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प्यार, धोखा, उम्मीद और जिंदगी है बॉम्बे टॉकीज: रिव्यू
बॉम्बे टॉकीज फिल्म में चार निर्देशकों की शॉर्ट कहानियों को कुछ इस तरह दिखाया गया है कि आपको जरा सा भी वक्त नहीं मिलेगा कुछ और सोचने का। चारों निर्देशकों की कहानियां अलग-अलग दिखाई गयी हैं किसी भी कहानी को दूसरी कहानी से बिल्कुल जोड़ा नहीं गया है लेकिन फिर भी चारो कहानियों का ताना बाना काफी खूबसूरती से दिखाया गया है। हर एक कहानी के खत्म होने के बाद दूसरी कहानी के शुरु होने से पहले दर्शक को कुछ सेकेंड का वक्त मिलेगा कि वो खुद को पहली कहानी से छोड़ा हटा सके। बॉम्बे टॉकीज फिल्म के अंत में अपने पुराने सिनेमा और अपने नये सिनेमा की भी झलक दिखाई गयी है जो कि दर्शकों को ये एहसास दिलाएगी कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री में इन 100 सालों में कितने बदलाव हुए हैं।
बॉम्बे टॉकीज फिल्म की शुरुआत होती है करन जौहर की शॉर्ट स्टोरी से और फिर दिबाकर बैनर्जी, जोया अख्तर और अनुराग कश्यप की कहानियां एक के बाद एक आती हैं। चारों कहानियों में निर्देशकों की छवि साफ नजर आती है। जैसा कि दिबाकर बैनर्जी ने कहा था कि ये चारों निर्दे्शकों की पहली फिल्म जैसी नज़र आएगी। फिल्म को देखकर ऐसा लगेगा कि चार नये निर्देशकों ने फिल्म बनाई है तो असल में फिल्म को देखकर ऐसा ही महसूस हुआ। बॉम्बे टॉकीज ने वाकई अपने इंडियन सिनेमा के ये 100 साल पूरे होने का जश्न पूरा कर दिया।
बॉम्बे टॉकीज फिल्म में रानी मुखर्जी, रणदीप हुड्डा, नवाजुद्दीन सिद्दिकी की एक्टिंग काफी बेहतरीन है। नवाजुद्दीन की एक्टिंग तो जरुर आपकी आंखों में आंसू ले आएगी लेकिन दुख के नहीं बल्कि खुशी के आंसू। क्योंकि फिल्म में नवाजुद्दीन का किरदार एक ऐसे इंसान का है जो कि अपनी जिंदगी को लेकर बहुद आशावादी है। इतनी मुश्किलों का सामना करने के बावजूद वो कभी भी हार नहीं मानता। आइये जानते हैं बॉम्बे टॉकीज फिल्म की चारों कहानियों के बारे में।
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