतने बड़े अस्पताल में आता है..वहां रहता है..तोड़ फोड़ करता है.. लेकिन हॉस्पिटल में से कोई भी इंसान पुलिस को बुलाने की कोशिश नहीं करता। यहां तक की डॉक्टर अस्थाना भी नहीं। बहरहाल.. सोचिए यदि अस्पताल में तोड़ फोड़ मचाने के जुर्म में पुलिस मुन्नाभाई को पकड़ ले जाती तो..तो शायद अस्पताल में होता डॉक्टर अस्थाना का राज। और वहां सब कुछ अनुशासन के साथ हो रहा होता। न कि तोड़ फोड़ और जादू की झप्पी देकर।
आश्चर्य है कि मुन्नाई हॉस्पिटल में अनुशासन बिगाड़ता है। तोड़ फोड़ मचाता है, लेकिन फिर भी डॉक्टर्स उसका साथ देते हैं। सोचिए यदि ऐसा न होता तो.. तो मुन्ना को डॉक्टर अस्थाना से हार मानना पड़ता और उसे अस्पताल छोड़ कर जाना पड़ता। लेकिन फिर अस्पताल में जादू की झप्पी कौन देता..लिहाजा, निर्देशक ने मुन्ना को झप्पी देने के लिए अस्पताल में बनाए रखा।
फिल्म में सारी मुसीबत तक शुरू होती है, जब मुन्ना के पिता डॉक्टर अस्थाना से मिलते है और मुन्ना-चिंकी की शादी की बात करते हैं। तो सोचिए यदि इन दोनों की मुलाकात ही नहीं होती.. तो शायद मुन्ना और भी 10-20 साल डॉक्टर बनने के नाटक के साथ आराम से जी रहा होता और फिल्म की कहानी कुछ और ही होती। लेकिन निर्देशक के कहानी की बज जाती बैंड क्योंकि फिर न होती प्रेम कहानी न होती जादू की झप्पी।
चिंकी को एक ऐसे लड़के से प्यार हो जाता है जो मुंबई का सबसे बड़ा गुंडा होता है और जो उसके पिता यानि कि डॉक्टर अस्थाना से नफरत करता है। हम्मम.. यह भी सिर्फ फिल्मों में ही हो सकता है। बहरहाल, सोचिए यदि ऐसा नहीं होता तो.. तो मुन्ना शायद कुछ ही दिनों में हॉस्पिटल छोड़कर जा चुका होता। लेकिन फिल्म में मसाला की कमी हो जाती..है न..और बज जाती कहानी की बैंड।
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