twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts
    BBC Hindi

    सत्ता के ख़िलाफ खड़े होनेवाले देव और बलराज

    हॉलीवुड स्टार्स अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ कई बार बोल चुके लेकिन ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ वहां होता है।बॉलीवुडमें भी स्टार्स हैं जिन्होंने पहले भी सरकार का विरोध किया और आज के स्टार्स भी कर रहे।

    By सुप्रिया सोगले - मुंबई से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
    |
    मेरिल स्ट्रिप
    AP
    मेरिल स्ट्रिप

    जब से डोनल्ड ट्रंप अमरीका के राष्ट्रपति बने हैं तब से हॉलीवुड के कई कलाकारों ने उनके विरोध में खुलकर अपना पक्ष रखा है. अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप ने गोल्डन ग्लोब के मंच पर अवॉर्ड लेने बाद राष्ट्रपति ट्रंप के विरोध में विचार रखे.

    लेकिन भारतीय अभिनेताओं में आमतौर पर इस तरह खुलकर अपना विचार रखने की प्रवृत्ति कम पाई जाती है.

    हालांकि समय समय पर आमिर ख़ान और नाना पाटेकर जैसे अभिनेता सामने आते रहे हैं जो खुलकर अपने विचार रखने की कोशिश करते दिखाई देते हैं.

    ट्रंप पर जमकर बरसीं मेरिल स्ट्रीप

    लेकिन बीते समय में बॉलीवुड के कई दिग्गज रहे हैं जिन्होंने सरकार विरोधी अपने विचार बिना किसी ख़ौफ़ के सामने रखे.

    बलराज साहनी
    IPTA MUMBAI
    बलराज साहनी

    1. बलराज साहनी : समानांतर सिनेमा की नींव रखने वाले प्रसिद्ध बलराज साहनी ने हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री को 'काबुलीवाला', 'दो बीघा ज़मीन', 'वक़्त', 'छोटी बहन' और 'गरम हवा' जैसी यादगार फ़िल्में दीं.

    मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित बलराज साहनी उस दौर के इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के सदस्य थे.

    बलराज, संजीव, शबाना और वो बूढ़े एके हंगल

    अपनी आत्मकथा "मेरी फ़िल्मी आत्मकथा" में बलराज साहनी ने 1949 में हुई घटना का ज़िक्र किया. इसमें उन्होंने बताया की रिहर्सल के दौरान एक बुलावा आया कि कम्युनिस्ट पार्टी को मुम्बई के परेल ऑफ़िस से निकाला जा रहा है. उसके विरोध में एक जुलूस के लिए उनकी ज़रूरत है."

    बलराज साहनी
    M S Sathyu
    बलराज साहनी

    वो अपनी पत्नी के साथ परेल पहुंचे और पार्टी के कार्यकर्ता से मुलाकात के बाद जुलूस में शामिल हुए. कुछ दूरी के बाद ही पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा. फ़ायरिंग भी हुई. उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. तकरीबन एक साल तक जेल में रहे बलराज साहनी. उस दौरान वो कई फ़िल्में भी कर रहे थे, इसलिए निर्माताओं के निवेदन पर उन्हें जेल से सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक फ़िल्मों में काम करने की छूट मिली.

    उत्पल दत्त
    Shakti Samanta
    उत्पल दत्त

    2. उत्पल दत्त : 'गोलमाल', 'नरम गरम', 'शौक़ीन', 'बात बन जाए' जैसी हास्य फ़िल्मों से दर्शकों को गुदगुदाने वाले उत्पल दत्त मार्क्सवाद में गहरी आस्था रखते थे और इप्टा के संस्थापकों में थे.

    वे थिएटर के ज़रिए समाज में फैली आर्थिक-सामाजिक विषमताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनसे लड़ना चाहते थे. थिएटर के चलते ही वो भारी कर्ज़े में डूबे थे और कर्ज़े से उबरने के लिए उन्होंने हिंदी फ़िल्मों का सहारा लिया.

    उत्पल दत्त
    Shemaroo
    उत्पल दत्त

    वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश चौकसे ने बताया कि उस दौरान उत्पल दत्त ने बंगाल में कई नाटक लिखे, निर्देशित किए और गाँव-गाँव जाकर उनका प्रदर्शन किया. उनके नाटकों से काफी विवाद खड़ा हुआ करता था और सत्ता में बैठे लोगों की बेचैनी बढ़ जाती थी. उनके नाटकों में शामिल हैं कल्लोल और फेरारी फ़ौज. 1965 में कांग्रेस सरकार ने बिना किसी मुक़दमे के उत्पल दत्त को जेल में डाल दिया था.

    3. देव आनंद : बॉलीवुड के एवरग्रीन स्टार देव आनंद ने भी बेबाकी से अपने सरकार विरोधी विचार सामने रखे.

    देवानंद
    Mohan Churiwala
    देवानंद

    देव आनंद के निकट सहयोगी मोहन चुरीवाला ने बीबीसी को बताया कि देव साहब प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के इमरजेंसी लगाने से ख़फ़ा थे. उस दौरान दिल्ली में हो रहे एक राजनीतिक समारोह पर देव साहब को शामिल होकर कांग्रेस की जय जयकार करने का आग्रह किया गया था, पर देव साहब ने न्योता स्वीकार नहीं किया था.

    देव आनंद कभी नहीं आए राज कपूर की होली में

    इस कारण उनकी फ़िल्मों और गानों पर दूरदर्शन और विविध भारती में बैन लगा दिया गया. देव आनंद ने इसे कांग्रेस सरकार की तानाशाही करार दिया और उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल से मिलने दिल्ली जाने का फैसला किया.

    देवानंद
    Mohan Churiwala
    देवानंद

    जब देव आनंद सूचना और प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ल से मिले तो उन्होंने अपना गुस्सा ज़ाहिर किया और कहा कि, "हम लोकतंत्र में रहते हैं. क्या हमें अपनी मन के मुताबिक चलने का कोई हक़ नहीं है."

    उनके विरोध का असर ये हुआ कि देव साहब जब तक दिल्ली से मुम्बई पहुँचते तब तक उनके ऊपर लगा बैन हटा दिया गया था.

    इमरजेंसी के प्रकरण से नाराज़ देव आनंद ने विरोध में राजनीतिक पार्टी 'नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया' का गठन किया. पार्टी बनाने के पीछे उनकी सोच थी कि देशभर से लोग उनसे जुड़ेंगे, उनकी मदद से देश में एक नई व्यवस्था बन सकेगी.

    देवानंद
    Getty Images
    देवानंद

    पर देव साहब को जल्द ही एहसास हो गया कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए बहुत कम समय है और मन चाहे उम्मीदवार की कमी भी उन्हें खली. उन्होंने राजनीति छोड़ दी, पार्टी भी ख़त्म हो गई. सालों बाद एक पत्रकार सम्मलेन में देव आनंद ने अपने राजनैतिक सपनों के पतन का जिक्र करते हुए बताया, "राजनीति कोमल दिल कलाकारों के लिए नहीं है और पार्टी का पतन इसलिए हुआ क्योंकि उन्हें इलेक्शन लड़ने के लिए उचित उम्मीदवार ही नहीं मिले."

    (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

    BBC Hindi
    English summary
    Many bollywood stars dare to speak against government or formed political parties.
    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X