अमिताभ बच्चन की अमर अकबर एंथनी को 40 साल से ऊपर हो चुके हैं और हाल ही में एक फैन ने ट्विटर पर अमिताभ बच्चन को इस फिल्म से जुड़ा शानदार आंकड़ा बताया। mosessapir नाम के इस ट्विटर हैंडल ने अमिताभ बच्चन को बताया कि उस दौर में फिल्म ने 7 करोड़ की कमाई की थी। अगर अभी फिल्म की कमाई निकालेंगे तो ये 7 करोड़, बाहुबली 2 की कमाई से ज़्यादा निकलेंगे।
अब ज़ाहिर सी बात है कि अमिताभ बच्चन इस आंकड़े को सुनकर फूले नहीं समाए और उन्होंने तुरंत ही इसे अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर कर दिया। हालांकि इस आंकड़े में कितनी सच्चाई है, ये तो आपको कोई अर्थशास्त्री ही बता पाएगा। बात करें अमर अकबर एंथनी की तो फिल्म में सबकुछ था बस अगर कुछ मिसिंग था तो लॉजिक। हालांकि फिल्म ट्विस्ट की भरमार थी। पर ज़रा सोचिए कि अगर इन ट्विस्ट्स को कर दिया जाए ट्विस्ट तो कैसे बजती कहानी की Band!
फिल्म बड़ी सादे लोगों की कहानी थी जो कमीने बनने की पूरी कोशिश करते हैं। शुरू में ही रॉबर्ट सेठ अपने ड्राइवप किशनलाल को खुद के किए हुए एक्सीडेंट का इल्ज़ाम अपने सर लेने को कहता है।
पर ज़रा सोचिए अगर देश में थोड़ा करप्शन का लेवेल ज्यादा होता तो रॉबर्ट ड्राइवर से सेटिंग करने की बजाय थोड़ा ऊपरी जुगाड़ लगाता। आखिर हम सुबह से लेकर रात तक इसी जुगाड़ टेक्नोलॉजी में ही तो रहते हैं। अगर रॉबर्ट ऐसा करता तो किशनलाल जेल जाने की बजाय घर बैठकर बीबी के टीबी का इलाज करवा रहा होता और बज जाती कहानी की बैंड!
तीन बच्चे। चलो एक तो छोटा था पर बाकी दोनों इतने बड़े थे कि उनके नाम हों। पर नाम केवल अमर का। क्यों भई। बाकी के नाम लायक नहीं थे। फिल्म जब भी जिसने भी बच्चों को याद किया बस अमर का नाम बुलाया।
बाकी दोनों के साथ धोखा। तो फिर इन्होंने भी बदला लिया। अपना नाम किसी को बोला ही नहीं। पहले ही नाम होते तो फिल्म के पहले सीन में अमर अकबर एंथनी की जगह सब अपने नाम बताते अमर, राजू, सुरेश टाइप और बज जाती कहानी की बैंड।
सबने इस फिल्म का ये मज़ाक उड़ा लिया कि एक बार में तीन पाइप लगाकर खून चढ़ा रहे हैं। किसी ने ये नोटिस क्यों नहीं किया कि इन सबका ब्लड ग्रुप एक ही क्यों था। सबका खून मां से मैच करवा दिया। वैसे गाना बज रहा था, खून है पानी नहीं, तो भइया खून है सेम टू सेम कितना मैच हुआ। पानी थोड़ी है कि सब H2O.
ऊपर से खून चढ़ाना था ग्लूकॉन डी नहीं। कि दे दना दन बोतल डाले जा रहे थे। लेकिन अगर इतना ड्रामा नहीं होता तो अमर अकबर एंथनी का इंट्रोडक्शन फीका पड़ जाता और बज जाती कहानी की बैंड!
फिल्म में सबके साथ सेम चीज़े बार बार हुईं। पहले इन बच्चों के पापा का एक्सीडेंट हुआ फिर मम्मी का और मम्मी की बीमारी टीबी से बदलकर मोताबिंद। मतलब मम्मी की आंखे बेकार।
अगर ऐसा नहीं होता तो मम्मी अपने बच्चे को देखते ही पहचान लेती और वो दोनों मिलकर बाकियों तो ढूंढते और कहानी का नाम होता अमर, समर, उमर और बज जाती कहानी की बैंड!
अगर टेक्नोलॉजी थोड़ी सी भी एडवांस्ड होती तो ये सब भाई बैठकर वॉट्सऐप पर ग्रुप चैट कर रहे होते या फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करते। या सीधा ट्वीट ही कर देते Bro Missing। फिल्म छोटी भी, बेतुकी भी और बोरिंग भी। और ये टेक्नोलॉजी बजा देती कहानी की बैंड।
वैसे चोर और पुलिस का चोली दामन का साथ है पर आगे पीछे, ऊपर नीचे। साथ साथ नहीं। अगर विनोद खन्ना को इससे प्यार नहीं हआ होता तो लड़की जेल के अंदर पुलिस जेल के बाहर। लड़की चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड पीसिंग। पुलिस मेडल बटोरिंग एंड बटोरिंग एंड बटोरिंग। कहानी की बैंड बजिंग एंड बजिंग।
हालांकि शंकराचार्य की बात कितने मानते ये तो पता नहीं पर अगर वो इसी टाइम पर कह देते कि साईं की पूजा नहीं होनी चाहिए क्योंकि वो भगवान नही है तो अकबर इलाहाबादी उन के दर पर जाकर टाइम वेस्ट नहीं करता। न ही मां भी मरते जीते बाबा के दर्शन करने पहुंचती...तो बाबा बजा देते कहानी की बैंड!
बाबा बड़े प्रभावशली थे। उनकी आंखों से कुछ निकला और निरूपा आंटी की आंखें ठीक हो गईं। लेकिन अगर ऐसे अंधविश्वासी लोग नहीं होते तो न मम्मी की रोशनी आती, न वो फोटो में अपने बेटे को पहचानती। और बज जाती कहानी की बैंड!
अगर इस परिवार ने फैमिली प्लानिंग की होती तो किशनलाल के दो ही बच्चे होते। ऐसे में कहानी ज़्यादा मज़ेदार नहीं होती। राम लखन, करन अर्जुन, सीता गीता टाइप एक और कहानी बढ़ जाती। थैंक गॉड किशनलाल ने फैमिली प्लानिंग नहीं की वरना बज जाती कहानी की बैंड।
सारी कहानी ही शुरू हुई इन तीन बच्चों को तीन लोगों के अडॉप्ट करने से। अगर इन बच्चों को कोई अडॉप्ट ही नहीं करता तो शायद ये भीख मांगते या फिर गुंडे और मिल्खा की तरह चोरी वोरी करने लगते । कुछ भी होता ये बच्चे अमर अकबर एंथनी तो नहीं होता और बजा देते कहानी की बैंड!
अमर अकबर एन्थनी 70 के दशक की वो फिल्म थी जिसने दर्शकों के बीच तहलका मचा दिया। वैसे तो ये फिल्म थी किसी मेले का खोया पाया केंद्र लेकिन मनमोहन देसाई जनता की नब्ज़ पकड़ना जानते थे। फिल्म में कई ऐसे सीन थे जिनकी ज़मीनी स्तर पर लॉजिक से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। फिर भी फिल्म ब्लॉकबस्टर थी और इसने सफलता के नए रिकॉर्ड बनाए थे। वैसे गौर से देखा जाए तो फिल्म पूरी तरह से पैसा वसूल बॉलीवुड मसाला थी। और ऐसी फिल्में आज भी दर्शकों को उतना ही इंटरटेन करती हैं।
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