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बच्चों की कॉमिक्स जैसी है 'तीन थे भाई'
कलाकार: ओम पुरी, दीपक डोबरियाल, श्रेयस तलपड़े, रागिनी खन्ना
निर्देशक : मृगदीप सिंह लांबा
निर्माता : राकेश ओमप्रकाश मेहरा
रेटिंग : 2.5/5
समीक्षा : बचपन में जब प्रायः हम यात्रा पर जाया करते थे। तो प्रायः रेलवे स्टॉल पर हमारी निगाह वहां पड़े चंपक, सौरभ सुमन, चाचा चौधरी व कॉमिक्स पर पड़ती थी। और हम वहां से वे सारी किताबें खरीद लाते थे। पूरी यात्रा के दौरान बस हम उन्हें ही पढ़ा करते थे।
उन किताबों की कहानियों में प्रायः एक था राजा, एक थी रानी, तीन थे दोस्त, तीन थे भाई ऐसी कई कहानियां हुआ करती थीं। जिनमें नैतिक मूल्यों व पारिवारिक मूल्यों के बारे में किसी प्रेरक प्रसंग या कहानी के माध्यम से अपनी बात समझाने की कोशिश की जाती थी। तीन थे भाई कुछ ऐसी कहानियों का दार्शनिक किताब है।
फिल्म में जिस तरह किरदारों को आपस में मिलते-बिछुड़ते-झगड़ते फिर वापस एक होते दिखाया गया है और जिस तरह के काल्पनिक दृश्यों और किरदारों का सहयोग लिया गया है। आपको फिल्म देखते वक्त कुछ ऐसा ही महसूस होगा कि आप किसी कॉमिक्स के किरदारों को अपने आस-पास घूमते देख रहे हैं।
मृगदीप सिंह के जेहन में जब यह बात आयी होगी कि वे किसी ऐसी फिल्म से अपने निदर्ेशन क्षेत्र की दुनिया में कदम रखें तो निश्चित तौर में उन्होंने बचपन में ऐसी कई कहानियां पढ़ी होंगी और ऐसे किरदारों से रूबरू हुए होंगे। निस्संदेह फिल्म के माध्यम से उन्होंने यह तो साबित कर दिया है कि वे काल्पनिक हैं और एक बेहतरीन ड्रामा फिल्में लिख सकते हैं और उसे परदे पर उकेर भी सकते हैं।
लेकिन कहीं कहीं उनके इस प्रयोग में उनसे चूक होती है। और उनकी कल्पनाशीलता दर्शकों को बोर करती है। हालांकि फिल्म की कहानी जिस तरह परत दर परत खुलती जाती है, वह कुछ ऐसा ही प्रतीत होती है कि हमारे सामने किसी कॉमिक्स के अगले पन्ने पलटे जा रहे हों। बहरहाल तीन थे भाई तीन भाईयों की कहानी है। हैप्पी, फैंसी और जिक्सी। तीनों भाईयों अपनी अपनी जिंदगी से नाखुश हैं। चूंकि उनके सिर से बचपन में ही पापा का साया उठ जाता है। दादाजी उनके सहारे बनते हैं।
फिल्म में दादाजी की एक सशक्त भूमिका दर्शाई गयी है। तीनों भाईयों को वे दादाजी नापसंद हैं। बचपन में ही अपने दादाजी से विद्रोह करके जिक्सी बड़ा भाई शहर चला जाता है। वहां छोटा सा व्यापार शुरू करता है, उनकी तीन बेटियां हैं।तीनों हद से अधिक मोटी। जिस वजह से उनकी शादी नहीं हो पाती। दूसरी तरफ हैप्पी ने डेंटल की पढ़ाई की है और डेंटिस्ट है।
लेकिन वह इसमें पारंगत नहीं। तीसरा हॉलीवुड का स्टार बनना चाहता है। लेकिन अभिनय का उसे ककहरा भी नहीं आता। मतलब तीनों की जिंदगी में सपने हैं, लेकिन उन सपनों को पूरा कर पाने का खास जज्बा नहीं। तीनों एक दूसरे से नफरत करते हैं और एक दूसरे की शक्ल नहीं देखना चाहते। लेकिन हालात उन्हें एक दूसरे से मिलवाने पर मजबूर करती है।
बचपन में सही परवरिश न मिल पाने की वजह से वे दिशाहीन हैं। ऐसे में उन्हें अचानक पता चलता है कि दादाजी ने उनके लिए वसीहत छोड़ रखी है। उस वसीहत के अनुसार तीनों अलग हुए भाईयों को एक पहाड़ी के घर पर लगातार तीन साल दो दिनों तक साथ बिताना है। तभी वसीहत के पैसे उन्हें दिये जायेंगे। वसीहत और पैसे की चाहत में तीनों भाई इस शर्त को पूरी करने में जुट जाते हैं।
इसी दौरान उन्हें अपने आपसी प्रेम का एहसास होता है। रोचक तरीके से तीनों भाई एक होकर अपने सामने आयी परेशानियों को दरकिनार करते जाते हैं। गौर करें तो निदर्ेशक ओम प्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म दिल्ली 6 में भी काले बंदर के रूप में समाज के नकारात्मक तबके की तसवीर प्रस्तुत की थी। कहीं न कहीं उनकी छवि इस फिल्म में भी नजर आयी है। फिल्म में रावण को बाहुबलि के रूप में प्रदर्शित किया गया है और उत्पाति बंदर को दुश्मन के रूप में।
राकेश की संगत में मृगदीप को भी रामलीला से अति प्रेम सा हो गया है। बहरहाल फिल्म की कहानी अंतराल से पहले दर्शकों को बांध पाने समर्थ नहीं होती। कई जगहों पर फिल्म के दृश्य अति बनावटी नजर आये हैं। हालांकि लोगों को फिल्म के शीर्षक और गीत-संगीत सुन कर यह उम्मीद की जा रही थी फिल्म में हास्य और कहानी का भरपूर मिश्रण देखने को मिलेगा। लेकिन वह ्मिश्रण फिल्म में लोप है।
हानी कहीं कहीं बहुत उबाऊ सी लगती है। लेकिन एक बात माकर्े की है कि किरदारों के चयन में निदर्ेशक ने पूरी तन्मयता बरती है। ओम पुरी जिक्सी के रूप में बिल्कुल उम्दा अभिनेता के रूप में निखर कर सामने आये हैं। दीपक डोबरियाल ने फिल्म तनु वेड्स मनु के पप्पी के बाद इस फिल्म में हैप्पी के रूप में लोगों को हैप्पी होने का मौका दिया है।
श्रेयस को हास्य अभिनय की तरफ रुख करना चाहिए, चूंकि वे हास्य करते हुए सहज नजर आते हैं। रागिनी खन्ना को फिल्म में अभिनय के लिए खास अवसर नहीं दिये गये हैं। अंततः गौर करें तो अपने बच्चों और परिवार के साथ एक बार फिर से अगर आपकी इच्छा है कि उन किस्से कहानियों के दौर को लौटना चाहिए तो फिल्म एक बार देखी जा सकती है।
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