Just In
- 16 min ago सोहेल खान के साथ दिखा डॉली चायवाला, इसलिए भड़क गए लोग, बोले- 'अब इसको अनफॉलो करो'
- 44 min ago 'मैं रोती रही और शाहरुख...' 17 साल बाद फराह खान ने वैनिटी वैन के अंदर हुए इस किस्से से उठाया पर्दा?
- 1 hr ago स्टेज पर ससुर का हाथ पकड़ने पहुंची Sshura Khan, बेटे अरबाज की दूसरी बीवी को सलीम खान ने किया इग्नोर फिर...
- 1 hr ago जब भीड़ में फंसी इस एक्ट्रेस को गंदी नीयत से छूने लगे थे लोग, फूट फूटकर रोने लगी हसीना
Don't Miss!
- News '...न्यायिक प्रक्रिया से उठ जाएगा लोगों का भरोसा', Mukhtar Ansari की मौत पर अखिलेश यादव ने और क्या लिखा?
- Education एनआईओएस कक्षा 10वीं, 12वीं हॉल टिकट 2024 हुए जारी, जानें कैसे करें डाउनलोड
- Lifestyle 'हीट वेव' से बचाने के लिए चुनाव आयोग ने जारी की एडवाइजरी, सेफ रहने के लिए हाइड्रेड रहें और ये काम न करें
- Finance जुर्माने से बचने के लिए जल्दी निपटा लें अपने यह पांच काम, 31 मार्च है आखिरी डेट
- Automobiles Tesla को टक्कर देने के लिए Xiaomi ने लॉन्च की पहली इलेक्ट्रिक कार, सिंगल चार्ज में मिलेगी 810KM की रेंज
- Technology Realme ला रहा नया धांसू स्मार्टफोन, इन तगड़े फीचर्स से होगा लैस, सामने आईं डिटेल्स, 4 अप्रैल को होगा लॉन्च
- Travel Good Friday की छुट्टियों में गोवा जाएं तो वहां चल रहे इन फेस्टिवल्स में भी जरूर हो शामिल
- Sports Japan Open 2023: सेमीफाइनल में पहुंचे लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय की विक्टर एक्सेलसन से भिड़ंत आज
गैर फिल्मी संगीतकारों को बॉलीवुड से नुकसान
एक समय था जब संगीत प्रेमी 'माई री' और 'संयोनी' जैसे गीत बार-बार सुनना पसंद करते थे। लेकिन संगीतकारों का कहना है कि आज फिल्मी गीतों ने न सिर्फ संगीत प्रेमियों का ध्यान अपनी तरफ कर लिया है बल्कि गैर फिल्मी गीतों और कम बजट वाले संगीतकारों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
नब्बे का दशक संगीत बैंडों और स्वतंत्र संगीतकारों के लिए स्वर्ण युग था। उस दौर में 'यूफोरिया', 'सिल्क रूट', 'आर्यन', 'जुनून' और 'स्टीरियो नेशन' जैसे कई संगीत बैंड उभरे और लोकप्रिय हुए।
वही दौर था जब अलीशा चिनॉय, फाल्गुनी पाठक, लकी अली, बाली ब्रह्मभट्ट, शान, दलेर मेंहदी, अदनान सामी, मीका और बाबा सहगल जैसे स्वतंत्र संगीतकार और गायक मशहूर और लोकप्रिय हुए। लेकिन आज हिंदी फिल्में भारतीय संगीत की मुख्य उत्पादक बन गई हैं। संगीत बैंड 'द्रावका' के आदित्य दत्त याचना भरे स्वर में कहते हैं कि वह चाहते हैं कि लोग उनका संगीत सुनें।
आदित्य ने आईएएनएस को बताया, "हम चाहते हैं कि लोग हमारे गाने सुनें। हम चाहते हैं कि हमारा संगीत लोगों के दिलों को छू जाए, उनकी जिंदगी बदल दे। हम अपना संगीत दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं।"
आदित्य
की
बातों
से
इत्तेफाक
रखते
हुए
स्वतंत्र
गायिका
रजनीगंधा
शेखावत
कहती
हैं
कि
उन
जैसे
संगीतकारों-गायकों
को
हिंदी
फिल्मों
के
गायकों
से
कहीं
ज्यादा
संघर्ष
करना
पड़ता
है।
उन्होंने
कहा,
"स्वतंत्र
संगीतकारों
को
अपना
संगीत
बाजारों
तक
पहुंचाने
के
लिए
फिल्मों
के
गायकों
से
50
गुना
ज्यादा
संघर्ष
करना
पड़ता
है।
इसके
दो
कारण
हैं
एक
तो
आर्थिक
और
दूसरा
सामग्री
का।"
फिल्मों के भारी भरकम प्रचार के लिए टीवी चैनलों में बार-बार फिल्म के गीतों को दिखाकर लोगों के दिल-दिमाग में बैठा देना फिल्मकारों के लिए आसान होता है। जबकि यह सुविधा स्वतंत्र संगीतकारों के पास नहीं है।
अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष के बीच स्वतंत्र संगीतकारों के लिए एमटीवी कोक स्टूडियो जैसे टीवी कार्यक्रम डूबते को तिनके का सहारा हैं, जहां संगीतकारों को अपना हुनर और कौशल दिखाने का मौका मिलता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।