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अजब जोकोमन की गजब दुनिया
कलाकार : मंझरी फर्नांडिस, दर्शील सफारी, अनुपम खेर
निर्देशक : सत्यजित भटकल
रेटिंग : 3 स्टार
समीक्षा: अगर कोई लेखक किसी फिल्म की कहानी काल्पनिक सोच के साथ लिखता है, वो निश्चित तौर पर कुछ बातों का ध्यान रखता होगा कि किरदारों की गढ़ना उस हद तक हो, जिससे वे बेहद बनावटी भी न लगें और उसका सजीव चित्रण प्रस्तुत किया जा सके। खासतौर से तब जब लेखक ही निर्देशक हो। कुछ ऐसी ही उम्मीदें सत्यजित भटकल से रखी जा रही थी। और वे इस पर खरे भी उतरे हैं।
बच्चों की फिल्में यूं तो आये दिन बनती रहती हैं, लेकिन कम ही फिल्में अपना प्रभाव छोड़ पाती हैं। गौर करें तो उस दृष्टिकोण से सत्यजित भटकल की फिल्म जोकोमन बेहतरीन फिल्म है। भटकल कल्पनिक किरदारों को गढ़ने में बेहतरीन सोच रखते हैं। इस बात का सजीव चित्रण फिल्म जोकोमन में बिल्कुल साफतौर पर नजर आता है। सामान्य कलाकारों के साथ उन्होंने बेहतरीन किरदारों और कहानी को ऐसा रूप दिया है कि आपको उन किरदारों से प्यार हो जायेगा।
जल्द ही आप कहानी में रम जायेंगे और सारे किरदार आपको घरेलू लगने लगेनेगे। फिल्म में जोकोमन बाल सुपर हीरो के रूप में नजर आया है। फिल्म में एक परिवार की कहानी है, लेकिन साथ ही बाहर की खूबसूरत दुनिया का निर्माण किया गया है। चाचा देशराज की निगरानी में पल रहे कुणाल को अचानक अपने बारे में एक राज पता चलता है कि उसके पास कुछ ऐसी शक्ति है, जिससे वो शक्तिशाली हो सकता है।
वो अपने अन्याय के प्रति आवाज़ उठाने के लिए उसी शक्ति का सहारा लेता है और अचानक वह शक्तिशाली जोकोमन का रूप ले लेता है। इसमें उनकी मदद उसके अंकल करते हैं। सत्यजित भटकल ने इस फिल्म में इस कदर ईमानदारी बरती है कि उन्होंने हर वक़्त बेवजह शक्तिशाली दुनिया बनाने की कोशिश नहीं की गयी है। वे कुणाल को अत्यधिक चमत्कारिक बनाने की कोशिश नहीं करते।
उन्होंने कुणाल के अंदरुनी ताकत को दिखाने के लिए कहानी का पारंपरिक ढांचा चुना है। फिल्म की कहानी में इस दृष्टिकोण से हमें कुछ पुरानी फिल्मों की याद दिलाती है, जिसमें किसी काका, मामा की अन्याय का बदला वे किसी चमत्कार तरीके से लेते हैं। याद हो कि फिल्म सीता और गीता, चालबाज, राम और श्याम जैसी फिल्में इसी रूप सामने आती हैं। यही कहानी जोकोमन में भी नजर आती है। फिल्म में लालची काका है, जो कुणाल की संपत्ति लेना चाहता है। अपनी साजिश में वह गांव के पंडित का सहयोग लेता है।
जोकोमन कुनाल अपने परिवार के साथ साथ पूरे गावं को भी अंधकार से निकालने की कोशिश करता है। साथ ही उसके दिमाग में ये भी बात है कि उसे अपने काका से भी बदला लेना है। इसमें उसे अपने अंकल की मदद मिलती है। वे साइंस के सहारे कुणाल के मकसद पूरे करते हैं। सत्यजित भटकल ने वाकई इस बात का ख्याल रखा है कि उन्होंने साईंस और पौराणिक कथाओं को एक साथ शानदार तरीके से प्रस्तुत किया है। दोनों का मेल बेहतरीन है। जोकोमोन में बच्चों के फालतू मनोरंजन की व्यर्थ कोशिश नहीं की गई है।
दर्शील के बारे में जैसी चर्चा हो रही थी कि वे शानदार अभिनय करेंगे, वे इस फिल्म में करे उतरे हैं। इस फिल्म में पहली बार दोहरी भूमिका में नजर आये अनुपम खेर ने हमेशा की तरह प्रभाव छोड़ा है। यह फिल्म सिर्फ बच्चों की फिल्म नहीं है। एक बेहतरीन प्रयास है और भारत को ऐसी फिल्मों की जरुरत है। भविष्य में भी ऐसी फिल्म बनती रहे जरूरी है।