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पुण्यतिथि विशेष: दर्द ए दिल.. दर्द ए..जिगर..दिल में ..
सुरों के सरताज मोहम्मद रफ़ी की आज पुण्यतिथि है। शहंशाह-ए-तरन्नुम कहलाने वाले रफी साहब आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। हिंदी सिनेमा में आज तक कोई भी ऐसा गायक नहीं जो रफी साहब से आगे हो। हर कोई रफी साहब जैसा ही बनना चाहता है। आज भी पूरा देश उनके गाये गीतों पर झूम उठता है। संगीत के पुरोधा कहते हैं.. बॉलवुड में कभी के. एल. सहगल, पंकज मलिक, के.सी. डे समेत जैसे गायकों के पास शास्त्रीय गायन की विरासत थी, संगीत की समझ थी लेकिन नहीं थी तो वो थी आवाज। जिसे रफी ने पूरा किया।
सन 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' से उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान बनायी । 1965 में पद्दमश्री से नावाजे जा चुके रफी साहब को 6 बार फिल्मफेयर अवार्ड मिल चुका है।
संगीत के जानकार बताते हैं कि के. एल. सहगल, पंकज मलिक, के.सी. डे समेत जैसे गायकों के पास शास्त्रीय गायन की विरासत थी, संगीत की समझ थी लेकिन नहीं थी तो आवाज की वह विविधता जो एक पाश्र्वगायक को परिपूर्ण बनाती है। इस कमी को रफी ने पूरा किया। सन 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' से उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित की। इस फिल्म के बाद रफी नौशाद के पसंदीदा गायक बन गए। उन्होंने नौशाद के लिए कुल 149 गीत गाए जिनमें से 81 एकल थे।
इसके बाद रफी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और हिंदी फिल्म जगत के प्राय: सभी धुरंधर संगीतकारों ने उनकी जादुई आवाज को अपनी धुनों में ढाला। इनमें श्याम सुंदर, हुसनलाल भगतराम, फिरोज निजामी, रोशन लाल नागर, सी. रामचंद रवि, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओ.पी. नैय्यर, शंकर जयकिशन, सचिन देव बर्मन, कल्याण जी आनंद जी आदि शामिल थे।
यूं तो रफी के गाए शानदार गीतों की लंबी फेहरिस्त है.. लेकिन आईये जानते हैं रफी साहब के कुछ लोकप्रिय गीतों के बारे में....
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